सुप्रीम कोर्ट ने रद्द की रेप दोषी की सजा, आरोपी बना पति, कहा – यह दुर्लभ मामला

सुप्रीम कोर्ट ने दुष्कर्म मामले में दोषी की 10 साल की सजा रद की। कोर्ट ने माना कि आपसी सहमति के संबंध को गलतफहमी में आपराधिक रंग दिया गया था। अब दोनों शादीशुदा हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने रद्द की रेप दोषी की सजा, आरोपी बना पति,  कह

New Delhi -  सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने इस मामले में 'पूर्ण न्याय' सुनिश्चित करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत मिली अपनी विशेष शक्तियों का उपयोग किया। कोर्ट ने कहा कि यह एक दुर्लभ मामला है जहाँ अदालत के हस्तक्षेप से न केवल सजा रद हुई, बल्कि दो पक्ष एक बार फिर से एक साथ आ सके। अदालत ने माना कि यदि दंड जारी रहता, तो एक वैवाहिक जीवन शुरू होने से पहले ही तबाह हो जाता।

ट्रायल कोर्ट ने सुनाई थी 10 साल की कड़ी सजा

यह मामला मूल रूप से मध्य प्रदेश का है, जहाँ ट्रायल कोर्ट ने व्यक्ति को दुष्कर्म का दोषी मानते हुए 10 साल के कठोर कारावास और 55,000 रुपये जुर्माने की सजा सुनाई थी। दोषी ने अप्रैल 2024 में हाई कोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी थी, जिसने उसकी सजा निलंबित करने की याचिका खारिज कर दी थी। मामला जब सुप्रीम कोर्ट पहुँचा, तो शीर्ष अदालत ने सजा की वैधानिकता के साथ-साथ मानवीय पक्ष को भी परखा।

सोशल मीडिया पर प्यार और फिर एफआईआर की वजह

अदालत ने घटनाक्रम का जिक्र करते हुए बताया कि दोनों की मुलाकात 2015 में एक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर हुई थी। लंबे समय तक आपसी सहमति से संबंध रहने के बाद जब युवक ने शादी की तारीख आगे बढ़ानी चाही, तो महिला में असुरक्षा की भावना पैदा हुई। इसी गलतफहमी के कारण महिला ने नवंबर 2021 में 'शादी के झूठे वादे' का आरोप लगाते हुए एफआईआर दर्ज करा दी, जिसे बाद में दुष्कर्म के अपराध के रूप में देखा गया।

कोर्ट रूम में माता-पिता की मौजूदगी में हुई बातचीत

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने केवल वकीलों की दलीलें नहीं सुनीं, बल्कि अपीलकर्ता और पीड़ित महिला से उनके माता-पिता की उपस्थिति में सीधी बातचीत की। इस चर्चा में यह स्पष्ट हुआ कि दोनों आज भी एक-दूसरे के साथ जीवन बिताने के इच्छुक हैं। इसके बाद कोर्ट ने आरोपी को अंतरिम जमानत दी ताकि वे विवाह की प्रक्रिया पूरी कर सकें।

जुलाई में हुई शादी, अब सुखद वैवाहिक जीवन

अदालत के निर्देश और अंतरिम जमानत के बाद, दोनों पक्षों ने इसी साल जुलाई में एक-दूसरे से औपचारिक रूप से शादी कर ली। कोर्ट को सूचित किया गया कि तब से वे एक साथ रह रहे हैं और उनके बीच अब कोई विवाद नहीं है। पीठ ने अपने फैसले में संतोष व्यक्त किया कि शादी के बाद अब उस पुराने विवाद या सजा को जारी रखने का कोई औचित्य नहीं रह गया है।

सहमति के संबंध को आपराधिक रंग देना गलत

अपने फैसले में पीठ ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा कि अक्सर आपसी सहमति से बने संबंधों को छोटी-मोटी गलतफहमी के कारण आपराधिक रंग दे दिया जाता है। कोर्ट ने माना कि इस मामले में युवक का इरादा कभी भी धोखा देने का नहीं था, बल्कि परिस्थितियों ने इसे 'विवाह के झूठे वादे' का रूप दे दिया था। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जब नियत साफ हो और पक्ष शादी कर लें, तो कानून को सख्त रुख अपनाने के बजाय सुलह को प्राथमिकता देनी चाहिए।