Bihar Crime News : बिहार में तेजी से फल-फूल रहा ‘कॉन्ट्रैक्ट किलिंग' का धंधा, सात महीने में हुए 1436 मर्डर, शूटर्स ने की हर तीसरी हत्या

Bihar Crime News : बिहार में तेजी से फल-फूल रहा ‘कॉन्ट्रैक्ट

PATNA : बिहार अब सिर्फ खेत-खलिहानों का राज्य नहीं रहा, ये अब मौत के सौदागरों की नई मंडी बन चुका है जहां नफरत बिहार में अब क़त्ल महज़ इमोशन्स का नतीजा नहीं रहा, यह अब 'पेशेवर सौदा' बन चुका है। आंकड़े चीख-चीखकर बता रहे हैं कि राज्य में 'कॉन्ट्रैक्ट किलिंग' की एक नई इंडस्ट्री खड़ी हो चुकी है जहां क़त्ल अब रेट लिस्ट और डील पर होता है। पुलिस मुख्यालय के ताज़ा आंकड़ों के मुताबिक, 1 जनवरी से 30 जून 2025 तक 1376 हत्याएं दर्ज हुई हैं। यानी औसतन हर महीने 229 कत्ल, और हर चौथे घंटे एक मौत! इसमें जुलाई के 22 दिन और जोड़ें तो आंकड़ा 1435 के पार जा चुका है। अकेले पटना में जुलाई में 11 हत्या, जिनमें से 4 कत्ल सुपारी पर कराए गए।

अब ये सवाल नहीं कि “कौन मरा?”, अब सवाल ये है कि “किसने करावाया और कितने में?” पुलिस हेडक्वार्टर के एक अफसर के अनुसार, बिहार में 150 से ज़्यादा शूटरों की हिट लिस्ट तैयार की जा चुकी है। ये कोई गैंग के वफादार नहीं — जहां से पैसा आया, गोली वहीं चलाई। ये ‘कॉन्ट्रैक्ट किलर्स’ बीस हज़ार से लेकर दस लाख रुपये तक की सुपारी पर मौत का खेल खेलते हैं। चाहे प्रेम-प्रसंग, हो या सियासी रंजिश, जमीन विवाद हो या गैंगवार — अब हर झगड़े का हल है एक गोली और एक सुपारी।

राज्य के 1,380 थानों में दर्ज हत्या के मामलों में से 30 फीसदी से ज़्यादा मामले कॉन्ट्रैक्ट किलिंग से जुड़े हैं। पर हैरानी की बात यह है कि पुलिस मुख्यालय के पास कॉन्ट्रैक्ट किलिंग से जुड़े अलग से कोई रिकॉर्ड ही नहीं हैं। यानी मौतें हो रही हैं आदेश पर, रकम पर, पर सिस्टम बेख़बर है। अपराध पर सूक्षम नजर रखने वालों के अनुसार कॉन्ट्रैक्ट किलिंग कोई नई चीज नहीं, लेकिन अब ये धंधा बन चुका है। पहले कातिल दुश्मनी निभाता था, अब ‘पेमेंट क्लियर’ होते ही ट्रिगर दबा देता है।” उनका कहना है कि इस ख़तरनाक ट्रेंड को रोकने के लिए दो सख़्त कदम ज़रूरी हैं।

पुलिस को ऐसे अपराधियों की प्रोफाइल बनाकर, उन्हें हिट लिस्ट में टॉप पर रखना होगा। उन्हें हर वक्त डर में रखना होगा। थानेदार से लेकर एसपी तक, उन्हें राजनीति या प्रशासनिक दबाव से मुक्त कर पूरी ताकत के साथ क्राइम कंट्रोल का ज़िम्मा देना होगा। शराब और बालू जैसे धंधों के लिए अलग एजेंसियां बनी हैं पुलिस को केवल अपराधियों पर ध्यान देना चाहिए। बिहार में अब मुंबई और दिल्ली का ट्रेंड देखने को मिल रहा है कि बड़े माफिया खुद को पर्दे के पीछे रखकर सफेदपोश मुखौटे में रहकर शूटरों से काम करवा रहे हैं। सुपारी मिलती है, किलर पहुंचता है, गोली चलती है और कोई किसी को पहचान भी नहीं पाता।