Shameful Statements: मंत्री की सांप्रदायिक, शर्मनाक, बेहया बयानबाजी, हाईकोर्ट ने दिखाया आईना और सुप्रीम कोर्ट ने लगाई फटकार
Shameful Statements: मंत्री विजय शाह ने "ऑपरेशन सिंदूर" की प्रेस ब्रीफ देने वाली कर्नल सोफिया कुरैशी के खिलाफ सांप्रदायिक जहर उगला। ..

Shameful Statements: पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने देश को झकझोर दिया, लेकिन हमारी वीर सेना ने पाकिस्तान को सबक सिखाकर हर भारतीय का सीना गर्व से चौड़ा कर दिया। मगर इस गौरवमयी पल में भी कुछ "नफरती ट्रोल्स" और "सांप्रदायिक सोच के सिपाही" अपनी नीचता की सारी हदें पार करने में जुट गए। इन बिगड़ैल डिजिटल गुंडों ने ऑनलाइन गाली-गलौज का ऐसा बाजार गर्म किया कि न विदेश सचिव विक्रम मिसरी की गरिमा बची, न ओलंपिक चैंपियन नीरज चोपड़ा का सम्मान। आखिर, सामाजिक समरसता की बात इनके "विभाजनकारी एजेंडे" को जो ठेस पहुंचाती है!
लेकिन सारी हदें तब टूटीं, जब मध्य प्रदेश के भाजपा मंत्री विजय शाह ने "ऑपरेशन सिंदूर" की प्रेस ब्रीफ देने वाली कर्नल सोफिया कुरैशी के खिलाफ सांप्रदायिक जहर उगला। एक महिला सैन्य अधिकारी, जिसने देश के लिए अनगिनत बलिदान दिए, उनके खिलाफ "गटर की भाषा" और आतंकियों से तुलना करने की हिमाकत! यह बयान सोमवार को दिया गया, लेकिन मंत्री जी के खिलाफ FIR बुधवार रात को तब दर्ज हुई, जब मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने सरकार को लताड़ लगाई। हाईकोर्ट ने न सिर्फ मंत्री को आईना दिखाया, बल्कि उन तमाम बेलगाम बयानबाजों को सख्त संदेश दिया कि "अब बहुत हो चुका!"
मंत्री जी ने जब सुप्रीम कोर्ट में राहत की गुहार लगाई, तो वहां भी उन्हें मुंह की खानी पड़ी। कोर्ट ने दो टूक कहा कि ऐसे संकट के समय में एक मंत्री को जिम्मेदारी से बोलना चाहिए। आनन-फानन में शाह ने माफी मांगी, सफाई दी कि वे कर्नल कुरैशी को "अपनी बहन से ज्यादा सम्मान" देते हैं। लेकिन जनाब, कमान से निकला तीर और जुबान से निकला जहर वापस नहीं लौटता! नुकसान तो हो चुका। और सबसे बड़ी विडंबना? भाजपा का शीर्ष नेतृत्व इस मामले में चुप्पी साधे "इंतजार" का खेल खेल रहा है। न कोई तत्काल कार्रवाई, न मंत्रिमंडल से हटाने की पहल। क्यों? क्योंकि शाह आदिवासी कल्याण मंत्री हैं, और मध्य प्रदेश में अनुसूचित जनजातियों की आबादी का पांचवां हिस्सा है—राजनीतिक समीकरण जो ठहरा!
लेकिन सवाल यह है कि क्या राजनीतिक मजबूरियां देश के सशस्त्र बलों और महिलाओं के अपमान को जायज ठहरा सकती हैं? क्या एक मंत्री को नफरत फैलाने की खुली छूट मिलनी चाहिए? भाजपा को चाहिए कि तत्काल अनुकरणीय कार्रवाई करे, ताकि देश को यह संदेश जाए कि हम आतंकवाद और सांप्रदायिकता के खिलाफ एकजुट हैं। हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणियां न सिर्फ शाह, बल्कि हर उस नेता के लिए सबक हैं, जो अनर्गल बयानबाजी को अपनी "राजनीतिक पूंजी" समझते हैं। और हम जनता को भी सोचना होगा कि आखिर हम कैसे-कैसे लोगों को चुनकर संसद और विधानसभाओं में भेज रहे हैं। अगर यही हाल रहा, तो नफरत की आग में देश का सामाजिक ताना-बाना जलकर राख हो जाएगा।