Navratri 2025: बिहार का रहस्यमयी मंदिर, यहां होती है तांत्रिकों की साधना, नवरात्र में कश्मीर से 51 कमल लाने की परंपरा

Navratri 2025:मंदिर में कश्मीर के मानसरोवर झील से लाए गए 51 कमल पुष्पों से मां दुर्गा की पूजा की जाती रही है। यह परंपरा आज भी श्रद्धालुओं द्वारा श्रद्धापूर्वक निभाई जाती है।

Navratri 2025: बिहार का रहस्यमयी मंदिर, यहां होती है तांत्रि
बिहार का रहस्यमयी मंदिर- फोटो : reporter

Navratri 2025: मां पांच घोड़ों के रथ पर सवार होकर यहां आई थीं, और रथ के घोड़े इसी घाट पर दाहा नदी का जल पीने उतरे थे। इसी कारण इस स्थान का नाम घोड़ाघाट पड़ा।बिहार के गोपालगंज जिले के उचकागांव प्रखंड में दाहा नदी के तट पर स्थित घोड़ाघाट मंदिर धार्मिक और तांत्रिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण स्थल है। इस मंदिर का इतिहास पास के प्रसिद्ध थावे दुर्गा मंदिर से जुड़ा हुआ है। मान्यता है कि थावे जाते समय मां भवानी इस स्थल पर विश्राम के लिए रुकी थीं।

मंदिर का निर्माण थावे मंदिर के समय हुआ माना जाता है। इसका तांत्रिक महत्व अत्यधिक है। दूर-दराज से तंत्र साधक और श्रद्धालु शारदीय तथा चैत्र नवरात्र के अवसर पर यहां अपनी साधना हेतु आते हैं। यहां किए गए तांत्रिक क्रियाकलापों से साधकों का विश्वास है कि वे सिद्धि प्राप्त कर सकते हैं। मंदिर में विराजित मां दुर्गा अपने भक्तों पर असीम कृपा बनाए रखती हैं।

घोड़ाघाट मंदिर का सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व भी अद्वितीय है। यह स्थल न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि हथुआ राज परिवार के साथ इसका विशेष संबंध भी रहा है। राजमाता प्रत्येक वर्ष यहां पूजा-अर्चना के लिए आती हैं। धार्मिक ग्रंथों और स्थानीय कथाओं में उल्लेख है कि मंदिर में कश्मीर के मानसरोवर झील से लाए गए 51 कमल पुष्पों से मां दुर्गा की पूजा की जाती रही है। यह परंपरा आज भी श्रद्धालुओं द्वारा श्रद्धापूर्वक निभाई जाती है।

दाहा नदी के किनारे स्थित यह मंदिर न केवल तीर्थस्थल के रूप में प्रसिद्ध है, बल्कि रहस्यमय इतिहास और तांत्रिक साधना के कारण भक्तों और शोधकर्ताओं के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। यहां आने वाले साधक और श्रद्धालु मंदिर की पवित्रता और तांत्रिक वातावरण का अनुभव कर आध्यात्मिक शक्ति का लाभ उठाते हैं।

घोड़ाघाट मंदिर आज भी अपने अद्भुत इतिहास, तांत्रिक महत्व और देवी भवानी की कृपा के कारण बिहार में धार्मिक स्थलों में विशेष स्थान रखता है। यह न केवल भक्तों के लिए, बल्कि अध्यात्म और संस्कृति के शोधकर्ताओं के लिए भी ज्ञान एवं अनुभव का स्रोत है।