Delhi crime: दिल्ली में नाबालिग अपराध क्यों बढ़ रहे हैं? साल 2025 के पहले 10 दिनों में 13 बच्चों की गिरफ्तारी ने बढ़ाई चिंता
Delhi crime: दिल्ली में 2025 के पहले 10 दिनों में 13 नाबालिग गंभीर अपराधों में गिरफ्तार किए गए हैं। हत्या, लूट, रेप और गैंग इंफ्लुएंस के बढ़ते मामलों के पीछे क्या हैं मुख्य कारण? जानिए पूरी रिपोर्ट।
Delhi crime: साल 2025 के अंतिम महीने में दिल्ली में नाबालिगों द्वारा किए जा रहे अपराध अचानक सुर्खियों में आ गए हैं। दिसंबर के शुरुआती दस दिनों में ही पुलिस ने ऐसे कई मामलों में कार्रवाई की, जिनमें आरोपी बच्चों की उम्र 18 वर्ष से कम है। राजधानी के अलग-अलग इलाकों—रोहिणी, शकरपुर, वजीराबाद और निजामुद्दीन—में हुए अपराधों ने पुलिस और शहर दोनों के सामने नई चुनौती खड़ी कर दी है।
बढ़ते अपराधों ने पुलिस को किया सतर्क
नाबालिगों से जुड़े आधिकारिक आंकड़े बताते हैं कि जनवरी से अगस्त तक की अवधि में हालात बेहद चिंताजनक रहे। हत्या, यौन हिंसा, लूट और चोरी जैसे गंभीर मामलों में बड़ी संख्या में किशोर शामिल पाए गए। पुलिस के रिकॉर्ड इस बात का संकेत हैं कि राजधानी में बच्चों का संगठित अपराधों की ओर झुकाव तेज़ी से बढ़ा है।
क्यों भटक रहे हैं नाबालिग? घर और स्कूल का छूटता नियंत्रण
कई बच्चे स्कूल बीच में छोड़ देते हैं और घर पर उनकी सही निगरानी नहीं हो पाती। माता-पिता के व्यस्त जीवन और टूटती पारिवारिक संरचना का असर बच्चों के व्यवहार पर साफ दिखने लगा है। गलत संगत में पड़े बच्चे धीरे-धीरे अपराध की ओर बढ़ जाते हैं और घरवालों को इसका अंदाज़ भी नहीं होता।
सोशल मीडिया की दुनिया: ‘दिखावे’ का खतरनाक प्रभाव
इंटरनेट और सोशल मीडिया ने कम उम्र के बच्चों को एक ऐसी दुनिया दे दी है, जहां लोकप्रियता और स्टाइल की होड़ चलती रहती है। हथियार दिखाने वाले वीडियो, गैंगस्टर जैसे रील, और ‘हीरो’ बनने की चाह उन्हें गलत दिशा में धकेलने लगी है।बच्चों को यह समझ ही नहीं आता कि मनोरंजन के नाम पर देखा गया कंटेंट वास्तविक दुनिया में क्या असर डाल सकता है।
नशा, गैंग और अपराध की राह
दिल्ली में सक्रिय कई अपराधी गिरोह अब नाबालिगों को अपने साथ जोड़ने लगे हैं। उन्हें पैसों या नशे का लालच दिया जाता है और फिर छोटे–बड़े अपराध करवाए जाते हैं। गैंगस्टर जानते हैं कि नाबालिगों को कानून के तहत कम सज़ा मिलती है, इसलिए वे जोखिम भरे काम इन्हीं से करवाते हैं। बाइक चलाने वाले किशोर इन गिरोहों के सबसे आसान शिकार बन जाते हैं।
टूटते संयुक्त परिवार और बढ़ता अकेलापन
मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि संयुक्त परिवारों के बिखरने से बच्चों का भावनात्मक संतुलन कमजोर हुआ है। बड़े-बुजुर्गों की सीख, भाई-बहनों का सहारा और परिवार की सामूहिक देखभाल ने बच्चों को हमेशा सुरक्षित रखा था। अब बच्चों के पास न तो सही मार्गदर्शन है और न ही वह माहौल, जो उन्हें गलत कामों से दूर रख सके।
इंटरनेट कंटेंट और किशोरावस्था की जिज्ञासाएं
किशोर उम्र में आकर्षण और जिज्ञासा स्वाभाविक है, लेकिन मोबाइल और सोशल मीडिया पर आसानी से उपलब्ध आपत्तिजनक सामग्री बच्चों के दिमाग पर गहरा प्रभाव डालती है। वे संबंधों, सफलता और प्रसिद्धि को बहुत हल्के में समझने लगते हैं, और साथियों को प्रभावित करने के लिए गलत फैसले ले बैठते हैं।