सीमांचल में मुस्लिमों के बीच बढ़ती AIMIM की पैठ, ओवैसी ने उड़ाई राजद-कांग्रेस की नींद!इन सीटों पर टेंशन

बिहार जाति गणना रिपोर्ट के अनुसार राज्य में 2.31 करोड़ की मुस्लिम आबादी है, जो कुल जनसंख्या का 17.7% है। पिछले तीन दशकों का मुस्लिम वोटिंग पैटर्न कहता है कि इससे राजद को 76% वोट मिलता है।

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Owaisi - फोटो : news4nation

Owaisi : सीमांचल क्षेत्र के चार जिलों – किशनगंज, अररिया, पूर्णिया और कटिहार – की 24 सीटों पर दूसरे चरण में चुनाव होंगे। इन जिलों में मुस्लिम आबादी का प्रतिशत काफी ज़्यादा है, किशनगंज में 60% और कटिहार में 40% तक मुस्लिम आबादी है। यह डेमोग्राफी I.N.D.I.A. ब्लॉक – RJD और कांग्रेस – के लिए फायदेमंद है क्योंकि दशकों से ऐसा ही होता रहा था। लेकिन AIMIM नेता असदुद्दीन ओवैसी ने सीमांचल में सारी सियासी हवा बदल दी। भले ही 2015 के विधानसभा चुनाव में ओवैसी के दल को कोई जीत नहीं मिली हो लेकिन यह दिखाने के लिए कि वह सिर्फ पतंग उड़ाने (पतंग AIMIM का चुनाव चिन्ह है) के लिए नहीं आए थे, हैदराबाद के सांसद सीमांचल में डटे रहे। 


उनकी कोशिशें रंग लाईं, जब पिछले विधानसभा चुनावों से ठीक पहले उनके उम्मीदवार ने किशनगंज से उपचुनाव जीता। 2020 में, AIMIM ने सीमांचल की राजनीति बदल दी। उनकी पार्टी ने पांच सीटें जीतीं जिसमें किशनगंज और पूर्णिया में दो-दो और अररिया में एक शामिल रही। इतना ही ओवैसी ने बिहार भर में एक दर्जन से ज़्यादा सीटों पर RJD-कांग्रेस की संभावनाओं को नुकसान पहुंचाया। एक ऐसे चुनाव में जहां NDA और RJD के नेतृत्व वाले विपक्ष के बीच सिर्फ 12,000 वोटों का अंतर था, मार्जिनल सीटें मायने रखती थीं लेकिन ओवैसी के बढ़ते जनाधार ने विपक्ष का पासा पलट दिया।


ओवैसी की 5 सीटों पर जीत 

किशनगंज में, कांग्रेस बीजेपी उम्मीदवार से 1,400 से भी कम वोटों से जीतने में कामयाब रही, क्योंकि AIMIM के कमरुद्दीन हुदा को 24% वोट मिले। पास के पूर्णिया जिले की दो सीटों पर, AIMIM उम्मीदवारों ने RJD-कांग्रेस के उम्मीदवारों को तीसरे स्थान पर धकेल दिया। 2020 के अनुभव के आधार पर ही इस बार ओवैसी खुद चुनाव प्रबंधन के लिए किशनगंज में डेरा डाले हुए हैं। हालांकि पिछले बार ओवैसी के दल से 5 विधायक जरुर जीते लेकिन बाद में पांच में से चार विधायक उन्हें छोड़कर RJD में शामिल हो गए। 


राजद को झटका 

बिहार जाति गणना रिपोर्ट के अनुसार राज्य में 2.31 करोड़ की मुस्लिम आबादी है, जो कुल जनसंख्या का 17.7%  है। पिछले तीन दशकों का मुस्लिम वोटिंग पैटर्न कहता है कि इससे राजद को 76% वोट मिलता है। ऐसे में ओवैसी के  AIMIM के आने से बिहार में राजद को सबसे बड़ा झटका लगा । हालांकि ओवैसी के बढ़ते जनाधार के बीच उन पर आरोप लगता है कि AIMIM के मैदान में आने से विपक्ष के वोट बंट जाते हैं, जिसका फायदा बीजेपी को होता है।  वहीं ओवैसी का कहना है कि "यह अब सबको पता है कि मैंने (RJD अध्यक्ष) लालू प्रसाद और तेजस्वी यादव को लेटर लिखकर गठबंधन की इच्छा जताई थी। लेकिन कोई जवाब नहीं आया। अब, हमें अपने पैर जमाने के लिए वह सब करना होगा जो हम कर सकते हैं।" 


हैदराबाद की पार्टी को बिहार में क्यों मिला सपोर्ट  

मुसलमानों का एक वर्ग मानता है कि ओवैसी संसद में मुसलमानों से जुड़े मुद्दे उठाते हैं। वहीं ओवैसी की ओर से कांग्रेस और राजद जैसे दलों पर आरोप लगाया जाता रहा है कि वह मुस्लिमों को केवल वोट बैंक के तौर पर इस्तेमाल करते हैं। साथ ही भाजपा पर आरोप लगाते हैं कि वह मुस्लिमों पर हमलावर रहकर सिर्फ हिंदू वोटरों को गोलबंद करते हैं न कि विकास का काम होता है। ओवैसी की आक्रामक छवि का सीधा फायदा उन्हें मुस्लिम वर्ग से जोड़ता है। इसका बड़ा प्रभाव सीमांचल के वोटरों पर पड़ा और 2020 के चुनाव में ओवैसी ने करिश्मा कर दिया।