बड़हरा के रण में निर्दलीय कूदे रणविजय, पूर्व एमएलसी ने बनाया माहौल, जानिए त्रिकोणीय मुकाबले में कैसे बने बड़ी ताकत
बड़हरा से एनडीए से उम्मिदारी के प्रबल दावेदार माने जा रहे पूर्व एमएलसी रणविजय सिंह को जदयू से मौका नहीं मिलने पर उन्होंने अब निर्दलीय चुनाव में उतरकर सियासी मुकाबले को रोचक बना दिया है.

Ranvijay Singh : भोजपुर जिले की बड़हरा सीट भी काफी सुर्खियों में है। गंगा के तट पर फैला बड़हरा विधानसभा क्षेत्र में इस बार के चुनावी रण में 13 प्रत्याशी किस्मत आजमा रहे हैं. इसमें भाजपा से रविन्द्र प्रताप सिंह और राजद से अशोक कुमार सिंह उर्फ़ उर्फ़ रामबाबू उम्मीदवार हैं. लेकिन यहां मुकाबले को त्रिकोणीय बनाया है पुर एमएलसी रणविजय सिंह ने जो निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनावी मैदान में हैं. जदयू के एमएलसी रहे रणविजय सिंह का टिकट अंतिम मौके पर एनडीए से कट गया जिसके बाद उन्होंने अलग सियासी राह पकड़ी है और यही बड़हरा के रण को रोचक बनाए है.
रणविजय ने अपनी जमीनी ताकत का अहसास भी नामांकन के दौरान ही करा दिया. उनके समर्थन में उमड़ी हजारों की भीड़ और वाहनों के काफिले से यहां मुकाबले के त्रिकोणीय होने के आसार स्पष्ट रूप से दिखे हैं.बड़हरा सीट का राजनीतिक इतिहास भी काफी उतार-चढ़ाव भरा रहा है. यहां तक कि वर्ष 2020 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के राघवेंद्र प्रताप सिंह ने आरजेडी के सरोज यादव को 4,973 वोटों के अंतर से हराया था. चुनाव परिणाम से पता चलता है कि बड़हरा सीट पर कड़ा मुकाबला होता है. ऐसे में रणविजय के निर्दलीय मैदान में उतरने से एक अलग किस्म के समीकरण बन गए हैं.
हर वर्ग की आवाज बनने का संकल्प
रणविजय सिंह ने कहा कि उनकी किसी व्यक्ति विशेष से कोई व्यक्तिगत लड़ाई नहीं है. यह लड़ाई बड़हरा की जनता के सम्मान, विकास, शिक्षा और स्वास्थ्य के मुद्दों की है. उन्होंने कहा, “दो बार पार्टी ने हमें नकार दिया और इस बार फिर ऐसे व्यक्ति को टिकट दिया गया है, जिसके खिलाफ प्रखंड स्तर पर विरोध की लहर है. मैं क्षेत्र के हर वर्ग की आवाज बनकर चुनाव लड़ूंगा और जनता के लिए विकास के वादे पूरे करूंगा.”
जाति नहीं जमात का नेता
बड़हरा सीट पर यादव-राजपूत की सीधी टक्कर देखने को मिली है. वहीं 'लव-कुश' (कुशवाहा-कोएरी) समीकरण भी यहां प्रमुख भूमिका निभाता है. एक ओर जहां भाजपा और राजद की कोशिश अपने अपने जातिगत समीकरणों को साधने की है वहीं रणविजय अपने पुराने सम्बंध के आधार पर जाति नहीं जमात के नेता का संकल्प लेकर आगे बढ़ रहे हैं.
चुनावी समीकरणों में बड़ा बदलाव
एमएलसी रहने के दौरान रणविजय ने यहां मजबूत जमीनी छाप छोड़ी है. यही कारण रहा कि इस बार के विधानसभा चुनाव में एनडीए का प्रत्याशी घोषित कराने के लिए कई वर्गों की ओर से रणविजय का नाम आया. हालांकि एनडीए ने उन्हें मौका नहीं दिया तो अपने जनसमर्थन को भुनाने के लिए वे निर्दलीय मैदान में उतरे हैं. यही भाजपा और राजद की परेशानी बढ़ाने का कारण बना है. क्षेत्र में रणविजय की पुरानी पकड़ से यहां मुकाबला त्रिकोणीय हो रहा है. विशेषज्ञों का कहना है कि निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में रणविजय की एंट्री बड़हरा की राजनीतिक तस्वीर को प्रभावित कर सकती है और चुनावी समीकरणों में बड़े बदलाव ला सकती है.