Bihar Voter List Revision: बिहार में चल रहे SIR पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, जिंदा वोटर्स का कटा नाम तो करेंगे हस्तक्षेप, इस दिन अगली सुनवाई

Bihar Voter List Revision: बिहार में चल रहे मतदाता पुनरीक्षण सूची को लेकर सुप्रीम कोर्ट सख्त हो गया है। सुप्रीमो कोर्ट ने कहा है कि अगर जिंदा वोटर्स का नाम कटा तो कोर्ट मामले में हस्तक्षेप करेगा। साथ ही कोर्ट ने आयोग को फटकार भी लगाया है।

मतदाता पुनरीक्षण सूची
सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई - फोटो : social media

Bihar Voter List Revision:  बिहार में विशेष मतदाता पुनरीक्षण को लेकर आज यानी मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। कोर्ट ने अगली सुनवाई के लिए 12 अगस्त को दिन तय किया है। दरअसल, कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अगर बड़ी संख्या में मतदाताओं के नाम मनमाने ढंग से काटे गए तो वह इसमें हस्तक्षेप करने से पीछे नहीं हटेगा।

12 अगस्त को होगी असली सुनवाई 

जस्टिस जॉयमाल्या बागची की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि, आप 15 ऐसे लोगों को पेश करें जिनका नाम यह कहकर हटाया गया कि वे मर चुके हैं जबकि वे जीवित हैं। अगर ऐसा है तो हम तुरंत दखल देंगे। सुप्रीम कोर्ट अब इस मामले की विस्तृत सुनवाई 12 और 13 अगस्त को करेगा।

क्या है मामला?

SIR के तहत बिहार में वोटर लिस्ट का विशेष गहन पुनरीक्षण किया जा रहा है। इसमें चुनाव आयोग ने दावा किया है कि कुल 65 लाख नाम हटाए गए हैं। इनमें से 22 लाख मृत घोषित, 36 लाख स्थानांतरित और 7 लाख अन्य क्षेत्र में स्थायी रूप से बस चुके मतदाता हैं। इस प्रक्रिया के खिलाफ राजद सांसद मनोज झा, टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा समेत 11 याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दाखिल की हैं। उनका आरोप है कि यह गैरसंवैधानिक और पक्षपातपूर्ण कवायद है। जिससे लोकसभा चुनाव से पहले अल्पसंख्यकों और गरीब तबकों को निशाना बनाया जा रहा है।

सुप्रीम कोर्ट की तीखी टिप्पणियां

सुप्रीम कोर्ट ने तीखी टिप्पणी करते हुए चुनाव आयोग से सवाल किया कि, आधार कार्ड, वोटर आईडी और राशन कार्ड को पहचान पत्र के रूप में क्यों नहीं माना जा रहा? आयोग ने कहा कि राशन कार्ड फर्जी हो सकते हैं। कोर्ट ने जवाब दिया कि, धरती पर ऐसा कोई डॉक्यूमेंट नहीं है, जिसकी नकल नहीं बन सकती। तो फिर 11 दस्तावेजों की सूची का आधार क्या है?

सुप्रीम कोर्ट ने लगाई फटकार 

कोर्ट ने कहा कि, वोट से वंचित किया जाना गंभीर मामला है। मतदाता को अपनी नागरिकता सिद्ध करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। वकील कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी ने दलील दी कि आयोग भारतीय नागरिकता तय करने का अधिकारी नहीं है, यह जिम्मेदारी संविधान या संसद की है। कोर्ट ने आयोग से पूछा कि जब जाति प्रमाण पत्र आधार पर आधारित है, तो फिर आधार को क्यों सूची से हटाया गया? आयोग के वकील राकेश द्विवेदी ने कहा कि आधार नागरिकता का प्रमाण नहीं है, इसलिए इसका प्रयोग सीमित है।

चुनाव आयोग की दलील

27 जुलाई को जारी आंकड़ों के अनुसार, अब बिहार में 7.24 करोड़ मतदाता हैं। पहले यह संख्या 7.89 करोड़ थी। आयोग ने कहा कि SIR एक संवैधानिक प्रक्रिया है और 2003 के बाद यह पहली बार हो रहा है। यह भी स्पष्ट किया कि अभी केवल मसौदा सूची बनाई जा रही है, अंतिम सूची पर विचार बाद में किया जाएगा।

आगे क्या?

सुप्रीम कोर्ट ने 28 जुलाई को फिर सुनवाई करने की बात कही थी, लेकिन अब इसे आगे बढ़ाकर 12-13 अगस्त कर दिया गया है। कोर्ट ने संकेत दिए हैं कि यदि प्रक्रिया में भारी अनियमितता पाई गई तो वह पूरी प्रक्रिया रद्द कर सकता है।