Bihar Vidhansabha Chunav 2025: बिहार का बदलता मिज़ाज-ए-सियासत, बिहार विधानसभा में कम हुए उम्मीदवार, 2005 के बाद हो रहा सबसे छोटा मुकाबला

Bihar Vidhansabha Chunav 2025: बिहार का बदलता मिज़ाज-ए-सियास

Bihar Vidhansabha Chunav 2025: बिहार की सियासत एक बार फिर चुनावी तपिश में तप रही है। अब जब सभी 243 विधानसभा सीटों पर प्रत्याशियों की सूची मुकम्मल हो चुकी है, तो तस्वीर साफ़ दिख रही है कि इस बार सियासी रणभूमि में दावेदारों की तादाद में भारी गिरावट दर्ज की गई है। चुनाव आयोग के आँकड़ों के मुताबिक़, 2025 के विधानसभा चुनाव में कुल 2616 प्रत्याशी मैदान में हैं, जबकि 2020 के मुक़ाबले 1117 कम दावेदार इस बार जनता के दरबार में दस्तक दे रहे हैं।

पिछले विधानसभा चुनाव यानी 2020 में 3733 उम्मीदवार मैदान में थे। इस बार यह संख्या लगभग 30 फ़ीसदी घटकर रह गई है। दिलचस्प यह है कि झारखंड के गठन (2000) के बाद हुए विधानसभा चुनावों में प्रत्याशियों की यह संख्या 2005 के बाद सबसे कम है।

अगर हम चुनावी इतिहास की परतें पलटें, तो 1990 से 2000 के दशक तक बिहार की सियासत में उम्मीदवारों की बाढ़ आ जाया करती थी। उस दौर में एक-एक सीट पर डेढ़ दर्जन से ज़्यादा प्रत्याशी आम बात थी। 2010 से 2020 तक औसतन 3500 से ज़्यादा उम्मीदवार मैदान में उतरते रहे। मगर अब जनता और दलों—दोनों का मिज़ाज बदला-बदला नज़र आ रहा है।

राजनीतिक जानकारों का कहना है कि इस बार टिकट वितरण में दलों ने “कम लेकिन मज़बूत उम्मीदवार” की रणनीति अपनाई है। वहीं, कई छोटे दलों और निर्दलीयों ने भी परिस्थितियों का जायज़ा लेते हुए मैदान से दूरी बनाई है। यह भी हक़ीक़त है कि बढ़ती चुनावी लागत और सियासी समीकरणों की जटिलता ने कई चेहरों को हाशिये पर धकेल दिया है।

ईवीएम का मसला भी दिलचस्प है। चुनाव आयोग के नियमों के मुताबिक़, एक ईवीएम में अधिकतम 16 प्रत्याशियों के नाम, पार्टी और चुनाव चिन्ह दर्ज किए जा सकते हैं। जब किसी विधानसभा क्षेत्र में 16 से ज़्यादा प्रत्याशी हों, तो वहाँ दो ईवीएम मशीनें लगानी पड़ती हैं।

इस बार ऐसे नौ विधानसभा क्षेत्र हैं जहाँ मतदाताओं को दो-दो ईवीएम से वोट डालना होगा। इनमें दरभंगा का बहादुरपुर (17 प्रत्याशी), मुज़फ़्फ़रपुर का कुढ़नी (20) और मुज़फ़्फ़रपुर (20), वैशाली का महनार (18), कटिहार का बलरामपुर (18), कैमूर का चैनपुर (22), रोहतास का सासाराम (22), औरंगाबाद का ओबरा (18) और गया शहर (22 प्रत्याशी) शामिल हैं। इन क्षेत्रों में सियासत की गर्मी कुछ ज़्यादा ही महसूस की जा रही है।

अगर पिछले चुनावों के आँकड़े पर नज़र डालें तो तस्वीर कुछ यूँ बनती है:

2005: 3193 प्रत्याशी

2010: 3523 प्रत्याशी

2015: 3693 प्रत्याशी

2020: 3733 प्रत्याशी

2025: 2616 प्रत्याशी

इन आंकड़ों से साफ़ है कि बिहार की राजनीति अब भीषण प्रतिस्पर्धा से निकलकर चयनित रणनीति की ओर बढ़ रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह बदलाव सियासी परिपक्वता की निशानी है जहाँ दल अब भीड़ नहीं, उम्मीदवार की साख और जनाधार पर भरोसा कर रहे हैं।