शक्ति से शक्ति की कामना का पर्व नवरात्रि, महाशक्ति की आराधना और जीवन में आदर्श-मूल्यों का पर्व, जगदंबा से लेकर शिव की पूजा का विधान, यहां जानें सबकुछ

नवरात्रि शक्ति की आराधना का महापर्व है। शक्ति के बिना शिव भी शववत् हैं। यही शक्ति समूचे ब्रह्मांड का संचालन करती है।...

Navratri
शक्ति से शक्ति की कामना का पर्व नवरात्रि- फोटो : reporter

नवरात्रि शक्ति की आराधना का महापर्व है। शक्ति के बिना शिव भी शववत् हैं। यही शक्ति समूचे ब्रह्मांड का संचालन करती है। नवरात्रि के नौ दिन अत्‍यंत महत्त्वपूर्ण होते हैं, क्योंकि इन दिनों ब्रह्मांड की समस्त शक्तियाँ जाग्रत होती हैं। यही शक्ति सृष्टि का आधार है, यही शक्ति दुष्टों का संहार करती है और यही शक्ति हमारी आस्था, श्रद्धा और जीवन का प्राण है।

जीवन के नीरव निशीथ में, विरह के अनंत अंधकार में, और निराशा की विराट् निःशब्दता में धीरज के ललौंहें फूल खिलाना माता का कार्य है।नवरात्रि अर्थात् महाशक्ति की आराधना का पर्व, जिसमें माता दुर्गा के नौ रूपों की तिथिवार पूजा-अर्चना होती है। ये नौ रूप हैं – शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री। प्रत्येक रूप अपनी विशेष ऊर्जा, भक्ति और जीवन-मूल्यों का संदेश देता है।

घट-घट में व्याप्त परमब्रह्म की पराज्योति है, तथा स्वार्थ और परमार्थ, पार्थिव और अपार्थिव, ताप और शीत, नश्वर और अनश्वर, नाश और अमरता का समन्वय है। भारतीय दर्शन केवल जीवन का आभूषण नहीं, अपितु उसका प्राण है। यही आदि-स्रोत है और अनंत महासागर है। नवरात्र का पर्व इसी सत्य को जगाने, मानव हृदय में आस्था और साहस उत्पन्न करने हेतु विहित है।

पितृपक्ष के बाद जगत की मोह की जड़ता को पिघला देने वाली ज्वालाओं का यह अभिनय, जुगजुगाती मंदालस ताराओं को हड़बड़ा देने वाली यह जागृति की महाप्रेरणा है। हमारी दिशाएँ अंधकार से घिरी हुई हैं। जगद्धात्री आत्मविस्मृति में पड़ी हैं। उनका आनंदबोध कराने हेतु विरुद्ध भावोदय आवश्यक है। जब तक शिव के  तांडव का मर्मज्ञ ताल नहीं मिलता, तब तक जगदंबा की तल्लीना भंग नहीं होती, और जब तक वे आकुल नहीं होतीं, शिव की तृप्ति संभव नहीं। नवरात्रि इस अराजकता और अशांति से पार पाने का पर्व है।

नवरात्रि केवल शक्ति की पूजा नहीं, बल्कि सामाजिक संदेश का पर्व भी है। कन्‍याओं का पूजन कर उन्हें देवी के समान सम्मान देना, समाज में स्त्रियों और लड़कियों को सम्‍मानजनक स्थान प्रदान करने का संदेश है। यह पर्व हमें यह स्मरण कराता है कि प्रत्येक स्त्री समाज की संरचना में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। बिना शक्ति के संसार की संरचाना संभव नहीं है।

नवरात्र के बाद दसवें दिन विजयदशमी उस मर्यादा पुरुषोत्तम का उत्सव है, जिसने 'स्नेह, दया और सुख की बलि देकर रामराज्य स्थापित किया। राम के जीवन के विविध पक्षों का सृजन और आदर्श हमें आज भी मार्गदर्शन प्रदान करता है। आदिकवि से लेकर तुलसीदास ने रामचरितमानस में राम के चरित्र के माध्यम से समाज और जीवन के गूढ़ तत्वों का उद्घाटन किया। यही कारण है कि नवरात्रि और विजयदशमी का उत्सव केवल धार्मिक नहीं,  आदर्श, मर्यादा और नैतिक मूल्यों का भी प्रतीक है।

नवरात्रि के उपरांत दीपावली का आगमन होता है। बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय ने यमुना की सीढ़ियों पर अंधेरी रात में भारत की राजलक्ष्मी को नूपुर उतारते देखा। नवरात्रि में माता की आराधना के बिना राजलक्ष्मी का आगमन संभव नहीं माना गया। इस कालखंड में कुम्हार का चक्का घूमता है, मिट्टी की घंटियाँ बजती हैं, और माई के आशीर्वाद से धन-वैभव का आगमन होता है। यह परंपरा और लोकधर्म हमारी संस्कृति की जीवन्तता और आत्मिक समृद्धि का प्रतीक है।

अंततः नवरात्रि केवल धार्मिक पर्व नहीं, अपितु जीवन के गहन तत्वों, समाज में स्त्रियों के स्थान, नैतिक मूल्यों, साहस, धैर्य और सामूहिक चेतना को जागृत करने का महापर्व है। यह पर्व हमें स्मरण कराता है कि शक्ति के बिना सृष्टि अधूरी है, और इसी शक्ति का सम्मान करते हुए मानव जीवन में संतुलन, सृजन और कल्याण संभव है।