Kesariya Assembly Seat: CPI के गढ़ से JDU की सत्ता तक, बदला सियासी समीकरण

Kesariya Assembly Seat: बिहार की राजनीति में ऐतिहासिक भूमिका निभाने वाली केसरिया विधानसभा सीट ने बीते सात दशकों में कई रंग देखे हैं। 1952 में अस्तित्व में आई यह सीट कभी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) का मजबूत गढ़ मानी जाती थी, लेकिन समय के साथ सियासी समीकरण बदलते गए और आज यह सीट जनता दल यूनाइटेड (JDU) के कब्जे में है। वर्तमान में यहां से जदयू की शालिनी मिश्रा विधायक हैं।
1952 से शुरू हुए इस सीट के चुनावी इतिहास में अब तक 18 बार वोट डाले गए हैं। शुरुआती वर्षों में यहां CPI का वर्चस्व रहा। पीतांबर सिंह ने यहां से चार बार और यमुना यादव ने दो बार जीत दर्ज की। पार्टी ने इस सीट से कुल छह बार जीत हासिल की, लेकिन 1995 के बाद से CPI को यहां कभी जीत नसीब नहीं हुई।
इसके बाद कांग्रेस ने पांच बार, राजद ने दो बार, और भाजपा, जदयू, समता पार्टी व जनता पार्टी ने एक-एक बार जीत दर्ज की। भाजपा को पहली बार 2010 में यहां जीत मिली, जब सचिन्द्र प्रसाद सिंह ने CPI प्रत्याशी को हराया।
2020 में शालिनी मिश्रा ने जदयू के टिकट पर चुनाव जीतते हुए नया रिकॉर्ड बनाया। उन्होंने 40,219 वोट (26.59%) हासिल किए, जबकि लोजपा के राम शरण यादव को 18,904 वोट (12.5%) मिले। राजद इस बार तीसरे स्थान पर रहा। कुल मतदान प्रतिशत 56.5% रहा, जिसमें महिलाओं की भागीदारी पुरुषों की तुलना में 12% अधिक रही।
2015 में इस सीट से राजद के राजेश कुमार विजयी हुए थे। उन्होंने भाजपा के राजेंद्र प्रसाद गुप्ता को 16,000 से अधिक वोटों से हराया था। राजेश को 62,902 वोट (47.55%) मिले थे, जबकि भाजपा उम्मीदवार को 35.49% वोट मिले।
2010 में भाजपा के सचिन्द्र प्रसाद सिंह ने पहली बार इस सीट पर भगवा लहराया था। उन्हें 36.67% वोट मिले, जबकि CPI के राम शरण प्रसाद को 24.31% वोट मिले थे।
केसरिया सीट पर मुस्लिम और यादव मतदाताओं की बड़ी संख्या के कारण यहां आरजेडी को पारंपरिक बढ़त मिलती रही है। इसके अलावा कोइरी, राजपूत और ब्राह्मण समुदाय भी निर्णायक भूमिका में हैं। यहां कुल मतदाताओं में लगभग 13.9% मुस्लिम, 11.4% अनुसूचित जाति और 0.35% अनुसूचित जनजाति के वोटर शामिल हैं। 95% से अधिक मतदाता ग्रामीण पृष्ठभूमि से आते हैं।