Krishna Janmashtami 2025: जन्माष्टमी पर जहाँ लड्डू नहीं, बांस और दूध का भोग लगाते हैं भगवान कृष्ण को, द्वापर की अनूठी विरासत आज भी है कायम

Krishna Janmashtami 2025:गंगा-यमुना की पावन धारा के बीच बसे गाँव-कस्बे अक्सर ऐसे चमत्कारिक मंदिरों को संजोए हुए हैं जिनकी मान्यताएँ युगों से भक्तों के जीवन का संबल बनी हुई हैं। ...

Krishna Janmashtami
लड्डू नहीं, बांस और दूध का भोग लगाते हैं भगवान कृष्ण को- फोटो : social Media

Krishna Janmashtami 2025:भारत की धरती सदा से आस्था और परंपराओं की जननी रही है। गंगा-यमुना की पावन धारा के बीच बसे गाँव-कस्बे अक्सर ऐसे चमत्कारिक मंदिरों को संजोए हुए हैं जिनकी मान्यताएँ युगों से भक्तों के जीवन का संबल बनी हुई हैं। अमेठी जिले का नंदमहर गाँव भी ऐसा ही दिव्य स्थल समेटे हुए है, जहाँ प्रसाद के रूप में मिठाई या पेड़े नहीं, बल्कि बांस और दूध अर्पित किए जाते हैं।

धार्मिक विश्वास है कि यह वही पवित्र भूमि है, जहाँ द्वापर युग में भगवान कृष्ण और बाबा नंद ने समय बिताया था। यहीं पर उन्होंने यज्ञ और पूजन कर धर्म की ध्वजा को ऊँचा रखा। तभी से यह परंपरा आज तक जीवित है। मंदिर के पुजारी भारत नंद गिरी बताते हैं कि पाँच मंगलवार सच्चे मन से यहाँ दर्शन करने वाले भक्त को समस्त कष्टों और रोगों से मुक्ति प्राप्त होती है। यही कारण है कि भक्तों की भीड़ यहाँ कभी थमती नहीं।

कार्तिक पूर्णिमा का पर्व तो इस धाम की आत्मा है। जनश्रुति है कि इसी दिन भगवान ने रासलीला रचकर संपूर्ण ब्रह्मांड को भक्ति में डुबो दिया था। इस मान्यता को लेकर हर वर्ष यहाँ भव्य मेला लगता है, जिसमें पचास जिलों से श्रद्धालु उमड़ते हैं। मंगलवार के दिन भी यहाँ भक्तों का सैलाब उमड़ता है। मंदिर केवल ग्रामीण अंचल का आस्था केंद्र नहीं है, बल्कि बड़े-बड़े राजनेता भी यहाँ अपनी अर्जी लेकर आते हैं और इसे “इच्छा पूर्ति धाम” मानते हैं।

मंदिर परिसर में आज भी वह यज्ञशाला विद्यमान है, जहाँ नंद बाबा और भगवान कृष्ण ने साथ बैठकर हवन किया था। इस धाम को देखते ही लगता है मानो द्वापर युग अब भी अपनी पवित्र आभा बिखेर रहा हो। मंदिर के भीतर ही बजरंगबली, राधा-कृष्ण, दुर्गा-पार्वती और अन्य देवी-देवताओं के छोटे मंदिर भी हैं, जो आस्था का अखंड दीप जलाए रखते हैं।

यह मंदिर केवल एक उपासना-स्थल नहीं, बल्कि आस्था, परंपरा और लोकविश्वास का अद्भुत संगम है। भक्त कहते हैं—“हाँ से खाली हाथ लौटना संभव ही नहीं।” सच ही तो है, जहाँ भगवान को बांस और दूध अर्पित किया जाता है, वहाँ भक्ति भी साधारण नहीं, बल्कि चमत्कारों से भरी होती है।