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दीपावली पर उल्लूयों की बढ़ती है डिमांड, जानें क्यों चढ़ती है उल्लू की बली

दीपावली और उल्लू का कनेक्शन बहुत पुराना है। कोई इसे शुभ मानता है तो कोई अशुभ। वहीं, कई लोग उल्लूयों को खरीदते हैं और उसकी बलि चढ़ाते हैं। लेकिन ये करना गलत है। चलिए जानते हैं दीपावली से जुड़े उल्लू की कहानियों और मान्यताओं के बारे में।

दीपावली पर उल्लूयों की बढ़ती है डिमांड, जानें क्यों चढ़ती है उल्लू की बली

हिंदू शास्त्रों में माना गया है कि दीपावली के लिए उल्लू को देखने से आपकी पूजा सफल होती है। साथ ही आपके साथ कुछ अच्छा और शुभ होता है। वहीं, बाजारों में उल्लू की डिमांड बढ़ जाती है। काले बाजार में उनकी कीमत 10 हजार रुपए से लेकर 50 हजार तक चली जाती है। दीवाली की रात अमावस की रात होती है। इस रात बड़े पैमाने पर उल्लू की बलि देने की भी बात कही जाती है। 


माना जाता है कि लक्ष्मी जी उल्लू की सवारी करती हैं। माना जाता है कि दीवाली के दिन उल्लू की बलि देने से लक्ष्मी जी हमेशा के लिए घर में बस जाती हैं। उल्लुओं के धन-समृद्धि से सीधे संबंध या शगुन-अपशगुन को लेकर ढेरों किस्से-कहानियां हैं। बता दें कि उल्लू निशाचर है, एकांतप्रिय है और दिनभर कानों को चुभने वाली आवाज निकालता है, इसलिए इसे अलक्ष्मी भी माना जाता है। यानी लक्ष्मी की बड़ी बहन, जो दुर्भाग्य की देवी हैं और उन्हीं के साथ जाती हैं। इसके पूर्वजन्मों का हिसाब चुकाया जाना बाकी हो। एक मान्यता है कि लक्ष्मी का जन्म अमृत और उनकी बड़ी बहन अलक्ष्मी का जन्म हालाहल यानी विष से हुआ था।


माना जाता है कि लक्ष्मी विशालकाय सफेद उल्लू पर विराजती हैं। यही वजह है कि किसी भी बंगाली घर में जाएं, वहां घर आए उल्लू को कभी भी उड़ाया नहीं जाता, चाहे वो कितनी ही तीखी आवाज निकालता रहे। खासकर सफेद उल्लू को वहां खास मेहमान की तरह देखा जाता है, जिसका लक्ष्मी जी से सीधा ताल्लुक है। ऐसा भी माना जाता है कि उल्लू में तांत्रिक शक्तियां होती हैं और घर या व्यावसायिक संस्थान के अंदर इनकी बलि से सुख-समृद्धि हमेशा के लिए पैर तोड़कर वहीं ठहर जाती है। यही वजह है कि दिवाली के कुछ दिन पहले से ही अवैध पक्षी विक्रेता एक-एक उल्लू को चार से दस हजार में बेचते हैं। इस पक्षी के वजन, उसके रंग और दूसरी विशेषताओं को देखकर दाम तय होता है।

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