Thakurganj Vidhansabha: आरजेडी का गढ़ या पलटेगी बाजी? मुस्लिम बहुल इस सीट पर किसका चलेगा जादू?

बिहार के किशनगंज जिले की ठाकुरगंज विधानसभा सीट, जहां राजनीतिक समीकरण हर चुनाव में बदलते हैं। 2020 में राजद ने जीत दर्ज की, लेकिन 2025 में क्या होगा? मुस्लिम बहुल इस सीट पर सभी दलों की नजर है।

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ठाकुरगंज विधानसभा सीट बिहार के सीमांचल इलाके की एक रणनीतिक रूप से अहम और राजनीतिक रूप से बेहद दिलचस्प सीट मानी जाती है। किशनगंज जिले में आने वाली यह विधानसभा सीट सामाजिक और सांप्रदायिक विविधता से भरपूर है और हर चुनाव में कोई न कोई नया संदेश देती है। यह सीट ना तो किसी एक पार्टी की जागीर रही है, ना ही यहां कोई जातीय समीकरण स्थायी साबित हुए हैं। यही वजह है कि ठाकुरगंज हमेशा राजनीतिक विश्लेषकों और कार्यकर्ताओं के लिए जिज्ञासा का विषय बनी रहती है।


2020 के विधानसभा चुनाव में इस सीट से राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के सऊद आलम ने शानदार जीत दर्ज की थी। उन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार गोपाल कुमार अग्रवाल को 23,887 वोटों के भारी अंतर से हराकर राजद को इस सीट पर लंबे अरसे बाद मज़बूती से स्थापित किया। सऊद आलम को कुल 79,909 वोट मिले, जबकि गोपाल कुमार अग्रवाल को 56,022 वोट हासिल हुए। लेकिन यहां तक पहुंचने की कहानी सीधे नहीं रही। 2015 में जदयू के नौशाद आलम (तत्पौवा) ने 8,087 वोटों के मार्जिन से जीत हासिल की थी, और 2010 में वही नौशाद आलम लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) के टिकट पर चुनाव जीत चुके थे। इससे ये बात और भी साफ होती है कि इस सीट पर दल नहीं, उम्मीदवारों का व्यक्तिगत प्रभाव कहीं अधिक मायने रखता है।


अगर हम पिछले दो दशकों पर नजर डालें, तो 2000 और 2005 में राजद और कांग्रेस भी इस सीट पर जीत दर्ज कर चुकी हैं। डॉ. मोहम्मद जावेद (कांग्रेस) और मिथिलेश प्रसाद यादव (राजद) जैसे नेता यहां से विधायक रहे हैं। वहीं, गोपाल कुमार अग्रवाल एक ऐसा नाम हैं जो कई बार निर्दलीय और विभिन्न दलों के टिकट पर चुनाव लड़ चुके हैं और मजबूत जनाधार बनाए हुए हैं।


सामाजिक संरचना की बात करें तो ठाकुरगंज की सबसे खास बात इसकी मुस्लिम बहुल जनसंख्या है। यहां करीब 58% मतदाता मुस्लिम समुदाय से हैं, जो इस क्षेत्र को सीमांचल की बाकी सीटों से जोड़ता है। इसके अलावा SC (5.44%) और ST (6.13%) मतदाता भी चुनावी समीकरणों में निर्णायक भूमिका निभाते हैं। 96% से ज़्यादा आबादी ग्रामीण इलाकों में रहती है, यानी यहां की सियासत अब भी खेत-खलिहान, सड़क, पानी, शिक्षा और रोजगार जैसे बुनियादी मुद्दों के इर्द-गिर्द घूमती है।


यहां का वोटिंग पैटर्न भी रोचक रहा है। 2020 में 66.15% मतदान हुआ, जबकि 2015 में 70.06% और 2019 के लोकसभा चुनाव में 70.17% वोटिंग रिकॉर्ड किया गया था। 2020 तक यहां कुल मतदाता थे 2.91 लाख से अधिक, और मतदान केंद्रों की संख्या 431 थी। हालांकि, 2024 के अपडेटेड डेटा के मुताबिक मतदान केंद्रों की संख्या घटकर 301 हो गई है।


2025 का चुनाव ठाकुरगंज के लिए फिर से एक टर्निंग पॉइंट साबित हो सकता है। क्या राजद इस बार भी अपने जनाधार को कायम रख पाएगा? या जदयू अपने पुराने नेता नौशाद आलम के सहारे वापसी करेगा? वहीं कांग्रेस, AIMIM और अन्य छोटे दल भी मुस्लिम बहुल वोट बैंक पर नज़र गड़ाए बैठे हैं। ऐसे में मुकाबला दिलचस्प होने वाला है और यह चुनाव सिर्फ नेताओं का नहीं, जनता के बदलते मिजाज का भी इम्तिहान होगा।