Bihar Politics: विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस ने बदली रणनीति,जाति की छाती पर नाचने वाले बिहार में राहुल गांधी ने सवर्णों को क्यों दी गाली! हमीं से मोहब्बत हमीं से लड़ाई ...
Bihar Politics: बिहार में कांग्रेस और राजद की स्थिति हमीं से मुहब्बत हमीं से लड़ाई वाली है तो सवर्णों को कोस कर राहुल अलग रास्ते पर आखिर क्यों जाने को मजबूर हो रहे, पढ़िए

Bihar Politics: बिहार में कांग्रेस ने साल 1990 के बाद अपनी स्थिति खोई है। कभी बिहार की राजनीतिक हवा सदाकत आश्रम से होकर बहती थी लेकिन 1990 के बाद हवा ने रुख बदला और लालू से लेकर नीतीश का रुख राजनीति का केंद्र बन गया। लेकिन अब पार्टी नेतृत्व इस स्थिति को सुधारने के लिए कदम उठा रहा है। राहुल गांधी की हालिया यात्राएं, जैसे कि बेगूसराय में "पलायन रोको" यात्रा और पटना में संविधान सुरक्षा सम्मेलन, इस बात का संकेत हैं कि कांग्रेस अपने पुराने वोट बैंक को पुनः प्राप्त करने के लिए गंभीर है.
कांग्रेस ने अपने प्रदेश अध्यक्ष और अन्य नेताओं में बदलाव किया है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि पार्टी नए सिरे से अपनी रणनीति तैयार कर रही है। राजेश कुमार को नया प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया है, जो दलित वोट बैंक पर ध्यान केंद्रित करने की कोशिश करेंगे. इससे पहले, पार्टी ने पिछड़े वर्गों और दलितों के मुद्दों पर ध्यान देने का निर्णय लिया था।
राहुल गांधी की गतिविधियों पर लालू यादव और तेजस्वी यादव की नजरें हैं। यदि कांग्रेस ने मुस्लिम और दलित वोटों का बंटवारा किया तो यह आरजेडी के लिए चुनौती बन सकता है. इसके अलावा, सीटों के बंटवारे को लेकर भी दोनों पार्टियों के बीच टकराव हो सकता है। राहुल गांधी ने स्पष्ट किया है कि वह पिछड़ों और दलितों के मामलों में कांग्रेस की गलतियों को सुधारने का प्रयास कर रहे हैं.
वहीं हाल ही में बिहार में कांग्रेस नेता राहुल गांधी के एक बयान ने राजनीतिक हलचल पैदा कर दी है। उनके द्वारा सवर्ण समुदाय के प्रति की गई टिप्पणी को लेकर विवाद उत्पन्न हुआ है। यह बयान ऐसे समय आया है जब बिहार में चुनावी माहौल गर्म है और महागठबंधन अपनी स्थिति मजबूत करने की कोशिश कर रहा है।
राजनीतिक जानकार कौशलेंद्र प्रियदर्शी के अनुसार कांग्रेस ने प्रारंभ में जो रुख अपनाया, उसका उद्देश्य आरजेडी की सीटों में कटौती की योजना को रोकना था। कांग्रेस को यह भी पता है कि पिछली बार उसे 70 सीटें मिली थीं, लेकिन उम्मीदवारों के चयन से लेकर चुनावी जीत तक उसे कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। इस बार केवल 19 उम्मीदवार ही सफल हुए। आरजेडी इस बार कांग्रेस को 25-30 सीटों पर निपटाने की तैयारी कर रही थी। कांग्रेस के सख्त रुख के कारण अब सीटों में कटौती कम होने की संभावना है।
वहीं राहुल गांधी के फर्ट क्लास सिटिजन, सेकेंड क्लास सिटिजन के बयान सवर्ण समुदाय को लेकर नकारात्मक प्रतिक्रिया का कारण बना है। इस प्रकार की टिप्पणियों से राजनीतिक तनाव बढ़ सकता है, खासकर जब चुनाव नजदीक हों। सवर्ण समुदाय, इस तरह की टिप्पणियों से नाराज हो सकता है और इसका असर चुनाव परिणामों पर पड़ सकता है। वहीं महागठबंधन, जिसमें कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल (राजद), और अन्य क्षेत्रीय दल शामिल हैं, चुनावी रणनीति बनाने में जुटा हुआ है। हालांकि, राहुल गांधी के विवादास्पद बयान से महागठबंधन की स्थिति कमजोर हो सकती है।
राजनीतिक जानकार कौशलेंद्र प्रियदर्शी के अनुसार साल 1990 के बदले कांग्रस का बिहार में जनाधार सवर्ण, मुस्लिम और पिछड़ी जाति के लोग होते थे, लेकिन बिहार की राजनीति में मंडल कमंडल के बाद स्थिति बदली और कांग्रेस से सवर्ण वोट तो छिटका हीं, मुस्लिमों ने भी अपना दूसरा रास्ता अख्तियार कर लिया. पिछड़ी जातियों ने भी कांग्रेस का साथ छोड़ दिया। राहुल गांधी ने जब बिहार में कहा कि हमने गलती की है, जो काम करना चाहिए था , जिनके हक के लिए लड़ना चाहिए था हमने नहीं लड़ा. कांग्रेस चुनाव के लिए रणनीति बदल रही है।तेलंगाना के कृष्णा अल्लावारू को प्रभारी नियुक्त कर बिहार भेजा गया। अल्लावारू, जो कम और संक्षिप्त शब्दों में संवाद करते हैं, ने आरजेडी नेताओं से दूरी बना ली। उन्होंने महागठबंधन की अगुवाई करने वाले लालू प्रसाद यादव से मिलने की आवश्यकता नहीं समझी। वे अपने तरीके से बिहार में भ्रमण करते रहे और अपनी रिपोर्ट आलाकमान तक पहुंचाते रहे। उन्हें यह जानकारी मिली कि कांग्रेस की स्थिति प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह के कारण खराब हुई है। अखिलेश प्रसाद सिंह आरजेडी प्रमुख लालू यादव के करीबी सहयोगी हैं। अल्लावारू ने राहुल गांधी को इस बारे में बताया, जिसके परिणामस्वरूप कांग्रेस ने दलित समुदाय से आने वाले राजेश कुमार को नया प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया। अल्लावारू तब लालू यादव से मिले जब वे गंभीर रूप से बीमार थे। इसके अलावा, नए प्रदेश अध्यक्ष राजेश कुमार भी लालू यादव और तेजस्वी से दूर रहे। इसके बाद दिल्ली में बैठक होती है और राजद के साथ चुनाव लड़ने की घोषणा हो गई। यानी कांग्रेस राजद के साथ भी और विरोध भी। हमीं से मोहब्बत हमीं से लड़ाई ...
बहरहाल यदि सवर्ण समुदाय राहुल के सिटिजनशीप के बयान को लेकर असंतुष्ट होता है, तो इसका सीधा असर महागठबंधन के वोट बैंक पर पड़ेगा।अगर सवर्ण समुदाय महागठबंधन के खिलाफ एकजुट होता है, तो इससे चुनाव परिणाम प्रभावित हो सकते हैं, इसमें संदेह नहीं है।अब राहुल की रणनीति का क्या प्रभाव पड़ेगा देखना बाकी है।