LATEST NEWS

धर्म कथा भाग 2: राम कौन थे,महर्षि वाल्मीकि से जब राजा अरिष्टनेमी ने पूछा, ऋषिवर और राम के बीच का संवाद जिंदगी की उलझनों से पल भर में करेगा दूर..पढ़िए

धर्म कथा भाग 2: धर्म कथा News4Nation के इस स्पेशल अंक में आज हम आपको बताएंगे राम कौन थे.., ऋषिवर और राम के बीच का यह संवाद आपकी जिंदगी की उलझनों से पल भर में दूर कर देगा...

धर्म कथा भाग 2
धर्म कथा भाग 2- फोटो : News4Nation

धर्म कथा भाग 2: राजा अरिष्टनेमि ने महर्षि वाल्मीकि से पूछा-भगवन्। ये राम कौन थे? और उनको ऋषि वसिष्ठ ने क्यों और क्या उपदेश दिया था? वाल्मीकि बोले-शाप के कारण मानवरूप धारण किए हुए विष्णु ही राम थे। एक समय भगवान् विष्णु बालोक में गए। सभी ने उनको प्रणाम किया, किन्तु सनत्कुमार शान्तचित्त स्थिरभाव से बैठे रहे। यह देखकर विष्णु को उन पर क्रोध आ गया और उन्होंने उनको शाप दिया सनत्कुमार तुमको अपने निष्काम होने का गर्व है, इसलिए तुम्हारे इस गर्व को दूर करने के लिए मैं तुमको शाप देता हूँ कि तुम शरजन्म नाम के कामी राजा के रूप में पृथ्वी पर जन्म लोगे। सनत्कुमार ने यह सुनकर भगवान् विष्णु से कहा-मैं भी आपको शाप देता हूँ कि आप अपनी सर्वज्ञता को छोड़कर, जिसका कि आपको गर्व है, कुछ दिनों तक अज्ञानी जीव बन कर पृथ्वी पर वास करोगे। वहीं विष्णु अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र राम हुए थे और जब तक ऋषि वसिष्ठ के द्वारा उनको आत्मज्ञान का उपदेश प्राप्त नहीं हुआ था तब तक ये अज्ञानी ही रहे थे।

राम के जीवन से संबंधित प्रश्न 

आत्मज्ञानोपदेश दिए जाने की कथा इस प्रकार है-एक समय, जब राम शैशवावस्था से युवावस्था की ओर बढ़ रहे थे तब उनके मन में यह विचार आया कि यौवन का सार क्या है? संसार में मनुष्य सुखरूपी मृगतृष्णा के पीछे दौड़ते-दौड़ते अपना सम्पूर्ण जीवन व्यतीत कर देता है, किन्तु किसी को भी दुःखरहित सुख की प्राप्ति नहीं होती है। ग्रह-दिन संसार की उलझनों में फैसा रहता है और कभी भी शान्ति का अनुभव नहीं करता है। जन्म लेता है और कुछ समय जीवित रहकर मृत्यु को प्राप्त हो जाता है। कोई भी नहीं जानता कि वह कहाँ से आता है और कहाँ जाता है? यह संसार क्यों बना है? कैसे और कब बना है? इस संसार से मुक्त होने का कोई उपाय है अथवा नहीं है? इत्यादि प्रश्न राम के मन में उठे और वे इन प्रश्नों के विचार में इतने लीन हो गए कि उनकी अपने नित्य-कर्म, भोजन, शयन, उत्पा आदि करने में किसी भी प्रकार की रुचि नहीं रही। 

जड़ शिला की मूर्ति के समान दिन-रात बैठे हुए, सोचते राखत्र राम की ऐसी अवस्था देखकर उनके सेवकों ने बहुत ही घबराकर राजसभा में राजा दशरथ को उनकी इस सोच अवस्था का इस प्रकार वर्णन किया-देव। युवराज राम को अवस्था अत्यन्त ही शोचनीय हो गई है। समझ में ही नहीं आता कि उनको हो क्या गया है। अनेक बार स्मरण कराने पर वे नित्यकर्म करते हैं, अन्यथा नहीं करते हैं। उनकी नित्य में किसी प्रकार का उत्साह नहीं है। सदा ही उदास-उदास रहते हैं। स्नान, देवार्चन, भोजन आदि कभी करते हैं, कभी बिल्कुल उत्साहहीन दिखते हैं। छोटी-छोटी सी बातों पर ये क्रोध करते हैं, क्योंकि वे जो कुछ भी करते हैं मन से नहीं करते हैं। कोई कुछ भी उनको अच्छा नहीं लगता है।

सदा मौन रहते राम 

युवतियाँ उनको प्रसन्न करने के लिए उनके समीप जाती हैं, तो उनसे उनको घृणा होती है उनको नाचते गाते देखकर भी उनसे राम को द्वेष होता है। जितने स्वादु और मनोहर पदार्थ हैं उनको देखकर ये नाक चढ़ा लेते हैं। सदा ही मौन रहते हैं। हास-प्रहास से चिढ़ते हैं। एकान्त चाहते हैं। यदि कभी हम उनको बोलते हुए सुनते हैं, तो ऐसा कहते सुनते हैं-'सम्पत्ति से क्या लाभ? विपत्ति से क्या? घर-गृहस्थ से क्या? राग-रम से क्या? सब व्यर्थ है। किसी भी वस्तु से आनन्द प्राप्त नहीं होता।' हम नहीं जानते कि वे क्या चाहते हैं। किस वस्तु का ध्यान हैं। हम तो यह जानते हैं कि वे प्रतिदिन कृश होते जा रहे हैं, पाण्डु वर्ण हो गए हैं और शरद ऋतु के अन्त में हुए वृक्ष के समान प्रभाहीन होते जा रहे हैं। उनकी ऐसी अवस्था देखकर उनके अन्य भाई भी दुःखी रहते हैं। माताई चिन्ताग्रस्त हैं। हम समझ नहीं पा रहे हैं कि उनके लिए हमको क्या करना चाहिए। इसीलिए देव। हम आपको यह सव सूचित करने आए हैं।

