कोठे की मिट्टी से माँ दुर्गा की प्रतिमा बनाने का क्या है राज, वेश्या का अंगना क्यों माना जाता है सबसे पवित्र

idol of Goddess Durga
idol of Goddess Durga- फोटो : news4nation

कहा जाता है कि आदमी जब किसी वेश्यालय में घुसता है तो अपना सारा रुतबा, इज्जत, मान-सम्मान, पुण्य और सारे ओढ़े हुए नकाब चौखट पर उतार देता है। चौखट के अंदर घुसते ही वह सिर्फ एक पुरुष ही होता है। इसलिए चौखट के इस पार की मिट्टी सबसे पवित्र होती है जो दुनिया भर के पुरुषों के उजले चरित्र सोख लेती है। ऐसी पवित्र मिट्टी से भला देवी प्रतिमा की शुरुआत क्यों न हो जहां पुरुषों की अपवित्रता, उसके ढोंग, झूठी शान हमेशा उतरते आएं हों। 


देवी दुर्गा की प्रतिमा के साथ ही शक्ति पूजा की परिकल्पना हम करते हैं और संयोग देखिए प्रतिमा निर्माण में उपयोग होने वाली मिट्टी उस वेश्या के कोठे के अंगने की भी होती है जिसे समाज सबसे ज्यादा दुत्कारता है। जिससे सबसे ज्यादा नफरत करता है। देवी पूजा की नींव रखते समय समाज के कथित तौर पर सबसे घृणित पेशे की मदद से शुरुआत करना अपने आप में रोमांचक है। सवाल उठता है कि जिस धर्म में लंबे समय से स्त्रियों को कई परंपराओं से दूर रखा जाता हो, जहां सती प्रथा जैसी परंपरा हो, जहां विधवा का जीवन नरक से कम न हो, उस काल में ऐसी रवायत कैसे पड़ गई?


एक मान्यता है कि देवी ने जब महिषासुर का वध करने के लिए अवतार लिया तो हर वर्ग की स्त्री को अपनी शक्ति का रूप माना। वेश्या हमारे समाज का वह वर्ग है जो पुरुषों के कर्मों के चलते समाज में सबसे निचले दर्जे पर रहती है। ऐसे में साल में एक बार कथित रूप से समाज का सबसे ताकतवर और सम्मानित पुरुष समाज के सबसे निचले पायदान पर खड़ी महिला के दरवाजे पर जाकर याचना करता है। कोरी कल्पना ही सही लेकिन समाज के हर वर्ग की स्त्री को प्रतिष्ठा का कारण मानते हुए शायद हमारे पूर्वजों ने वेश्या के घर से देवी प्रतिमा हेतु मिट्टी लाने की शुरुआत की होगी। (हालांकि अब यह परंपरा कोलकाता और बंगाल के कुछ क्षेत्रों में ही शेष है)


महिलाओं का एक वर्ग जिसे वेश्या होने के कारण न सिर्फ शारीरिक बल्कि मानसिक रूप से भी जीवन पर्यंन्त अवसाद से घिरे रहने को मजबूर होना पड़ता है, उसकी गरिमा तब कितनी बढ जाती होगी जब उसके अंगने की मिट्टी देवी की प्रतिमा के लिए उपयोगी होती होगी। इन परंपराओं की शुरुआत शायद समाज के हर वर्ग को हमारे पूजा-महोत्सवों से जोड़ने के लिए हुआ होगा, जहां कोई अछूत नहीं है, जहां कोई पेशा के कारण निंदा का पात्र नहीं है। 


शायद इलसिए दुर्गा सप्तसती का श्लोक भी है ... 
यच्च किञ्चित् क्वचित् वस्तु सदअसद्वाखिलात्मिके।
तस्य सर्वस्य इया शक्तिः सा त्वं किं स्तुयसे मया ॥
सर्वस्वरूपे देवि ! कहीं भी सत्-असत् रूप जो कुछ वस्तुएँ हैं और उनकी सबकी जो शक्ति है, वह भी तुम्हीं हो ऐसी स्थिति में तुम्हारी स्तुति क्या हो सकती है?