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Basant Panchami 2025: बसंत पंचमी के दिन सरस्वती चालीसा की करें पाठ, ज्ञान की देवी होती हैं खुश

Basant Panchami 2025: देश भर में आज बंसत पंचमी मनाया जा रहा है। आज सरस्वती चालीसा पढकर माँ की आराधना करें।

 Saraswati Chalisa
Saraswati Chalisa - फोटो : प्रतिकात्मक

Basant Panchami 2025: आज पूरे देश में बसंत पंचमी का त्योहार बड़े ही उल्लास और श्रद्धा के साथ मनाया जा रहा है। यह पावन पर्व माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है और इसे विद्या, ज्ञान और कला की देवी मां सरस्वती के जन्मदिवस के रूप में माना जाता है। इस वर्ष बसंत पंचमी का महत्व और भी बढ़ गया है क्योंकि इस दिन एक विशेष शुभ संयोग बन रहा है, जो इसे और भी पावन बना रहा है। आज के दिन माँ सरस्वती की पूजा कर सरस्वती चालीसा का पाठ करना चाहिए। यहां पढ़े सरस्वती चालीसा


दोहा 

जनक जननि पद्मरज, निज मस्तक पर धरि।

बन्दौं मातु सरस्वती, बुद्धि बल दे दातारि॥

पूर्ण जगत में व्याप्त तव, महिमा अमित अनंतु।

 दुष्टजनों के पाप को, मातु तु ही अब हन्तु॥

जय श्री सकल बुद्धि बलरासी। 

जय सर्वज्ञ अमर अविनाशी॥  

जय जय जय वीणाकर धारी। 

करती सदा सुहंस सवारी॥  

रूप चतुर्भुज धारी माता। 

सकल विश्व अन्दर विख्याता॥

जग में पाप बुद्धि जब होती। 

तब ही धर्म की फीकी ज्योति॥

तब ही मातु का निज अवतारी। 

पाप हीन करती महतारी॥

वाल्मीकिजी थे हत्यारा।

तव प्रसाद जानै संसारा॥

रामचरित जो रचे बनाई।

आदि कवि की पदवी पाई॥

कालिदास जो भये विख्याता।

तेरी कृपा दृष्टि से माता॥

तुलसी सूर आदि विद्वाना।

भये और जो ज्ञानी नाना॥

तिन्ह न और रहेउ अवलम्बा।

केवल कृपा आपकी अम्बा॥ 

करहु कृपा सोइ मातु भवानी।

दुखित दीन निज दासहि जानी॥ 

पुत्र करहिं अपराध बहूता।

तेहि न धरई चित माता॥

राखु लाज जननि अब मेरी।

विनय करउं भांति बहु तेरी॥ 

मैं अनाथ तेरी अवलंबा।

कृपा करउ जय जय जगदंबा॥

मधु-कैटभ जो अति बलवाना।

बाहुयुद्ध विष्णु से ठाना॥

समर हजार पांच में घोरा।

फिर भी मुख उनसे नहीं मोरा॥

मातु सहाय कीन्ह तेहि काला।

बुद्धि विपरीत भई खलहाला॥

तेहि ते मृत्यु भई खल केरी।

पुरवहु मातु मनोरथ मेरी॥

चंड मुण्ड जो थे विख्याता।

क्षण महु संहारे उन माता॥ 

रक्त बीज से समरथ पापी।

सुरमुनि हृदय धरा सब कांपी॥

काटेउ सिर जिमि कदली खम्बा।

बार-बार बिन वउं जगदंबा॥

जगप्रसिद्ध जो शुंभ-निशुंभा।

क्षण में बांधे ताहि तू अम्बा॥

भरत-मातु बुद्धि फेरेऊ जाई।

रामचन्द्र बनवास कराई॥ 

एहिविधि रावण वध तू कीन्हा।

सुर नरमुनि सबको सुख दीन्हा॥

को समरथ तव यश गुन गाना।

निगम अनादि अनंत बखाना॥

विष्णु रुद्र जस कहिन मारी।

जिनकी हो तुम रक्षाकारी॥

रक्त दन्तिका और शताक्षी।

नाम अपार है दानव भक्षी॥

दुर्गम काज धरा पर कीन्हा। 

दुर्गा नाम सकल जग लीन्हा॥

दुर्ग आदि हरनी तू माता।

कृपा करहु जब जब सुखदाता॥

नृप कोपित को मारन चाहे।

कानन में घेरे मृग नाहे॥ 

सागर मध्य पोत के भंजे।

अति तूफान नहिं कोऊ संगे॥

भूत प्रेत बाधा या दुःख में। 

हो दरिद्र अथवा संकट में॥

नाम जपे मंगल सब होई।

संशय इसमें करई न कोई॥

पुत्रहीन जो आतुर भाई।

सबै छांड़ि पूजें एहि भाई॥

करै पाठ नित यह चालीसा। 

होय पुत्र सुन्दर गुण ईशा॥

धूपादिक नैवेद्य चढ़ावै। 

संकट रहित अवश्य हो जावै॥

भक्ति मातु की करैं हमेशा। 

निकट न आवै ताहि कलेशा॥

बंदी पाठ करें सत बारा।

बंदी पाश दूर हो सारा॥  

रामसागर बांधि हेतु भवानी। 

कीजै कृपा दास निज जानी॥

दोहा 

मातु सूर्य कान्ति तव, अन्धकार मम रूप।

डूबन से रक्षा करहु परूं न मैं भव कूप॥ 

बलबुद्धि विद्या देहु मोहि, सुनहु सरस्वती मातु। 

राम सागर अधम को आश्रय तू ही देदातु॥

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