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आज है शरद पूर्णिमा, चंद्र की रोशनी में खीर बनाने की है परंपरा

शरद पूर्णिमा

इस साल शरद पूर्णिमा की तारीख को लेकर थोड़ा क्ंफूजन है। तिथियों की घट-बढ़ की वजह से आश्विन मास की पूर्णिमा 16 और 17 अक्टूबर को है। 16 अक्टूबर यानी की आज शाम करीब 7 बजे पूर्णिमा तिथि शुरू होगी, जो कि 17 अक्टूबर की शाम करीब 5 बजे तक रहेगी। शरद पूर्णिमा पर रात में पूजा-पाठ करने का विशेष महत्व है और 16 अक्टूबर की रात ही पूर्णिमा तिथि रहेगी, इसलिए अधिकतर क्षेत्रों में आज रात ही शरद पूर्णिमा मनाई जाएगी।


बताया जाता है कि शरद पूर्णिमा की रात चंदा मामा की रोशनी में खीर बनाने की परंपरा है। रात में ही देवी लक्ष्मी की विशेष पूजा की जाती है। खीर का भोग लगाया जाता है। इस तिथि पर श्रीकृष्ण गोपियों संग महारास रचाते हैं। जानिए इस पर्व से जुड़ी खास बातें।


शरद पूर्णिमा को कोजागरी पूर्णिमा भी कहते हैं। माना जाता है कि इस तिथि रात देवी लक्ष्मी भगवान विष्णु के साथ पृथ्वी लोक का भ्रमण करती हैं यानी घूमती हैं। रात में भ्रमण करते समय देवी देखती हैं कि कौन भक्त उनकी पूजा कर रहा है, देवी भक्तों से पूछती हैं कि को जागृति यानी कौन जाग रहा है, जो भक्त इस रात में जागकर देवी पूजा करते हैं, उन्हें लक्ष्मी जी की विशेष कृपा मिलती है।


शरद पूर्णिमा की रात गणेश पूजन के बाद देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा में दक्षिणावर्ती शंख से अभिषेक करें। इसके लिए शंख में केसर मिश्रित दूध भरें और इस दूध से महालक्ष्मी-विष्णु की प्रतिमाओं को स्नान कराएं। दूध के बाद प्रतिमाओं पर शुद्ध जल अर्पित करें। पानी में तुलसी के पत्ते भी डाल लें। जल से अभिषेक करने के बाद भगवान का वस्त्र और हार-फूल से श्रृंगार करें। देवी लक्ष्मी को लाल वस्त्र और विष्णु जी को पीले वस्त्र अर्पित करना चाहिए। चंदन से तिलक लगाएं। कुमकुम, गुलाल, अबीर, इत्र, मौसमी फल आदि पूजन सामग्री चढ़ाएं।


चंद्र की रोशनी में बनी खीर में तुलसी के पत्ते डालें और विष्णु-लक्ष्मी को भोग लगाएं। धूप-दीप जलाकर आरती करें। पूजा में ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय और ऊँ महालक्ष्मयै नमः मंत्र का जप करें। मंत्र जप की संख्या 108 होगी तो बहुत शुभ रहेगा। जप के लिए तुलसी की माला का इस्तेमाल करें। पूजा के अंत में भगवान से जानी-अनजानी गलतियों के लिए क्षमा याचना करनी चाहिए। पूजा के बाद प्रसाद बांटें और खुद भी लें।

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