Religious story: छोटी-छोटी आदतें बनाती हैं हमारे संस्कार, और हमारे कर्म गढ़ते हैं हमारा भविष्य, जानिए कैसे?

Religious story: जब आदतें सत्कर्मों में ढलती हैं, तो वही संस्कार बनकर जीवन की दिशा तय करती हैं। भविष्य कोई चमत्कार नहीं—वह हमारे व्यवहार का प्रतिफल है।पढ़िए कौशलेंद्र प्रियदर्शी की कहानी...

Religious story
छोटी-छोटी आदतें बनाती हैं हमारे संस्कार- फोटो : Meta

Religious story: प्राचीन समय में एक सेठ-सेठानी थे, सुखी-सम्पन्न थे, पर अकेले ही थे। उन्होंने एक गाय पाल रखी थी, उसकी देखभाल करना, चारा खिलाना और पानी पिलाना–इन सबका दायित्व निर्वाह उनका रामू नाम का एक सेवक सच्चे मन और निष्ठा से किया करता था। समय पर गाय की सभी सेवाएँ होतीं और उसका दूध निकाला जाता। सुबह-शाम दोनों समय उस गाय का दूध निकालकर वह कर्मिष्ठ सेवक रामू अपने सेठ जी के घर दे जाता।

एक बार सेठ जी को तीर्थ यात्रा करने की इच्छा हुई ।सेठ-सेठानी ने यात्रा पर चलने की तैयारी की और चलते समय सेठ जी ने अपने सेवक रामू को समझाया– “भाया! हमारे पीछे से गाय का अच्छी तरह से ध्यान रखना, चारे का पूरा प्रबन्ध है ही, दूध निकालकर अपने घर ले जाना, हमें यात्रा से वापसी में एक महीना लग ही सकता है, चिन्ता नहीं करना, खर्चे और अपनी मजदूरी-मेहनताना के बतौर यह कुछ रुपये रख लो और पीछे से घर का भी ध्यान रखना। सेठ-सेठानी तीर्थ यात्रा पर चले गये, सेठ जी के कहे अनुसार उनका वह सेवक रामू उनके घर और गाय की अच्छी तरह देखभाल करता और गाय का दूध निकालकर अपने घर ले जाता, लेकिन दूध को अपने घर के आँगन में फैला देता और गली-मुहल्ले के कुत्ते-पिल्ले वहाँ आकर दूध को चाट चाटकर पीते। रामू की भोली-भाली पत्नी ने अपने पति के दूध फैलाने पर उसी दिन उसे टोका–दूध को फैलाने से क्या लाभ? हमारे इन दोनों छोटे-छोटे बच्चों को दूध पीने को मिल जाये, इससे अच्छी बात क्या हो सकती है? 

आपको सेठ जी कहकर गये हैं कि “दूध घर ले जाना।”रामू ने पूरा उत्तर नहीं दिया – नहीं-नहीं! इन बच्चों को दूध पिलाकर, पत्नी ने पति की अधूरी बात पूरी की “आदत खराब नहीं करनी।”

उसे अपने पति की बात समझ में तो नहीं आयी, पर उसने कोई तर्क-वितर्क नहीं किया। 

गृहशान्ति बनी रही। रामू का दूध निकालकर सेठ जी के कहने से दूध को घर लाना और अपनी समझ से दूध को घर के आँगन में डाल देना उसकी दैनिक क्रिया बन गयी। गली-मुहल्ले के कुत्ते, पिल्ले उस दूध को चट कर जाते। लगभग एक महीना बीता, सेठ-सेठानी तीर्थ यात्रा से वापस आये। रामू ने गाय का दूध निकाला और सेठजी के घर पर दूध रख दिया। रामू अपने घर आया, आज तो दूध ही नहीं था, आँगन में क्या फैलाता? 

लेकिन गली-मुहल्ले के कुत्ते-पिल्ले रोजाना की तरह समय पर उसके घर के आँगन में इकट्ठे हुए, दूध न पाकर “भौं-भौं” कर भौंकने लगे, रोने लगे। रामू की पत्नी ने भौंकने रोने का दारुण दृश्य देखा और पूछने की मुद्रा में पति के मुख की ओर देखने लगी।

पति ने कहा – “देवि! तुमने इन्हें देख लिया, मैंने अपने बच्चों को वह दूध इसीलिये नहीं पीने दिया, नहीं तो आज यह अपने बच्चे भी इसी तरह से रोते, बिलखते। बात आज रामू की पत्नी की समझ में आयी। अपने हक-मेहनत का खायें-पीयें, स्वाभिमान से जियें और अपने सामर्थ्य तथा मर्यादा में रहें।”

आदतें संस्कार बन जाती हैं।इसलिए सोच-समझकर व्यवहार करें। रामू ने अपने बच्चों को दूध न पिलाकर सिर्फ इसलिए रोका क्योंकि उन्हें आदत न लग जाए। यह समझ भारतीय दर्शन में "वैराग्य" और "नियंत्रण", संयम के सिद्धांतों से जुड़ी है। आदतों से स्वभाव बनता है, स्वभाव से भविष्य।

कौशलेंद्र प्रियदर्शी की कलम से....