Bihar Politics: राजद का नया दाँव, क्षत्रिय सम्मान यात्रा से सियासी भूचाल, क्या टूटेगा NDA का समीकरण?

Bihar Politics: बिहार की राजनीति में हर दल अपनी पैठ मजबूत करने के लिए नए-नए समीकरण तलाशता रहता है. इसी सियासी उठापटक के बीच, राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने एक अनोखी पहल करते हुए 'क्षत्रिय सम्मान यात्रा' का आगाज़ किया है

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राजद का नया दाँव- फोटो : reporter

Bihar Politics: बिहार की राजनीति में हर दल अपनी पैठ मजबूत करने के लिए नए-नए समीकरण तलाशता रहता है. इसी सियासी उठापटक के बीच, राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने एक अनोखी पहल करते हुए 'क्षत्रिय सम्मान यात्रा' का आगाज़ किया है, जिसकी शुरुआत सासाराम से हुई है. यह कदम, जो सीधे तौर पर क्षत्रिय समाज को राजद के पाले में लाने की कवायद है, ने सूबे की सियासत में एक नई बहस छेड़ दी है.

राजद नेता आशुतोष सिंह के नेतृत्व में यह सम्मान यात्रा सासाराम जिला मुख्यालय से निकलकर डेहरी ऑन सोन तक पहुंची. इस यात्रा का मकसद साफ है: क्षत्रिय समाज के बीच यह संदेश देना कि वर्तमान सरकार में उनकी अनदेखी हो रही है और सिर्फ राजद ही उनकी सच्ची हितैषी है. आशुतोष सिंह ने अपने बयान में मौजूदा हुकूमत पर क्षत्रिय समाज की लगातार उपेक्षा करने का इल्ज़ाम लगाया है. उन्होंने कहा कि क्षत्रिय अब इस 'अवेहलना' को और बर्दाश्त नहीं करेंगे और यही वजह है कि वे बड़ी तादाद में राजद की तरफ रुख कर रहे हैं.

राजद, जो अब तक 'ए टू जेड' की पार्टी होने का दावा करती रही है, इस यात्रा के जरिए अपने परंपरागत वोट बैंक (एम-वाई समीकरण) से इतर अन्य समुदायों को भी अपने साथ जोड़ने की कोशिश कर रही है. यह एक दिलचस्प सियासी चाल है, क्योंकि क्षत्रिय समाज को आमतौर पर भाजपा और जदयू के गठबंधन (NDA) का समर्थक माना जाता रहा है. राजद का यह प्रयास उस भ्रम को तोड़ने की कोशिश है, जिसे लेकर आशुतोष सिंह ने कहा कि मौजूदा सरकार ने क्षत्रिय समाज के बीच पैदा कर रखा है.

इस यात्रा का आयोजन रोहतास जिले के सभी विधानसभा क्षेत्रों में चरणबद्ध तरीके से किया जाएगा. सासाराम से शुरू हुई यह यात्रा सिर्फ एक शुरुआत है, जिसका असर आने वाले चुनावों में देखने को मिल सकता है. यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या राजद की यह 'क्षत्रिय सम्मान यात्रा' NDA के सियासी समीकरणों में सेंध लगा पाएगी और क्या क्षत्रिय समाज वाकई राजद के इस नए दाँव पर भरोसा करेगा. यह यात्रा सिर्फ एक चुनावी मुद्दा नहीं, बल्कि बिहार की बदलती राजनीतिक तस्वीर का एक अहम पहलू भी है, जो आने वाले दिनों में कई और सवाल खड़े करेगा.

रिपोर्ट- रंजन कुमार