Bihar School News: बिहार के विश्वविद्यालयों से वित्तीय अनियमितताओं की खबरें अक्सर सामने आती रहती है। एक बार फिर ऐसी ही घटना सामने आई है। दरअसल, जानकारी अनुसार विश्वविद्यालयों में करीब 8 साल से 3149 करोड़ रुपये बिना उपयोग के पड़े हैं। न तो इस राशि का कोई उपयोग हो रहा है, और न ही विश्वविद्यालय इसे उच्च शिक्षा निदेशालय को वापस कर रहे हैं। वर्ष 2015 में CFMS (सेंट्रलाइज्ड फंड मैनेजमेंट सिस्टम) लागू होने के बाद से ही शिक्षा विभाग द्वारा बार-बार राशि लौटाने के निर्देश दिए गए हैं, लेकिन विश्वविद्यालयों ने अब तक इस पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की है।
ऑडिट रिपोर्ट में वित्तीय अनुशासन की कमी उजागर
राज्य के विश्वविद्यालयों की ऑडिट रिपोर्ट में महालेखाकार (CAG) ने वित्तीय अनियमितताओं और अनुशासनहीनता की ओर संकेत किया है। इसके आधार पर शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव ने राजभवन को पत्र भेजकर इस मामले में कार्रवाई की मांग की है। उन्होंने यह भी उल्लेख किया है कि विश्वविद्यालयों द्वारा ऑडिट टीम को पर्याप्त सहयोग नहीं दिया जा रहा है।
2015 से 2022 तक के वित्तीय ऑडिट में मिली गड़बड़ियां
शिक्षा विभाग के पत्र के अनुसार वित्तीय वर्ष 2015-16 से 2021-22 तक के ऑडिट में कई अनियमितताओं पर आपत्ति जताई गई है। राशि का बंटवारा CFMS लागू होने से पहले (2018 से पहले) विश्वविद्यालयों के बैंक खातों में पड़े 2262.26 करोड़ रुपये तो वहीं CFMS लागू होने के बाद (2018 के बाद) P.L. (पर्सनल लिजर) अकाउंट में रखे 877 करोड़ रुपये हुआ है। ऑडिट रिपोर्ट के अनुसार, यह पूरी राशि उच्च शिक्षा निदेशालय को लौटाई जानी चाहिए।
राजभवन ने 15 दिनों में मांगा जवाब
राज्य के विश्वविद्यालयों में वित्तीय अनियमितताओं के बढ़ते मामलों को लेकर अपर मुख्य सचिव ने पिछले महीने राजभवन को पत्र भेजा था। इसके बाद राजभवन ने सभी विश्वविद्यालयों को पत्र जारी कर इस संबंध में 15 दिनों के भीतर जवाब देने को कहा है। राज्यपाल सह कुलाधिपति के प्रधान सचिव रॉबर्ट एल. योग्यू द्वारा 24 फरवरी को बीआरए बिहार विश्वविद्यालय सहित सभी विश्वविद्यालयों के कुलपतियों को पत्र भेजा गया। इसमें पांच दिनों के भीतर वित्तीय अनियमितताओं पर बिंदुवार जवाब मांगा गया है, ताकि कुलाधिपति को स्थिति से अवगत कराया जा सके।
5 वर्षों में 1224 करोड़ रुपये की उपयोगिता प्रमाण पत्र नहीं जमा
वित्तीय वर्ष 2019-20 से 2023-24 के बीच विश्वविद्यालयों को दिए गए 1224.40 करोड़ रुपये के अनुदान का उपयोगिता प्रमाण पत्र (UC) भी जमा नहीं किया गया है। विश्वविद्यालयों को 5 वर्षों में अनुदान मिला, लेकिन खर्च का कोई विवरण विभाग को नहीं दिया गया। शिक्षा विभाग ने इस पर आपत्ति जताते हुए विश्वविद्यालयों से स्पष्ट स्पष्टीकरण मांगा है। अपर मुख्य सचिव द्वारा राजभवन को भेजे गए पत्र में वर्षवार सभी विश्वविद्यालयों का विवरण दिया गया है, जिसमें यह स्पष्ट है कि किस विश्वविद्यालय को कितनी राशि मिली और कितनी राशि का उपयोगिता प्रमाण पत्र नहीं जमा हुआ।
विश्वविद्यालयों को राशि सरेंडर करने और उपयोगिता जमा करने के निर्देश
उच्च शिक्षा निदेशालय ने करीब एक साल पहले ही विश्वविद्यालयों को यह राशि सरेंडर करने और उपयोगिता प्रमाण पत्र जमा करने के निर्देश दिए थे। कई बार रिमाइंडर भेजे जाने के बावजूद कोई असर नहीं हुआ। शिक्षा विभाग ने विश्वविद्यालयों के अधिकारियों की वेतन रोकने तक की चेतावनी दी। इस मुद्दे को लेकर शिक्षा विभाग और राजभवन के बीच टकराव की स्थिति भी उत्पन्न हो चुकी है।
ऑडिट रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाई की सिफारिश
पिछले साल शिक्षा विभाग ने कई विश्वविद्यालयों में ऑडिट कराई थी। ऑडिट रिपोर्ट में वित्तीय अनियमितताएं सामने आने के बाद शिक्षा विभाग ने राजभवन से आवश्यक कार्रवाई का अनुरोध किया है। अब देखना होगा कि राजभवन और शिक्षा विभाग विश्वविद्यालयों में वित्तीय अनुशासन लागू करने के लिए क्या ठोस कदम उठाते हैं।