चलो ढूंढे तुलसी का रामराज! पांच सौ साल पहले गोस्वामी तुलसीदास ने की रामराज्य की परिकल्पना, कितना भूले कितना याद रखे राजनेता

Tulsidas : गोस्वामी तुलसीदास ने जिस रामराज्य की कल्पना की, वह केवल एक धार्मिक राज्य नहीं, बल्कि एक नैतिक, आदर्श और मानवीय मूल्यों पर आधारित समाज व्यवस्था है। वे सिर्फ एक भक्त नहीं थे, बल्कि एक सजग समाजचिंतक, मानव प्रकृति के पारखी और यथार्थवादी कवि भी थे। उनके साहित्य में राम केवल एक भगवान नहीं, बल्कि मर्यादा, नीति, करुणा और धर्म के प्रतीक हैं।
रामचरितमानस में तुलसीदास लिखते हैं –
"दैहिक दैविक भौतिक तापा। राम राज नहिं काहुहि ब्यापा।।
सब नर करहिं परस्पर प्रीती। चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती।।"
इस चौपाई में रामराज्य का आदर्श चित्र खींचा गया है, जहाँ कोई शारीरिक, प्राकृतिक या सांसारिक पीड़ा से पीड़ित नहीं होता। सभी परस्पर प्रेमपूर्वक रहते हैं और अपने धर्म एवं कर्तव्य का पालन करते हैं। आज जब समाज में टकराव, भेदभाव और वैचारिक संकीर्णता बढ़ रही है, तब तुलसी का यह आदर्श समाज और भी प्रासंगिक हो जाता है।
तुलसीदास और 'भेड़ियाधसान' की चेतावनी
तुलसीदास की सामाजिक दृष्टि कितनी गहरी थी, इसका संकेत उनके दोहावली के इस दोहे से मिलता है –
"तुलसी भेड़ी की धंसनि, जड़ जनता सनमान।
उपजत ही अभिमान भो, खोवत मूढ़ अपान।।"
वे जानते थे कि भीड़ के पीछे चलने वाली मानसिकता, विवेकशून्य प्रशंसा और मान-बड़ाई व्यक्ति को अहंकारी बना सकती है। इसलिए वे चेताते हैं कि किसी के कहे या भीड़ के उन्माद में बहने की बजाय विवेक और नैतिकता के आधार पर निर्णय लेना चाहिए।
नेतृत्व और सामाजिक जिम्मेदारी
तुलसीदास के अनुसार, सच्चा नेतृत्व वही है जो सभी का समान ध्यान रखे —
"मुखिआ मुख सो चाहिऐ, खान पान कहुँ एक।
पालइ पोषइ सकल अंग, तुलसी सहित बिबेक।।"
यह संदेश आज के लेखकों, पत्रकारों, राजनेताओं और विचारकों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। विचारधारा के नाम पर समाज को बाँटने और नफरत फैलाने की जगह, उन्हें लोककल्याण और सामाजिक समरसता को प्राथमिकता देनी चाहिए।
तुलसी का साहित्य – नीति, करूणा और भक्ति का संगम
तुलसीदास का साहित्य केवल धार्मिक ग्रंथ नहीं है, बल्कि एक जीवनदर्शन है। उदाहरण के लिए:
"तुलसी मीठे बचन ते, सुख उपजत चहुंओर।
बसीकरण इक मंत्र है, परिहरू बचन कठोर।।"
यह दोहा दर्शाता है कि तुलसीदास मानवीय व्यवहार में मधुरता और संवाद की संस्कृति को कितना महत्व देते हैं। समाज में सौहार्द तभी पनप सकता है जब हम एक-दूसरे से सम्मानपूर्वक व्यवहार करें।
"तुलसी भरोसे राम के, निर्भय होके सोय।
अनहोनी होनी नहीं, होनी होय सो होय।।"
यह केवल धार्मिक आस्था नहीं, बल्कि जीवन के प्रति एक सकारात्मक और निडर दृष्टिकोण का संदेश देता है।
गोस्वामी तुलसीदास का लेखन किसी एक विचारधारा, संप्रदाय या वर्ग के लिए सीमित नहीं है। वे मर्यादा, नीति, प्रेम, करुणा और लोकहित के कवि हैं। आज जब समाज वैचारिक ध्रुवीकरण और आत्मकेन्द्रित सोच की ओर बढ़ रहा है, तब तुलसी का "रामराज्य" केवल एक धार्मिक अवधारणा नहीं, बल्कि एक सामाजिक, नैतिक और मानवीय संकल्प है — जिसकी ओर लौटना समय की माँग है।
तुलसी_जयन्ती के अवसर पर यही संकल्प करें कि चलो ढूंढे तुलसी का रामराज! जहाँ हर मनुष्य मानवता को अपना धर्म माने।