Hartalika Teej: हरतालिका तीज आज, इस समय भूल कर भी ना करें पूजा, जानिए किस मुहूर्त में पूजा करना होगा सबसे लाभदायक
Hartalika Teej: हरतालिका तीज भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। आज हरितालिका तीज मनाया जा रहा है। आइए जानते हैं पूजन करने की शुभ मुहूर्त, विधि और महत्व...

Hartalika Teej: दांपत्य जीवन के लिए हरतालिका तीज का विशेष महत्व है। इस दिन पत्नी अपने पति के लंबे आयु के लिए व्रत रखती हैं और भगवान महादेव की आराधना करती हैं। भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाने वाला हरतालिका तीज व्रत इस साल 26 अगस्त आज यानी मंगलवार को है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार, यह व्रत सुहागिन महिलाओं को अखंड सौभाग्य और सुखद वैवाहिक जीवन का आशीर्वाद प्रदान करता है। अविवाहित कन्याएं भी मनचाहे वर की प्राप्ति के लिए यह व्रत रखती हैं।
इस बार के खास योग
इस वर्ष हरतालिका तीज पर रवि योग, साध्य योग और शुभ योग का संयोग बन रहा है। रवि योग पूरे दिन रहेगा, जिससे इस पर्व का महत्व और बढ़ गया है।
पूजन का समय
ब्रह्म मुहूर्त: सुबह 04:27 से 05:12 बजे तक
प्रातःकालीन शुभ मुहूर्त: सुबह 05:56 से 08:31 बजे तक (कुल अवधि 2 घंटे 35 मिनट)
प्रदोष काल (गोधूलि बेला): शाम 06:49 से 07:11 बजे तक
अन्य शुभ मुहूर्त
अभिजीत मुहूर्त: 11:57 पूर्वाह्न से 12:48 अपराह्न
विजय मुहूर्त: 02:31 अपराह्न से 03:23 अपराह्न
सायाह्न संध्या: 06:49 अपराह्न से 07:56 अपराह्न
राहुकाल
हरतालिका तीज पर राहुकाल दोपहर 03:36 से शाम 05:13 बजे तक रहेगा। इस दौरान पूजा-पाठ व शुभ कार्य वर्जित माने जाते हैं।
व्रत का महत्व
हरतालिका तीज पर महिलाएं भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा-अर्चना करती हैं और निर्जला उपवास रखती हैं। परंपरा के अनुसार, महिलाएं पूजा के दौरान माता पार्वती को शृंगार सामग्री समर्पित करती हैं और अपने वैवाहिक जीवन के सुख-सौभाग्य का आशीर्वाद मांगती हैं। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, इस दिन प्रदोष काल (गोधूलि बेला) में पूजा करना विशेष फलदायी माना गया है। वहीं, मिथिलांचल की महिलाएं अगले दिन यानी 27 अगस्त को चौरचन व्रत रखकर अपने बच्चों की दीर्घायु और सुख-समृद्धि की कामना करती हैं।
धार्मिक मान्यता और कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, हिमवान की पुत्री पार्वती का विवाह प्रारंभ में भगवान विष्णु से तय किया गया था। लेकिन माता पार्वती ने बचपन से ही भगवान शिव को पति मान लिया था। इसी संकल्प के साथ उन्होंने भाद्रपद शुक्ल पक्ष की तृतीया को अपनी सखी संग जंगल में कठोर तपस्या की। हस्त नक्षत्र में मिट्टी से शिवलिंग बनाकर पूरी रात जागरण किया। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए और पार्वती को पत्नी रूप में स्वीकार किया। तब से यह व्रत पति की दीर्घायु और सुखमय दांपत्य जीवन की कामना के लिए किया जाता है।