Fire of Love: हिंदू युवती ने मुस्लिम युवक से किया निकाह तो पलट दी कहानी, सड़क बना इश्क का रंगमंच, 'एक्स' पति ने किया लाइव ड्रामा, वो मोहब्बत भी तुम्हारी थी, बेवफ़ाई भी तुम्हारी...
Fire of Love: बिहार की सड़कों पर इस बार बारिश नहीं, बेवफ़ाई की बौछार गिरी। मामला था पति-पत्नी के बीच के तल्ख रिश्तों का, लेकिन जो हुआ वह सिर्फ़ एक वैवाहिक झगड़ा नहीं, बल्कि ...

Fire of Love: बिहार की सड़कों पर इस बार बारिश नहीं, बेवफ़ाई की बौछार गिरी। मामला था पति-पत्नी के बीच के तल्ख रिश्तों का, लेकिन जो हुआ वह सिर्फ़ एक वैवाहिक झगड़ा नहीं, बल्कि जनता की अदालत में खुला सियासी-सा ड्रामा बन गया।
सीतामढ़ी की वो दोपहर किसी नाटक के मंचन से कम न थी। अदालत में पेशी से निकले पति ने जैसे ही अपनी पूर्व पत्नी को देखा, उसका सारा धैर्य, शालीनता और कानूनी भरोसा सड़क पर फिसल गया। भीड़ के बीच चीखता-चिल्लाता, आँखों में आँसू और ज़बान पर इल्ज़ाम ,युवक ने कहा कि इसने मुझे छोड़ा, और अब किसी मुस्लिम से निकाह कर लिया।
अब भला मजहब के मसले पर जनता चुप कैसे रहती? भीड़ जमा हो गई, मोबाइल कैमरे ऑन हो गए, और सड़क बन गई एक सजीव स्टूडियो, जहाँ पति ने अपना दिल भी उड़ा दिया और गरिमा भी।उसका दावा था कि पत्नी उसकी है, शादीशुदा है, और दोनों का एक बच्चा भी है। पर अब, पत्नी क़ानूनी तौर पर तलाक़ की राह पर है, और उस राह पर कोई और हमसफ़र भी मिल गया है।
जनाब अब अपनी पत्नी को अपने साथ नहीं रखना चाहते, पर बच्चा ज़रूर चाहिए। एक तरफ़ दिल टूटा है, दूसरी तरफ़ अधिकार की जिद्द है। उन्होंने चिल्ला-चिल्ला कर कहा कि क़ानून कहे या ना कहे, बच्चा मेरा है, और मैं उसे लेकर रहूंगा।
इधर पत्नी की चुप्पी ने भी एक अजीब मौन व्यथा की कविता लिख दी। उसने सड़क पर ज़्यादा कुछ नहीं कहा, शायद इसलिए कि उसकी तरफ़ की कहानी अब अदालत के कागज़ों में बंद है।लोगों के लिए यह घटना एक निःशुल्क थियेटर बन गई थी। कोई वीडियो बना रहा था, तो कोई "कौन सच्चा, कौन झूठा" की बहस कर रहा था। कुछ को इसमें इश्क़ में ग़द्दारी दिखी, कुछ ने संविधान की नज़रों से देखा।
सवाल ये नहीं कि कौन सही है, सवाल ये है कि प्यार जब पब्लिक हो जाए, तो इज़्ज़त कहां छुपे?औरत को दोष देना सबसे आसान है, और आदमी की आहत भावनाओं को जस्टिफाई करना भी समाज का पुराना हुनर है।लेकिन क्या सड़क पर ड्रामा, बच्चे के लिए हंगामा और मज़हब की ज़ुबान ही समाधान हैं?
कभी शायर ने कहा था कि “वो मोहब्बत भी तुम्हारी थी, बेवफ़ाई भी तुम्हारी, हम तो बस तमाशबीन थे, जो पत्थर भी खा गए।”
सीतामढ़ी की इस कहानी में प्यार, धोखा, धर्म और दावा सब कुछ है।बस इज़्ज़त, संवेदनशीलता और समझदारी नदारद हैं।अब अदालत क्या फ़ैसला सुनाएगी, ये तो वक्त बताएगा। लेकिन इतना तय है कि जब रिश्ते सड़क पर उतर आते हैं, तो इंसानियत अकसर शर्म से आंखें झुका लेती है।
रिपोर्ट- कुलदीप भारद्वाज