Bihar Vidhansabha Election : कांग्रेस का राजद से अलग होकर विधानसभा चुनाव में उतरना घाटे का सौदा ! राहुल गांधी को झेलनी होगी मुसीबत
बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस अगर राजद से अलग होकर चुनाव में उतरती है तो यह बड़ा घाटे का सौदा हो सकता है. पिछले चुनावों का इतिहास कुछ ऐसा ही है जिसे देखकर राहुल गांधी की चिंता बढ़ सकती है.

Bihar Vidhansabha Election : बिहार विधानसभा चुनाव 2025 को लेकर सियासी गतिविधियां तेज हैं. एनडीए और महागठबंधन की ओर से नेताओं का बिहार दौरा भी शुरू हो चुका है. एक ओर जहां एनडीए के सभी घटक दल एकजुटता का प्रदर्शन करते हुए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को चुनाव में चेहरा बनाकर उतरने की बातें कर चुके हैं तो दूसरी ओर महागठबंधन में एकजुटता को लेकर ही कई किस्म के सवाल उठ रहे हैं. पिछले दिनों कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने बिहार दौरे में यह जरुर कहा कि राज्य में महागठबंधन का साथ रहेगा लेकिन कांग्रेस किन शर्तों पर राजद के साथ रहेगी इसका खुलासा नहीं किया.
बिहार में कांग्रेस का पिछले दो दशक का प्रदर्शन भी काफी-उतार चढ़ाव वाला रहा है. इसमें कांग्रेस जब भी राजद के साथ रही है उसके लिए फायदेमंद साबित हुआ है. लेकिन कांग्रेस का अकेले चुनाव में उतरना हमेशा ही नुकसानदायक रहा है. बिहार में वर्ष 1990 से ही कांग्रेस का प्रदर्शन गिरता गया. वहीं बिहार से झारखंड के अलग होने के बाद तो बिहार में कांग्रेस चौथे नंबर की पार्टी बनकर रह गई. ऐसे में इस वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को एक बड़ी चुनौती है कि वह कैसे खुद को अग्रिम पंक्ति में लाकर खड़ा करे.
वर्ष 2005 से कांग्रेस का प्रदर्शन
वर्ष 2000 के विधानसभा चुनाव में संयुक्त बिहार था यानी झारखंड भी राज्य का हिस्सा था. तब कांग्रेस ने राजद से अलग होकर चुनाव में उम्मीदवार उतारे और 23 सीटों जीत मिली. झारखंड के अलग होने के बाद 2005 के बिहार विधानसभा चुनाव में फरवरी 2005 में भी कांग्रेस ने राजद से अलग होकर चुनाव में उम्मीदवार उतारा और 10 सीटों पर सफल रही. वहीं अक्तूबर 2005 में राजद के साथ चुनाव में उतरने पर कांग्रेस के 9 उम्मीदवार जीते. इसी तरह 2010 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने राजद से अलग होकर चुनाव लड़ा तो सिर्फ 4 सीटों पर सिमट गई.
वहीं 2015 और 2020 में फिर से राजद के साथ कांग्रेस उतरी तो क्रमशः 27 और 19 सीटों पर सफल रही. यानी राजद के साथ चुनाव में उतरने पर कांग्रेस फायदे में रही. इसमें वर्ष 2015 में नीतीश कुमार की पार्टी जदयू भी राजद और कांग्रेस के साथ गठबंधन में थी. सीटों की संख्या के लिहाज से वर्ष 1995 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 29 सीटें जीती थी उसके बाद वर्ष 2015 में सबसे बेहतर प्रदर्शन करते हुए 27 सीटों पर जीत मिली.
राहुल गांधी की बढ़ी सक्रियता
कांग्रेस नेता राहुल गांधी की बिहार को लेकर सक्रियता बढ़ी हुई है. वे इस वर्ष के पहले 4 महीनों में तीन बार बिहार का दौरा कर चुके हैं. इतना ही नहीं एक बड़े सांगठनिक बदलाव के तहत कांग्रेस ने पहले बिहार कांग्रेस प्रभारी के रूप में तेज तर्रार नेता कृष्ण अल्लावरू को जिम्मेदारी सौपी. वहीं बिहार अध्यक्ष पद से डॉ अखिलेश सिंह को हटाकर राजेश राम को नया अध्यक्ष बनाया. यह एक बड़ा बदलाव रहा क्योंकि अखिलेश सिंह भूमिहार जाति से आते हैं और राजेश राम दलित समुदाय से. इतना ही नहीं पार्टी ने जिला अध्यक्षों की नियुक्ति में भी सवर्णों की जगह ओबीसी, पिछड़े और दलितों को तरजीह दिया. वहीं कन्हैया कुमार भी बिहार में पदयात्रा कर रहे हैं. वहीं कांग्रेस ने शकील अहमद खान को विधानसभा में नेता विधायक दल बना रखा है. इससे कांग्रेस एक बड़े वोट बैंक को मैसेज देने की कोशिश की है.
बदलावों का क्या असर
सियासी जानकारों का कहना है कि इस बार के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस अच्छा मोलभाव करने की कोशिश कर सकती है. राजद के साथ सीटों की शेयरिंग के दौरान कांग्रेस खुद को फ्रंट पर रखना चाहती है. पिछले चुनाव में पार्टी ने 70 सीटों पर उम्मीदवार उतारा था. इस बार भी पार्टी की कोशिश इसी तरह की है. वहीं चुनाव में पार्टी को मजबूत जनाधार मिले इसके लिए अभी से कार्यक्रमों और अपने संगठन के आधार पर खुद को मजबूत करने की कोशिश करती हुई दिख रही है. पार्टी की कोशिश है कि इसका तत्कालिक कोई फायदा न हो, लेकिन इसका फायदा उसे भविष्य में जरूर मिल सकता है.