राम की अवस्था शोचनीय हो गई

राम की ऐसी अवस्था सुनकर राजा दशरथ को बहुत शोक हुआ। राजसभा में विश्वामित्र, जो कि अपने यज्ञ की शा के लिए राम और लक्ष्मण को राजा दशरथ से मांगने आए थे, और राजगुरु वसिष्ठ उपस्थित थे। राम की अवस्था सुनकर और राजा को चिन्तित देखकर विश्वामित्र बोले-राजन्। यदि राम की ऐसी अवस्था है तो उनको यहाँ बुलवाओं, हम उनका दुःख निवृत्त करेंगे। गुरु वसिष्ठ उनको ऐसा उपदेश देंगे कि उनका समस्त शोक निवृत्त हो जाएगा और उनको तत्वज्ञान प्राप्त होगा, फलस्वरूप उनको परमानन्द की प्राप्ति होगी। वे संसार में एक आदर्श पुरुष होकर अपना जीवन इस प्रकार व्यतीत करेंगे कि संसार उनका अनुकरण करेगा।

संसार का सच आखिर है क्या

विश्वामित्र के सहानुभूतिपूर्ण वचन सुनकर राजा दशरथ की चिन्ता कुछ कम हुई। उन्होंने राम को बुलवाया। राम वहाँ आए और सभी को यथायोग्य प्रणाम करके बैठ गए। वसिष्ठ और विश्वामित्र के पूछने पर उन्होंने अपने मन की व्यथा विस्तारपूर्वक सुनाई। वे बोले-जैसे जैसे मैं शैशवावस्था से युवावस्था की ओर बढ़ रहा हूँ वैसे वैसे ही मेरे मन में यह विचार दृढ़ होता जा रहा है कि संसार में कोई भी सार वस्तु नहीं है। अतएव जगत् में मेरी कोई आस्था नहीं रही है। मेरी समझ में ही नहीं आता है कि राज्य करने से, भोगों के पीछे दौड़ने से, लक्ष्मी का उपार्जन करने से, सुन्दरियों के सङ्ग से मनुष्य को किस सुख की प्राप्ति होती है। रात-दिन मैं देखता हूँ कि जिनको ये सब वस्तुएँ प्राप्त हैं फिर भी वे महा दुःखी है। संसार के भोगों से सुख की आशा करना भ्रान्ति है, मृगतृष्णारूप है। इन्द्रियों के भोग विषैले सर्प के फण के समान दुःखदायी हैं। 

मनुष्य को किसी भी अवस्था में सुख नहीं

मनुष्य को इस जीवन में कभी और कहीं भी शान्ति प्राप्त नहीं होती है। जीवन के पश्चात् क्या होता है. हम नहीं जानते हैं। मनुष्य को किसी भी अवस्था में सुख नहीं है। शैशवावस्था मोहपूर्ण और दुःखदायी है। युवावस्था स्त्रीरूपी मृगतृष्णा के पीछे दौड़ने में नष्ट हो जाती है। वृद्धावस्था में सब शक्तियाँ क्षीण हो जाती हैं। काल सबको खा जाता है। तब फिर किसलिए मनुष्य संसार के पीछे दौड़ता रहता है? हे ब्रह्मन्। मुझको तो संसार की किसी भी वस्तु को इच्छा नहीं है। मुझको इस जीवन से भी कोई प्रेम नहीं है। कारण कि मुझको इस संसार में कुछ भी सार दिखाई नहीं पड़‌ता है। यदि आप जानते हों तो अवश्य ही कोई ऐसा मार्ग बताएँ जिस पर चलने से मैं संसाररूपी गर्त में न गिर सकूँ, जिससे में संसार में रहते हुए भी संसार के दुःखों में न फैसूं। यदि आप मुझको कोई ऐसा उपाय नहीं बतलायेंगे, तो मैं स्वयं अपने आप हो सोचकर किसी ऐसे उपाय को ढूँढूँगा। और यदि मैं अपने स्वयं के प्रयत्न से भी संसार से मुक्त नहीं हो सका तथा परमपद और सत्य को प्राप्त नहीं कर सका. तो, मैंने यह निश्चय कर लिया है कि अन्न और जल का त्याग करके एक स्थान पर बैठकर चिन्तन करते करते इस शरीर का त्याग कर दूँगा

राम को तत्वज्ञान का उपदेश

वसिष्ठ और विश्वामित्र राम की इस तीव्र जिज्ञासा को देखकर बहुत प्रसन्न हुए और वसिष्ठ ने राम को तत्त्वज्ञान का उपदेश दिया, जिसको सुनकर राम को आत्मज्ञान की प्राप्ति हुई और वे जीवन्मुक्त होकर परम आनन्द को प्राप्त हुए तथा संसार में, जल में कमल की भाँति रहकर आदर्श पुरुष बने। राम के जीवन को आदर्श बनानेवाला वसिष्ठ राम-संवाद रूप उपदेश ही योगवासिष्ठ है।

साभार...योगवाशिष्ठ:

महारामयणम

Editor's Picks