एक समय था जब किंगफिशर एयरलाइंस को भारत की सबसे प्रीमियम और बेहतरीन एयरलाइन माना जाता था। विजय माल्या की महत्वाकांक्षी योजना के तहत 2005 में शुरू हुई इस एयरलाइन ने यात्रियों को एक नया अनुभव देने का वादा किया था। लेकिन महज सात साल के भीतर ही यह चमचमाती एयरलाइन दिवालिया हो गई और 2012 में इसे अपना परिचालन बंद करना पड़ा। सवाल उठता है कि भारत की सबसे सस्ती और सबसे शानदार एयरलाइन क्यों बर्बाद हो गई?
किंगफिशर एयरलाइंस की शुरुआत विजय माल्या ने एक प्रीमियम ब्रांड के तौर पर की थी। इसमें यात्रियों को इन-फ्लाइट एंटरटेनमेंट, बेहतरीन सीटें और स्वादिष्ट भोजन जैसी सुविधाएं दी जाती थीं, जो उस समय भारतीय विमानन क्षेत्र में दुर्लभ थीं। यात्रियों ने इसे खुले दिल से स्वीकार किया और किंगफिशर एयरलाइंस तेजी से लोकप्रिय हो गई।
एयरलाइन ने अपनी सेवाओं का विस्तार किया, कई नए रूट जोड़े और बड़े पैमाने पर विमान खरीदे। इतना ही नहीं, किंगफिशर एयरलाइंस दुनिया का सबसे बड़ा यात्री विमान एयरबस ए380 ऑर्डर करने वाली भारत की पहली एयरलाइन बन गई।हालाँकि, इस तेजी से विस्तार और उच्च महत्वाकांक्षाओं ने किंगफिशर की कमर तोड़ दी। 2007 में, किंगफिशर ने कम लागत वाली एयरलाइन एयर डेक्कन का अधिग्रहण करके अपने ग्राहक आधार को बढ़ाने की कोशिश की, लेकिन इस सौदे ने एयरलाइन पर वित्तीय बोझ बढ़ा दिया। किंगफिशर के साथ एयर डेक्कन का विलय चुनौतीपूर्ण साबित हुआ और इसने मुनाफे के बजाय घाटे में जाना शुरू कर दिया।
2008 के बाद से एयरलाइन को भारी वित्तीय संकट का सामना करना पड़ा। ईंधन की बढ़ती कीमतों, उच्च परिचालन लागत और कर्ज के कारण कंपनी की वित्तीय स्थिति कमजोर होती चली गई। इसके अलावा बढ़ती प्रतिस्पर्धा ने किंगफिशर के लिए मुनाफा कमाना और भी मुश्किल बना दिया। 2011 तक, किंगफिशर एयरलाइंस भारी कर्ज में डूब चुकी थी और कर्मचारियों को वेतन देने में भी असमर्थ थी। इसके कारण, कई कर्मचारी हड़ताल पर चले गए और उड़ानें बार-बार रद्द होने लगीं। इससे एयरलाइन की साख पर असर पड़ा और यात्रियों का भरोसा डगमगाने लगा। हालात इतने खराब हो गए कि अक्टूबर 2012 में नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (डीजीसीए) ने किंगफिशर एयरलाइंस का लाइसेंस निलंबित कर दिया। यह इस बात का संकेत था कि कंपनी पूरी तरह से डूब चुकी है।
एयरलाइन के डूबने के बाद विजय माल्या को कानूनी परेशानियों का सामना करना पड़ा। उन पर बैंकों से लिए गए हजारों करोड़ के कर्ज को चुकाने में विफल रहने का आरोप लगा। 2016 में वे देश छोड़कर ब्रिटेन भाग गए, जहां से भारत सरकार उन्हें प्रत्यर्पित करने की कोशिश कर रही है। किंगफिशर एयरलाइंस की कहानी यह सिखाती है कि सफलता सिर्फ बड़े सपने देखने से नहीं मिलती, बल्कि सही प्रबंधन और संतुलित वित्तीय रणनीति भी जरूरी है। अत्यधिक कर्ज, बिना सोचे-समझे विस्तार और खराब प्रबंधन किसी भी बड़े व्यवसाय को तबाह कर सकता है।