Maduban Assembly Seat: जहां बदले सियासी पाले, लेकिन कायम रहा राणा रणधीर का दबदबा

Maduban Assembly Seat

Maduban Assembly Seat: बिहार की राजनीति में अपनी विशिष्ट पहचान रखने वाली मधुबन विधानसभा सीट ने वक्त के साथ कई राजनीतिक करवटें देखी हैं। 1957 में अस्तित्व में आई इस सीट पर शुरुआत में निर्दलीय उम्मीदवार रूप लाल राय ने जीत हासिल कर सबको चौंका दिया था। इसके बाद कांग्रेस, सीपीआई, जनता दल और राजद जैसी पार्टियों ने यहां बारी-बारी से जीत का स्वाद चखा, लेकिन 2015 से यह सीट भारतीय जनता पार्टी के खाते में है और राणा रणधीर सिंह लगातार इस पर काबिज हैं। मधुबन सीट पर अब तक 15 विधानसभा चुनाव हो चुके हैं। कांग्रेस ने चार बार, सीपीआई ने तीन बार, जदयू और राजद ने दो-दो बार, जबकि भाजपा, जनता पार्टी और जनता दल ने एक-एक बार जीत दर्ज की है।

2015 से पहले राणा रणधीर राजद के कद्दावर नेता माने जाते थे। उन्होंने 2005 में राजद के टिकट पर जदयू के शिवजी राय को हराया था। लेकिन 2015 में जब राजद-जदयू गठबंधन के कारण यह सीट जदयू को दे दी गई, तो राणा रणधीर ने पाला बदलकर भाजपा का दामन थाम लिया और उसी शिवजी राय को 16 हजार से अधिक वोटों से शिकस्त दी। इस सीट पर दिलचस्प बात यह है कि 2005 से लेकर 2020 तक राणा रणधीर और शिवजी राय के बीच ही सीधी टक्कर रही है, जिसमें राणा रणधीर ने दो बार पार्टी बदलने के बावजूद बाजी मारी। 2020 में हुए चुनाव में उन्होंने राजद के मदन प्रसाद को 5,878 वोटों के अंतर से हराया और सत्ता पर अपनी पकड़ मजबूत बनाए रखी।

2020 के विधानसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी राणा रणधीर सिंह को 73,179 वोट (47.69%) मिले जबकि राजद के मदन प्रसाद को 67,301 वोट (43.86%) प्राप्त हुए। 2015 के मुकाबले भाजपा की वोट हिस्सेदारी में इजाफा हुआ और राणा रणधीर सिंह ने लगातार दूसरी बार जीत दर्ज की। 2015 में उन्होंने जदयू के शिवजी राय को हराया था, जहां उन्हें 61,054 वोट (44%) और शिवजी को 44,832 वोट (32%) मिले थे। 2010 में हालांकि बाजी जदयू के शिवजी राय के हाथ लगी थी, जिन्होंने राजद के राणा रणधीर को करीब 10,000 वोटों से हराया था। 

2008 में परिसीमन के बाद मधुबन विधानसभा सीट में मधुबन, पकड़ीदयाल और फेनहारा सामुदायिक विकास केंद्रों को शामिल किया गया। यह सीट अब शिवहर लोकसभा क्षेत्र के तहत आती है, जबकि पहले इसका नक्शा अलग था। मधुबन विधानसभा की 87.84% आबादी ग्रामीण क्षेत्र में रहती है, जो इसे विकास से जुड़े मुद्दों पर अत्यधिक संवेदनशील बनाती है। अनुसूचित जाति मतदाता 15.69%, मुस्लिम मतदाता 13% और शहरी मतदाता महज 12.16% हैं, जो विकास, सड़क, बिजली और शिक्षा जैसे मुद्दों पर वोट डालने की प्रवृत्ति रखते हैं।