अब ट्रैफिक में Honking जाएंगे भूल, हॉर्न की आवाज लगेगी सुपर कूल, नितिन गडकरी कर ली बड़ी तैयारी

N4Nडेस्क: कल्पना कीजिए कि जब आपकी बाइक का हॉर्न तबले की थाप से आगे के वाहन को संकेत देगा, या कार का हॉर्न बांसुरी की मधुर धुन में पीछे वालों से रास्ता मांगेगा. अमूमन हम या आप सड़क पर जाते समय अक्सर पीछे वाली गाड़ियों के हॉर्न से जरूर झल्लाते है. लेकिन क्या हो जब आप सड़क पर चल रहे हों और आपको कभी शहनाई तो कभी तबले की आवाज सुनाई देने लगे. चौंकिए मत, बात बिल्कुल सही है और अगर केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी की चली तो बीप-बीप और पौं-पौं की आवाज गुजरे जमाने की बात हो जाएगी. नितिन गडकरी ने एक ऐसा अनोखा प्रस्ताव सामने रखा है, जो देश की ट्रैफिक संस्कृति को ही बदलने का माद्दा रखता है. अब वाहन के हॉर्न में न शोर होगा, न गुस्सा, बल्कि बंसी, तबला, सारंगी और हारमोनियम जैसी भारतीय वाद्य यंत्रों की मधुर ध्वनि सुनाई देगी. यह कोई कल्पना नहीं, बल्कि केंद्र सरकार के अगले संभावित कानून की दिशा है. सवाल उठता है क्या यह बदलाव भारतीय ट्रैफिक संस्कृति को अधिक संवेदनशील और शिष्ट नहीं बना देगा?
क्या बोले गडकरी?
एक कार्यक्रम में बोलते हुए गडकरी ने कहा, "मैं कानून लाने की योजना बना रहा हूं कि सभी वाहनों के हॉर्न की ध्वनि भारतीय वाद्य यंत्रों से प्रेरित होनी चाहिए, ताकि वह सुनने में सुरीली लगे, जैसे बंसी, तबला, वायलिन, हारमोनियम..." यह न केवल एक अनोखा प्रस्ताव है, बल्कि शहरी जीवन की ध्वनि प्रदूषण से जूझती जनता के लिए राहत का वादा भी है.
क्यों ज़रूरी है यह बदलाव?
गडकरी के अनुसार, देश के वायु प्रदूषण में 40% योगदान ट्रांसपोर्ट सेक्टर का है. हॉर्न की कानफाड़ू आवाज़ें शहरी तनाव और मानसिक अशांति को और बढ़ाती हैं. इसीलिए सरकार न सिर्फ इलेक्ट्रिक और बायो-फ्यूल वाहनों को बढ़ावा दे रही है, बल्कि अब ध्वनि प्रदूषण पर भी कड़ा प्रहार करने की दिशा में बढ़ रही है.
भारतीय ऑटोमोबाइल सेक्टर का तेज़ उभार
2014 में भारत का ऑटोमोबाइल सेक्टर ₹14 लाख करोड़ रुपये का था. जो 2024 तक यह बढ़कर ₹22 लाख करोड़ रुपये का हो गया है. भारत जापान को पछाड़ कर तीसरा सबसे बड़ा ऑटोमोबाइल बाजार बन चुका है.अब सिर्फ अमेरिका और चीन आगे हैं भारत सबसे ज्यादा दो-पहिया और कार निर्यात कर रहा है, जिससे राजस्व भी लगातार बढ़ रहा है.
ट्रैफिक साउंड में भारतीयता का तड़का!
गडकरी का यह प्रस्ताव भारतीय परंपरा और आधुनिक नियमन का अद्भुत संगम कहा जा सकता है. यह न केवल पर्यावरण के लिए लाभकारी होगा, बल्कि यह भारतीय सांस्कृतिक ध्वनि पहचान को भी वैश्विक स्तर पर स्थापित कर सकता है.अब सबकी नजर इस संभावित कानून के ड्राफ्ट पर टिकी है. क्या यह सिर्फ चार दीवारों में सिमटा प्रस्ताव रहेगा, या सड़कों पर सच में तबला-बंसी बजेगी? यदि यह कानून बनता है, तो यह न केवल एक वैधानिक प्रयोग होगा, बल्कि भारत की ट्रैफिक व्यवस्था में एक सांस्कृतिक क्रांति भी लाएगा.