Panchayat 4 Review: पंचायत के चौथे सीजन में लोगों को दिखा अलग अंदाज! फिर भी उम्मीदों पर थोड़ा रह गया पीछा, जानें कैसा रहा शो
Panchayat 4 Review: पंचायत सीजन 4 की समीक्षा में जानें कैसे यह लोकप्रिय शो इस बार उम्मीदों पर थोड़ा पीछे रह गया। अभिनय तो शानदार रहा लेकिन क्या कमजोर राइटिंग ने इसे पिछड़ा दिया?

Panchayat 4 Review: पंचायत कोई सीरीज नहीं, हमारे गांव की यादों का एक जीवंत एलबम बन गई है। पहले दो सीजन में फुलेरा, सचिव जी, प्रधान जी और रिंकी हमारे अपने बन गए। प्रहलाद चा की पीड़ा, बनराकस की चालाकियां, और बिनोद की मासूमियत... हर किरदार दिल के इतने करीब आ गया कि हम भूल गए कि यह एक काल्पनिक कहानी है।लेकिन सीजन 4 कुछ अलग था। इस बार वो जादू जो पहले सीजनों में था, थोड़ा कम महसूस हुआ।
कहानी में ट्विस्ट था, लेकिन पकड़ नहीं बन पाई
पंचायत सीजन 4 की शुरुआत होती है सचिव जी और बनराकस पर लगे केस से। सचिव जी को अपने करियर की चिंता है, वहीं बनराकस को चुनाव लड़ने से रोका जा रहा है। प्रधान जी पर गोली किसने चलाई? भूषण की राजनीति क्या रंग लाएगी? इन सब सवालों की परतें धीरे-धीरे खुलती हैं। लेकिन ये परतें इतनी स्लो और फैली हुई हैं कि दर्शक कई बार खो सा जाता है।चुनाव के खेल, पंचायत की राजनीति, और रिश्तों की उलझन को दिखाने का प्रयास तो अच्छा है, लेकिन स्क्रिप्ट वह कसावट नहीं ला पाई जो इस शो की पहचान बन चुकी थी।
उम्मीद के मुताबिक दमदार
सीजन भले ही थोड़ा कमजोर रहा हो, लेकिन कलाकारों की परफॉर्मेंस एक बार फिर दिल जीत लेती है।
जीतेन्द्र कुमार (सचिव जी): इस बार थोड़े एक्शन मोड में दिखे। लात-घूंसे चलाए और अपनी बंद मानसिकता को थोड़ा खोला भी।
रघुवीर यादव और नीना गुप्ता: अपने-अपने किरदारों में पूरी तरह रमे हुए हैं।
फैजल मलिक (प्रहलाद चा): फिर से इमोशन की लहरें जगा गए।
अशोक पाठक, दुर्गेश कुमार और सान्विका: इस सीजन में ज़्यादा स्क्रीन स्पेस मिला और उन्होंने उसका पूरा फायदा उठाया।
राइटिंग और डायरेक्शन: इस बार कहानी में कमज़ोरी
चंदन कुमार की राइटिंग इस बार उतनी प्रभावी नहीं रही जितनी पहले दो सीजन में थी। पहले के सीजन में छोटे-छोटे संवाद भी गहरी बात कह जाते थे। इस बार वैसी बात नहीं बन पाई। डायरेक्शन की बात करें तो अक्षत विजयवर्गीय और दीपक कुमार मिश्रा ने माहौल और किरदारों को उसी ग्रैवीटी के साथ पेश किया है, लेकिन स्क्रिप्ट की कमजोरी उनकी मेहनत को ढक देती है।
पंचायत की पहचान और जिम्मेदारी
पंचायत ने जो मुकाम हासिल किया है, वो किसी शो के लिए आसान नहीं होता। दर्शकों ने इसे दिल से अपनाया है। लेकिन यही अपनापन अब एक जिम्मेदारी बन चुका है। दर्शक अब सिर्फ मनोरंजन नहीं चाहते, वो उस गहराई और भावनात्मक जुड़ाव की उम्मीद भी करते हैं, जो पहले सीजनों ने दिया था।