Name of Lord Ram: नवरात्र में सीताराम का नाम और अनन्त आनंद, नास्तिकता के सवाल पर साक्षात अनुभव

एक अय्याश, नास्तिक से मेरी मुलाकात हुई। उसने पूछा—“यदि श्री सीताराम का अस्तित्व न हो तो आप क्या करेंगे?”कौशलेंद्र प्रियदर्शी का मार्मिक अनुभव ....

Name of Lord Ram
नवरात्र में सीताराम का नाम और अनन्त आनंद- फोटो : social Media

Name of Lord Ram: एक अय्याश और नास्तिक व्यक्ति से मेरी मुलाकात हुई। उसका दृष्टिकोण संसार के प्रति बिल्कुल निराकार और भौतिक था। उसने कहा, “काम, क्रोध, वासना ही संसार का सच है। मौज ले लीजिए। ये ‘सीताराम-सीताराम’ कहकर आनंद पाने की बातों में कोई दम नहीं। आप बस माहौल बना रहे हैं।” फिर वह गहरी सोच के साथ बोला, “थोड़ा सोचिए… जब आपकी मृत्यु निकट आए और आपको पता चले कि जिसका जीवन भर नाम लिया—‘श्री सीताराम’—वास्तव में कोई सत्ता नहीं है, कोई ईश्वर नहीं है… तब आप क्या करेंगे? तब आपकी सारी भक्ति और ध्यान, सब व्यर्थ हो जाएगा।”

मैंने शांत स्वर में उत्तर दिया, “भाई, जिसमें तुम्हें आनंद मिलता है, वह करो। मुझे जिसमें आनंद है, वह मैं करूँ। तुम्हारा इसमें क्या जाता है? मुझे ‘श्री सीताराम’ नाम में अपार आनंद मिलता है। गृहस्थ जीवन में, मैं काम, क्रोध और लोभ से दूर रहने का प्रयास करता हूँ। कर्म में लगा रहता हूँ। जो भोग मिलना है, उसे भोग लेता हूँ; जो दंड मिलेगा, उसे भी भोगना होगा। बाकी सब आस्था का आनंद है। ‘सीताराम’ नाम लेना मेरे लिए आत्मा का सुख है। इसे कभी-कभी अपने परिवार और प्रियजनों से भी साझा करता हूँ।

अय्याश और नास्तिक व्यक्ति बोला, “मांस, दारू, ऐश-ओ-मौज—सब कुछ भगवान ने ही बनाया है। आनंद ले लो, भगवान बगैरह कुछ है ही नहीं। अंतिम समय में कुछ भी नहीं मिलेगा।”

मैंने मुस्कुराते हुए कहा, “भाई, तुम चतुर और सुजान हो। अपनी बुद्धि से अपने नाश में लगे रहो। मुझे तो इसी आस्था में अपार आनंद है। कई बार ईश्वर या इस ब्रह्मांड की परम सत्ता—श्री सीताराम जी—अपने अस्तित्व का अनुभव कराते रहते हैं। आज मैं जो भी हूँ, जहाँ भी हूँ, सब उनकी कृपा से है। सांस चल रही है, यह भी उनके अंश के बने रहने का प्रमाण है।

सोचो अगर तुम्हें अंतिम समय में पता चले कि ‘श्री सीताराम’ सच में हैं, तब क्या होगा? जान लो, भगवान से अलग होकर किसी को सच्चा सुख कभी नहीं मिला, न मिलता है, और न मिलेगा। यह केवल अनुभव की बात है, महसूस करने का विषय है। और यह महसूस भी हो रहा है तो इसे ईश्वर की कृपा ही समझो।”सत्य और भक्ति का यह अनुभव, नास्तिकता के प्रश्नों के बीच भी आत्मा को अडिग और शांत रखता है।

बहरहाल नवरात्रि व्रत का आज दूसरा दिन है। मान्यता है कि भगवान श्रीराम ने सबसे पहले शारदीय नवरात्र की विधिपूर्वक पूजा आरंभ की थी। उनकी पूजा से मां अत्यंत प्रसन्न हुईं और दशमी के दिन विजयदशमी का उत्सव मनाकर लंका से प्रस्थान किया। अध्याशक्ति की प्रेरणा से उन्होंने सुग्रीव के साथ समुद्र तल में पुल बनाकर रावण का संहार किया। इस व्रत में श्रद्धापूर्वक देवी के चरित्र और कृतियों का श्रवण करने से मनुष्य की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।नवरात्रि केवल व्रत नहीं, बल्कि भक्ति, श्रद्धा और शक्ति का प्रतीक है। सीता राम हीं सच है बाकी तो सब प्रपंच है.....

कौशलेंद्र प्रियदर्शी की कलम से...