Bihar School News :बिहार के प्राथमिक विद्यालयों में एक करोड़ तीन लाख छात्रों के लिए शैक्षणिक सत्र 2025-26 में मध्याह्न भोजन की स्वीकृति प्रदान की गई है। यह स्वीकृति प्रोजेक्ट अप्रूवल बोर्ड की पूर्व बैठक में दी गई। वर्तमान सत्र में यह संख्या एक करोड़ नौ लाख है, जिससे स्पष्ट होता है कि अगले सत्र में छह लाख कम छात्रों के लिए मिड-डे-मील की मंजूरी दी गई है।
केंद्र सरकार ने हाल ही में 1.03 करोड़ बच्चों के लिए मध्याह्न भोजन योजना की स्वीकृति दी है। यह संख्या पिछले वर्ष की तुलना में कम हुई है, जिसमें लगभग 6 लाख बच्चों की कमी आई है। इस कमी का मुख्य कारण आधार नंबर से जुड़ने की अनिवार्यता है, जिसके चलते कई बच्चे इस योजना से वंचित रह गए हैं।
केंद्र सरकार ने मध्याह्न भोजन योजना को आधार नंबर से जोड़ने का निर्णय लिया था, जिसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि केवल वास्तविक लाभार्थियों को ही इस योजना का लाभ मिले। हालांकि, इस प्रक्रिया ने कई समस्याएँ उत्पन्न की हैं।
बिहार में आधार कार्ड न होने के कारण बहुत से बच्चे इस योजना से बाहर हो गए हैं। रिपोर्टों के अनुसार, जब आधार कार्ड अनिवार्य किया गया, तो इससे पहले लगभग 1.09 करोड़ बच्चे इस योजना का लाभ उठा रहे थे। लेकिन अब यह संख्या घटकर 1.03 करोड़ रह गई है, जिससे स्पष्ट होता है कि लगभग 6 लाख बच्चे इस प्रक्रिया के कारण वंचित रह गए हैं।
राज्य के प्राथमिक विद्यालयों (कक्षा एक से आठ) में एक करोड़ तीन लाख छात्रों के लिए शैक्षणिक सत्र 2025-26 में मध्याह्न भोजन की स्वीकृति प्रदान की गई है। यह स्वीकृति प्रोजेक्ट अप्रूवल बोर्ड की पूर्व बैठक में दी गई। वर्तमान सत्र में यह संख्या एक करोड़ नौ लाख है, जिससे स्पष्ट होता है कि अगले सत्र में छह लाख कम छात्रों के लिए मिड-डे-मील की मंजूरी दी गई है।
इस विषय में अधिकारियों का कहना है कि आधार नंबर के साथ स्कूलों में नामांकन को अनिवार्य करने के कारण दोहरे नामांकन में कमी आई है। इसी कारण से छह लाख छात्रों की संख्या में कमी आई है। पहले शिकायतें आती थीं कि एक ही छात्र का नाम सरकारी और निजी दोनों स्कूलों में दर्ज है। आधार नंबर को अनिवार्य करने के बाद ऐसे दोहरे नामांकन वाले छात्रों की संख्या में कमी आई है। राज्य में प्रतिदिन स्कूलों में मध्याह्न भोजन करने वाले छात्रों की संख्या के आधार पर ही केंद्र सरकार द्वारा यह निर्णय लिया जाता है।
इस कमी का प्रभाव उन परिवारों पर पड़ा है जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं और अपने बच्चों को स्कूल भेजते समय उनके लिए एकमात्र भोजन का सहारा इसी योजना पर निर्भर करते हैं। ऐसे परिवारों के लिए यह स्थिति चिंताजनक है क्योंकि उनके बच्चों को पोषणयुक्त भोजन नहीं मिल पा रहा है।