Fraud Crime: 32 साल पुराना मनी ऑर्डर घोटाला! 1500 रुपये की धोखाधड़ी पर रिटायर्ड उप-डाकपाल को 3 साल जेल, 10,000 जुर्माना

Fraud Crime: नोएडा की अदालत ने 1993 के मनी ऑर्डर धोखाधड़ी मामले में रिटायर्ड उप-डाकपाल को दोषी ठहराया। 1500 रुपये की गबन पर कोर्ट ने 3 साल की सजा और ₹10,000 जुर्माना लगाया।

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32 साल पुराने मामले में सुनाया फैसला- फोटो : social media

Fraud Crime:  उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्ध नगर जिले की एक अदालत ने 32 साल पुराने मनी ऑर्डर धोखाधड़ी मामले में बड़ा फैसला सुनाया है। अदालत ने रिटायर उप-डाकपाल महेंद्र कुमार को तीन साल की सजा और ₹10,000 का जुर्माना लगाया है। अदालत ने कहा कि यदि जुर्माना नहीं भरा गया तो दोषी को एक साल अतिरिक्त कारावास भुगतना होगा। यह मामला 12 अक्टूबर 1993 का है।

गबन की गई राशि लौटाने से अपराध खत्म नहीं होता

एसीजेएम-1 मयंक त्रिपाठी ने फैसला सुनाते हुए कहा कि यह अपराध आईपीसी की धारा 409 (लोक सेवक द्वारा आपराधिक विश्वासघात) और 420 (धोखाधड़ी) के तहत गंभीर है। कोर्ट ने अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट के 1988 के निर्णय – राम शंकर पटनायक बनाम ओडिशा राज्य का हवाला दिया और कहा कि एक बार जब आपराधिक विश्वासघात सिद्ध हो जाता है, तो राशि वापस करने से अपराध समाप्त नहीं होता। अदालत केवल सजा में रियायत दे सकती है।”

मनी ऑर्डर धोखाधड़ी कैसे हुई?

अभियोजन पक्ष के अनुसार, नोएडा सेक्टर 15 के निवासी अरुण मिस्त्री ने बिहार के समस्तीपुर में अपने पिता मदन महतो को ₹1,500 का मनी ऑर्डर भेजा था। उस समय महेंद्र कुमार, नोएडा सेक्टर 19 डाकघर में उप-डाकपाल के पद पर कार्यरत थे। उन्होंने ₹1,575 (₹1,500 + ₹75 कमीशन) की राशि ली, लेकिन उसे सरकारी खाते में जमा नहीं किया। इसके बजाय उन्होंने फर्जी रसीद जारी कर दी।

जांच में खुली पोल पैसे जमा नहीं किए गए

प्राप्तकर्ता को पैसे न मिलने पर अरुण मिस्त्री ने 3 जनवरी 1994 को डाकघर के अधीक्षक सुरेश चंद्र से शिकायत की। आंतरिक जांच में पाया गया कि रकम सरकारी खाते में नहीं जमा की गई थी और रसीद जाली थी। बाद में अधीक्षक ने सेक्टर 20 पुलिस थाना, नोएडा में केस दर्ज कराया। लंबी कानूनी प्रक्रिया के बाद 2025 में अदालत ने महेंद्र कुमार को दोषी ठहराया।

32 साल बाद मिला न्याय

तीन दशकों से अधिक समय तक यह मामला अदालत में चलता रहा। आखिरकार 31 अक्टूबर 2025 को कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि यह एक स्पष्ट आपराधिक विश्वासघात का मामला है।