ऑपरेशन आरोग्य' का महाधमाका - डीएम की सख्ती और RTI कार्यकर्ता की जिद रंग लाई: 5 महीने से दबी फाइल खुली, फर्जी DPM के खिलाफ धोखाधड़ी का केस दर्ज!
फर्जी एमबीए डिग्री के सहारे वर्षों तक विभाग को चूना लगाने वाले तत्कालीन DPM मो. मिन्नतुल्लाह के खिलाफ सदर थाना में कांड संख्या 624/25 दर्ज कर ली गई है। यह कार्रवाई सिविल सर्जन डॉ. ललन ठाकुर के लिखित आवेदन पर की गई है
Supaul - सुपौल के स्वास्थ्य विभाग में फर्जी डिग्री और भ्रष्टाचार के खिलाफ जारी 'ऑपरेशन आरोग्य' को एक बड़ी सफलता मिली है। जिलाधिकारी के कड़े रुख और आरटीआई कार्यकर्ता अनिल कुमार सिंह की सक्रियता के बाद, फर्जी डिग्री के सहारे डीपीएम जैसे महत्वपूर्ण पद पर काबिज मो. मिन्नतुल्लाह के विरुद्ध एफआईआर दर्ज कर ली गई है।
ऑपरेशन आरोग्य का असर: ठंडे बस्ते से निकली कार्रवाई की फाइल
भ्रष्टाचार मुक्त जागरूकता अभियान के संयोजक अनिल कुमार सिंह द्वारा चलाए जा रहे 'ऑपरेशन आरोग्य' की दूसरी किश्त जारी होते ही प्रशासन हरकत में आया। जिलाधिकारी सावन कुमार के आदेश के बावजूद पिछले पांच महीनों से कार्रवाई की जो फाइल विभाग में दबी पड़ी थी, उसे आखिरकार खोलना पड़ा। सिविल सर्जन डॉ. ललन ठाकुर के आवेदन पर सदर थाना में धोखाधड़ी की धाराओं के तहत मामला दर्ज कर लिया गया है।
फर्जी डिग्री के सहारे वर्षों तक किया सरकारी सेवा का उपभोग
जांच में यह स्पष्ट हुआ है कि मो. मिन्नतुल्लाह ने मेघालय स्थित चंद्र मोहन झा (CMJ) यूनिवर्सिटी की फर्जी एमबीए डिग्री का इस्तेमाल किया था। वह 16 फरवरी 2019 से सरायगढ़ में प्रखंड स्वास्थ्य प्रबंधक के रूप में कार्यरत थे और 7 फरवरी 2022 को पदोन्नत होकर जिला स्वास्थ्य समिति में डीपीएम (DPM) बन गए। इसी साल अगस्त तक वे इस पद पर बने रहे, जबकि यूजीसी और सुप्रीम कोर्ट ने इस यूनिवर्सिटी की डिग्रियों को बहुत पहले ही अवैध घोषित कर दिया था।
करोड़ों की वित्तीय अनियमितता उजागर होने की संभावना
मिन्नतुल्लाह के कार्यकाल के दौरान जिला स्वास्थ्य समिति द्वारा किए गए खर्चों पर अब सवाल उठने लगे हैं। जानकारों का मानना है कि यदि उनके पूरे कार्यकाल की ऑडिट और गहन जांच कराई जाती है, तो स्वास्थ्य विभाग में करोड़ों रुपये के वारे-न्यारे होने का मामला सामने आ सकता है। फर्जी अधिकारी के हस्ताक्षर से हुए भुगतानों और योजनाओं के आवंटन की पारदर्शिता पर अब जांच की तलवार लटक रही है।
पत्नी की नियुक्ति भी सवालों के घेरे में
इस फर्जीवाड़े की जड़ें और भी गहरी हैं। आरोपी डीपीएम ने अपनी पत्नी निखत जहाँ परवीन को भी उसी फर्जी यूनिवर्सिटी की डिग्री के आधार पर निर्मली अस्पताल में प्रबंधक के पद पर नियुक्त करवाया था। हालांकि, जिलाधिकारी की सख्ती और जांच शुरू होते ही उनकी पत्नी ने पद से इस्तीफा दे दिया था। वर्तमान में, सामाजिक कार्यकर्ताओं और आम जनता की नजर इस बात पर टिकी है कि पुलिस उनकी पत्नी पर कब कार्रवाई करती है।
यूनिवर्सिटी के इतिहास ने खोली पोल
सीजेएम यूनिवर्सिटी की स्थापना 2009 में हुई थी, लेकिन मेघालय सरकार ने अनियमितताओं के चलते इसे बंद कर दिया था। वर्ष 2010 से 2013 के बीच जारी किए गए इसके सभी प्रमाणपत्रों को अवैध घोषित किया जा चुका है। मिन्नतुल्लाह ने इसी प्रतिबंधित अवधि (2011-13) का सर्टिफिकेट जमा कर नौकरी हासिल की थी, जिसे विभाग के तत्कालीन अधिकारियों ने नजरअंदाज कर दिया था।
रिपोर्ट - विनय कुमार मिश्रा