विपक्ष के खिलाफ 'एक्शन' पर हाईकोर्ट का हथौड़ा: नेशनल हेराल्ड के बाद अब महुआ मामले में फंसी सीबीआई, लोकपाल को एक महीने में फैसला बदलने की चुनौती!
टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा को दिल्ली हाईकोर्ट से बड़ी राहत मिली है। कोर्ट ने लोकपाल द्वारा सीबीआई को चार्जशीट दायर करने की दी गई मंजूरी पर सवाल उठाते हुए इसे 'प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन' माना है
New Delhi - टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा को दिल्ली हाईकोर्ट से बड़ी राहत मिली है। कोर्ट ने लोकपाल द्वारा सीबीआई को चार्जशीट दायर करने की दी गई मंजूरी पर सवाल उठाते हुए इसे 'प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन' माना है। हाईकोर्ट ने अब लोकपाल को निर्देश दिया है कि वह महुआ की दलीलों पर दोबारा विचार कर एक महीने के भीतर नया फैसला ले।
वकीलों की दलील और कोर्ट का रुख
दिल्ली हाईकोर्ट में महुआ मोइत्रा की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता निधेश गुप्ता ने पैरवी की। उन्होंने अदालत को बताया कि लोकपाल ने महुआ मोइत्रा का पक्ष सुने बिना और उनकी दलीलों पर गौर किए बिना ही सीबीआई को चार्जशीट दाखिल करने की हरी झंडी दे दी। बचाव पक्ष ने इसे लोकपाल अधिनियम के विपरीत और कानून की प्रक्रिया का उल्लंघन बताया।
लोकपाल के फैसले पर सवाल
महुआ मोइत्रा के वकील ने अदालत में कड़ा रुख अपनाते हुए कहा कि लोकपाल का निर्णय पूरी तरह से गलत है। उन्होंने मांग की थी कि सीबीआई की कार्रवाई पर अंतरिम रोक लगाई जाए। हालांकि शुरुआत में कोर्ट ने अंतरिम राहत से इनकार किया था, लेकिन दलीलों को गहराई से सुनने के बाद कोर्ट ने माना कि प्रक्रिया में खामी रही है।
हाईकोर्ट का अंतिम निर्देश
सुनवाई के बाद दिल्ली हाईकोर्ट ने साफ कर दिया कि लोकपाल को महुआ मोइत्रा की दलीलों पर ठीक से विचार करना चाहिए था। अदालत ने अब लोकपाल को अपनी गलती सुधारने का मौका देते हुए एक महीने की समयसीमा तय की है। इस दौरान लोकपाल को महुआ के पक्ष को सुनकर नया निर्णय लेना होगा, जिससे सीबीआई की चार्जशीट प्रक्रिया फिलहाल अधर में लटक गई है।