Religion:शास्त्रों की दृष्टि में ब्राह्मण, जीवन का साधक या ज्ञान का साधन?

Who is a Brahmin
शास्त्रों की दृष्टि में ब्राह्मण- फोटो : Meta

 ब्राह्मण कोई वंश या वर्ण नहीं, वह जीवन का उच्चतम आदर्श है। वह जो पराए दोषों का स्मरण तक न करे, जिसकी दृष्टि में हर आत्मा में ईश्वर का रूप बसे। वह जो अपमान में भी प्रभु का रहस्य देखे, और प्रशंसा में सावधान हो जाए। प्रेम, क्षमा, चरित्र और धर्म का दीप बनकर, समाज को जोड़ने वाला—वही सच्चा ब्राह्मण है।

आज उत्तर प्रदेश की धरती, जो वेदों की ध्वनि और ऋषियों की साधना की साक्षी रही है, वहां ब्राह्मण और यादवों के बीच कथा कहने को लेकर ऐसा विवाद जन्म ले चुका है, जो जातीय टकराव की विभीषिका में बदलता दिख रहा है। प्रश्न उठता है—क्या यही ब्राह्मणत्व है? क्या किसी वाद-विवाद, कथा-पहचान या जातीय श्रेष्ठता के लिए हिंसा करना ब्राह्मण का धर्म है?

भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं गीता और उपदेशों में स्पष्ट किया है—ब्राह्मण वह नहीं जो केवल गोत्र, कुल, वंश या पंडिताई का दावा करे; ब्राह्मण वह है, जो अंतरात्मा से ब्रह्म को जानने की यात्रा पर हो।

ब्राह्मण वह है, जो स्वप्न में भी पराए दोषों का विचार न करे, जिसकी वाणी से निंदा का कोई बीज न फूटे, और जिसके हृदय में छल, कपट, वासना या अहंकार की कोई परछाई न हो।

ब्राह्मण वह है, जो हर जीव में श्रीराम का दर्शन कर सके, जो भक्तों के चरणों की रज को भी अपने मस्तक का तिलक माने, और जो गृहस्थ जीवन में रहते हुए भी सात्त्विकता की चरम सीमा को छुए।

ब्राह्मण वह है, जो ब्रह्ममुहूर्त में उठकर साधना करे, जो प्रशंसा से चौकन्ना हो जाए और अपमान में भी प्रभु की लीला को खोज ले।

ब्राह्मण वह है, जो प्रेम का ऐसा सरोवर हो, जो सबको क्षमा कर सके और सभी के कल्याण की भावना रखे। वहीं, जब समाज में अधर्म व्याप्त हो जाए, तो वही ब्राह्मण परशुराम की भांति अन्याय का अंत करे—पर सत्य के आधार पर, न कि जातीय विद्वेष के नाम पर।

वर्तमान परिस्थिति में आवश्यकता है—कथाओं के माध्यम से जोड़ने की, तोड़ने की नहीं। ब्राह्मण वही है, जो समाज को समरसता के सूत्र में पिरो सके। यही सच्चा ब्राह्मणत्व है।

कृष्ण :: तथास्तु सखा अंकित।

कौशलेंद्र प्रियदर्शी की कलम से...