दुश्मनों के साथ मेरे दोस्त भी आज़ाद हैं
देखना है खींचता है मुझ पे पहला तीर कौन....
सियासत के शतरंज पर राजा से लेकर वजीर, यहां तक की प्यादे भी अपनी चाल चलने से कभी बाज नहीं आते..मुंह से लेकर पीठ पीछे तक खेल अनवरत जारी रहता है..यह अपेक्षित भी है..चुकी इतिहास यही रहा है...राजतंत्र और लोकतंत्र में फर्क सिर्फ यह है कि 5 साल बाद जनता मालिक हो जाती है.. लेकिन सत्तानशीं होने बाद राजा अपने और वजीर अपने तरीके से शह और मात खेल खेलते रहते हैं.... बिहार इसका सबसे बड़ा नजीर है। यहां राजा के करीब होने का तो अपना ही मजा है. हालांकि कब चाल उल्टी पड़ जाए यह सिर्फ यहां का राजा ही जानता है.... लेकिन उसके बावजूद सटने और हटने का सियासी चाल बदस्तूर जारी है।
सियासी सूत्र बताते हैं कि राजा के हमसाया वजीर के साथ आजकल पीठ पीछे दो दो हाथ करने की तैयारी चल रही है। कोशिश है कि कुछ बड़े लोगों के हृदय में वर्षों से चल रहे अंदर के कसक को आकार दिया जाय। मिल जुलकर किसी तरह काट निकाला जाए। ऐसा भी बताया जाता है कि बहुत शुरुआत से ही माननीय कई खास के लिए गले का फांस साबित होते रहे हैं.....
राजा की खासियत बनाम करीबी नेता का हश्र
ऐसे भी इस पार्टी का प्रारब्ध रहा है .....या यूं कहें कि राजा की खासियत रही है कि जो उनके बहुत करीब होता है उसे कुछ ही दिनों में जितनी ऊंचाई मिलती है उसके ठीक उलट उससे कहीं बड़ी सियासी खाई मिलती है। थोड़ा पीछे नजर घुमाएं तो ऐसा ही हश्र एक वजीर का हुआ. उन्हें कभी सबसे बड़ा पद दिया गया. सत्ता के सुख का भी दिल्ली सलतनत तक मजा लिया. लेकिन फिर नजरों से ऐसे गिरे कि तीर उनके ही कलेजे में उतर गया. राजा का साथ छोड़ा और अब नए कुनबे को बनाकर उसी राजा को गद्दी से हटाने का सपना देख रहे हैं. हालाँकि यही हाल राजा के एक और करीबी का हुआ. उन्हें भी राजा ने निर्णय लेने की स्वतंत्रता दी, सबसे बड़ा पद दिया. नतीजा रहा कि दुश्मन को गले लगाकर उन्होंने दोस्त बनवा दिया, लेकिन वह दोस्ती ज्यादा दिनों तक चली नहीं. और फिर राजा ने अपने उस वजीर से न सिर्फ कुर्सी छीन ली बल्कि खुद उस कुर्सी पर बैठ गए....
समर्पण ने अजीज वजीर को बना रखा है अपवाद
हालांकि इस मामले में अजीज वजीर का कोई जोड़ नहीं,कम बोलना और मुस्कुराते रहने की खासियत ने सियासी जीवन में भी संतुलन बनाने में बहुत मदद की है। पार्टी से लेकर की कई विभागों की जिम्मेवारी संभालने की काबिलियत ने एक प्रकार से सियासी तौर पर अपरिहार्य बना रखा है। अच्छे पढ़े लिखे होने का भी फायदा मिलता है। इन्हें यस मैन भी कहा जाता है। साथ ही संगठन से लेकर विधानसभा तक इनके मोर्चाबंदी का कोई जोड़ नहीं। चाहे NDA की तरफ से खड़ा होना हो या फिर महागठबंधन की तरफ से,तीर निशाने पर ही चलाते हैं। यही वजह है कि राजा भी करीब से नजर रखते हुए भी कभी दूर नहीं किया।
राजा के पुराने यार का यलगार और सियासी गोला बारूद...बाल बाल बचे
माननीय सियासी परिवार से आते हैं, राजा से नजदीकी बढ़ी तो पार्टी की अहम जिम्मेदारी भी मिली। पार्टी अपने उफान पर थी। उसी दौर में कुछ नेता भी उफान के शिखर पर थे। राजा का प्रारब्ध हावी हुआ..एक पुराना यार यलगार पर उतारू हो गया। सियासी विद्रोह को हवा दी जाने लगी। बयान का घमासान शुरू हुआ। राजा ने मोर्चा संभालने की जिम्मेदारी दी। पहले भीतर से बाद में बाहर से खेल शुरू हुआ। लेकिन अजीज ने मोर्चा बखूबी संभाला और कम ही दिनों में सियासी जमीन को और पुख्ता कर लिया। वक्त के साथ जिम्मेदारियां बढ़ते चली गईं। समय करवटें बदलता रहा और साथ हीं अजीज वजीर के विभाग और जिम्मेदारी भी। स्वाभाविक तौर पर सियासी साथियों में जलन भी..जलन को एक खास समीकरण ने अभी तक कामयाब नहीं होने दिया।
सियासत है कब क्या हो जाए कहना मुश्किल!
इतिहास गवाह है कि सियासत के बिसात पर अपने ही अपनों को मात देने की ताक में लगे रहते हैं। सूत्र बताते हैं कि एक बार फिर से अजीज को आधारहीन करने की सियासत शुरू है ताकि आने वाले समय में चाल चलने में कोई बाधा सामने नहीं आए। सामने वाले को नकारा साबित करने के लिए एक दूसरे वजीर खूब जोड़ लगा रहे। दिल्ली वाले के दिल में रंजिश पैदा कर एक अलग रंग देने की कोशिश जारी है ताकि सामने वाले को बदरंग किया जा सके..मुलाकात और बात का सिलसिला भी जारी है..पटना से लेकर दिल्ली तक..लेकिन सवाल तो यह कि सियासत का यह खेल इस बार कितना कामयाब हो पाता है..यह वक्त बताएगा....