Religion:स्वविवेक से की गई सत्य की खोज ही सच्चा अध्यात्म है, अंधविश्वास नहीं, यहीं है शिष्यत्व की परिभाषा
Religion:सच्चा शिष्य वह है जो अंधविश्वास नहीं, आत्मचिंतन और अनुभव से सत्य को समझता है। गुरु की संगति महत्वपूर्ण है, पर आत्मा की आवाज़ अधिक मूल्यवान। प्रश्न करना अधार्मिक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत है। ...

Religion:Religion: एक गुरु मृत्यु की शय्या पर पड़े थे। उनके शिष्य, जो कभी उनसे अलग नहीं हुए थे, उनके चारों ओर बैठे थे। तभी उनसे मिलने एक युवक आया। वह उन्हीं गुरु का शिष्य था, जो कई वर्ष पहले उनके विचारों से असहमत होकर चला गया था। उसने आकर गुरुजी के चरणों पर सिर नवाया और कहा, 'गुरुजी, मैंने जान लिया कि आपने जो कुछ भी कहा था, वह सब सत्य है।'
'वत्स, मेरे पास और भी कुछ दुर्लभ रहस्य हैं। उन्हें सिखाने के लिए मैं तुम्हारी ही राह देख रहा था', गुरुजी ने कहा। यह सुनकर दूसरे शिष्यों को धक्का लगा। उनमें से एक ने पूछा, 'गुरुदेव, अंत समय तक आप पर विश्वास करते हुए हमलोग आपके साथ बने रहे हैं। ऐसे शिष्यों को छोड़कर, आपके लिए वह शिष्य अधिक महत्वपूर्ण हो गया, जो आपसे अलग हो गया था? दुर्लभ रहस्यों की शिक्षा के लिए आपने उसे ही योग्य पात्र माना?' गुरुजी ने उत्तर दिया, 'आप लोगों ने मुझ पर विश्वास यह सही है, पर आपने स्वयं अपने ऊपर भरोसा नहीं रखा। मगर अपने ऊपर भरोसा रखते हुए सत्य की खोज में निकला था। इसीलिए यही मेरा सच्चा शिष्य है।'
मैं भी वही बात कर रहा हूं। ईश्वर का पुत्र या ईश्वर का दूत ही क्यों, स्वयं ईश्वर भी आकर कुछ बताएं, तो आंख मूंदकर उस पर विश्वास करते हुए यात्रा करेंगे, तो क्या अंजाम होगा? आपसे एकदम अलग विश्वास रखने वाले सामने आएंगे, तो दोनों में टकराहट होगी। वह विश्वास आप दोनों को दुश्मन बना देगा।
जब आपके अंदर खोजने की प्रवृत्ति समाप्त हो जाती है, तो आप अपने को अध्यात्म-पथ का यात्री कहने की योग्यता गंवा बैठते हैं। जब आप अपने धर्म द्वारा बनाए विश्वासों पर कोई भी प्रश्न उठाए बगैर चलने लगते हैं, तब आपको भावुक बनाना सरल हो जाता है।
अध्यात्म और धर्म के पथ पर चलने वाले ऐसे नहीं होते। 'हां-नहीं' यूं किसी भी निर्णय पर आए बिना सत्य को जानने की इच्छा रखने वाले हैं वे। माता-पिता ही नहीं, कोई भी आकर कहे, तो आंख मूंदकर विश्वास किए बिना, किसी भी विश्वास के आधार पर अपनी जिंदगी को टिकाए बगैर, हर विचार का अपने अनुभव की कसौटी पर परीक्षण कीजिए।
आप जहां खड़े हैं, वह स्थान पथ का प्रारंभिक या अंतिम पड़ाव हो सकता है, जहां से एक कदम पर आपकी मंजिल हो। लेकिन हम कहां खड़े हैं, इसके इल्म के बिना किसी का कहना मानकर उल्टी दिशा यात्रा करने लग जाएं, तब कब कहां जा पहुंचेंगे? यदि आपकी बुद्धि विश्वासों से कलंकित न होकर जटिलता से मुक्त रहे, तो आपका अध्यात्म सिद्ध होगा।
खुद से सवाल करें कि जो मैं कर रहा हूं वह सही है क्या।फिर जो ईश्वर के बताए मार्ग हैं उसका भी परीक्षण हो जायेगा। आप शांत और सहमत हो जाएंगे...फिर जिंदगी सरल हो जाएगी।
कौशलेंद्र प्रियदर्शी की कलम से...