बेलसंड विधानसभा सीट: रघुवंश प्रसाद सिंह की विरासत और भाजपा का अब तक अधूरा सपना
बिहार की बेलसंड विधानसभा सीट का इतिहास रघुवंश प्रसाद सिंह की राजनीतिक विरासत और भाजपा की अब तक की हार से जुड़ा है। जानिए इस सीट पर अब तक के चुनावी नतीजे, प्रमुख चेहरे और जातीय समीकरण।

सीतामढ़ी: बिहार के सीतामढ़ी जिले की बेलसंड विधानसभा सीट का राजनीतिक इतिहास बेहद दिलचस्प रहा है। यह वही सीट है, जिसने एक समय रघुवंश प्रसाद सिंह जैसे कद्दावर नेता को तीन बार लगातार विधानसभा में पहुंचाया था। लेकिन इस सीट की एक और खास बात है—यहां अब तक भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को जीत का स्वाद नहीं मिला है। बेलसंड सीट पर वर्तमान में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के संजय कुमार गुप्ता विधायक हैं। उन्होंने 2020 के विधानसभा चुनाव में जनता दल यूनाइटेड (जदयू) की सुनीता सिंह चौहान को हराकर जीत दर्ज की थी। इस चुनाव में गुप्ता को 49,682 वोट मिले, जो कुल मतदान का 35.71% था, जबकि सुनीता सिंह को 25.87% यानी 35,997 वोट मिले थे। चुनाव में कुल 52.5% मतदान दर्ज किया गया।
इस सीट को उसकी पहचान रघुवंश प्रसाद सिंह से मिली, जो 1977, 1980, 1985 और 1995 में अलग-अलग दलों के टिकट पर विधायक बने। उन्होंने जनता पार्टी, जनता पार्टी सोशलिस्ट, लोकदल और जनता दल जैसे दलों से चुनाव लड़कर जीत हासिल की। 1996 में उनके लोकसभा जाने के बाद हुए उपचुनाव में समता पार्टी के वृषिन पटेल ने सीट अपने नाम की। सुनीता सिंह चौहान ने भी इस सीट पर तीन बार जीत दर्ज की है। 2015 में उन्होंने महागठबंधन के प्रत्याशी के रूप में लोजपा के नासिर अहमद को करीब चार हजार वोटों से हराया था। इससे पहले वह 2010 में जदयू के टिकट पर और फरवरी 2005 में लोजपा के टिकट पर जीत चुकी थीं। अक्टूबर 2005 में राजद के संजय गुप्ता ने उन्हें हराया था।
अब तक बेलसंड सीट पर कुल 16 बार चुनाव हुए हैं। इनमें कांग्रेस और प्रजा सोशलिस्ट पार्टी ने तीन-तीन बार, राजद और जदयू ने दो-दो बार, जबकि लोजपा, समता पार्टी, जनता दल, लोकदल, जनता पार्टी सेक्युलर और जनता पार्टी ने एक-एक बार जीत दर्ज की है। लेकिन भाजपा के लिए यह सीट अभी भी एक अधूरा सपना बनी हुई है।
बेलसंड में मुस्लिम, यादव और राजपूत वोटर लगभग समान संख्या में हैं, जबकि रविदास और पासवान समुदाय निर्णायक भूमिका में रहते हैं। 2010 में जहां वोटिंग प्रतिशत 49.5% था, वहीं 2015 में यह बढ़कर 52% हो गया। हालांकि, मुस्लिम-यादव गठजोड़ के बावजूद राजद को 2010 में हार का सामना करना पड़ा था।
बेलसंड की राजनीति हमेशा से व्यक्तित्व आधारित रही है, और जातीय समीकरणों का सीधा असर चुनावी नतीजों पर पड़ा है। रघुवंश प्रसाद सिंह जैसे नेता की उपस्थिति इस सीट को लंबे समय तक राष्ट्रीय राजनीति के केंद्र में बनाए रखी। लेकिन अब, जबकि भाजपा राज्यभर में अपना प्रभाव बढ़ा रही है, बेलसंड उसकी रणनीति में एक अहम लेकिन अब तक अधूरी कड़ी बना हुआ है।
क्या 2025 का चुनाव भाजपा के लिए कोई नई शुरुआत लाएगा, या यह सीट फिर से किसी पुराने चेहरे की वापसी का गवाह बनेगी?