Explainer: भारतीय क्रिकेट टीम व महेंद्र सिंह धोनी के एक्सीडेंटल कप्तान बनने की कहानी, मैच फिक्सिंग के कुचक्र में कैसे उलझे बड़े खिलाड़ी...सब कुछ इन्फोग्राफिक्स के साथ पढ़िए...

Sports News: पहले अंक में हम आपको बतायेंगे कि कैसे और किन परिस्थितियों में महेंद्र सिंह धोनी को भारतीय क्रिकेट टीम का कप्तान बनाया गया और टीम उस वक्त किस दौर से गुजर रही थी।

महेंद्र सिंह धोनी
एक्सीडेंटल कप्तान कैसे बने महेंद्र सिंह धोनी- फोटो : news4nation

Sports News: लीजिए अब धोनी…यही कहना था इंडियन क्रिकेट फैन्स का जब महेंद्र सिंह धोनी को 2007 के वर्ल्ड कप में टीम की ख़राब प्रदर्शन के बाद एक्सीडेंटल कैप्टन बनाया गया था...तब भारतीय टीम बहुत ही बुरे दौर से गुजर रही थी। फैन्स का भरोसा भारतीय टीम से पूरी तरह उठ गया था. 2007 में वर्ल्ड कप में टीम की खराब परफॉरमेंस और भारत को बांग्लादेश से मिली करारी हार से उन दिनों के भारतीय कप्तान बुरी तरह विचलित हो गए और फिर वह काम कर बैठे जिसका अनुमान किसी को नहीं था। भारतीय क्रिकेट में उस समय सन्नाटा पसर गय़ा जब कप्तान राहुल द्रविड़ ने अचानक अपने पद से इस्तीफा दे दिया। भारतीय टीम के अनुभवी  खिलाड़ी अपने क्रिकेट जीवन के बुरे दौर से गुजर रहे थे स्थिति यह थी कि भारतीय टीम  के पास कप्तान का कोई विकल्प सामने नहीं दिख रहा था। इसी बीच टी 20 वर्ल्ड कप शुरु होने वाला था और टीम के नेतृत्व को संभालने के लिए कोई योग्य खिलाड़ी नजर नहीं आ रहे थे। तब BCCI ने एक अहम फ़ैसला लिया और ‘महेंद्र सिंह धोनी’ को एक्सीडेंटल कप्तान बनाया।

बुरे दौर में फंसा भारतीय क्रिकेट टीम 

ये बात है 1990 से 2000  तक के क्रिकेट की। उस वक्त भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान थे मोहम्मद अजहरूद्दीन। मोहम्मद अज़हरुद्दीन एक बेहतरीन बल्लेबाज़ थे, उन्हें कलाई का जादूगर कहा जाता था। उन्होंने 1992, 1996, और 1999 में भारतीय टीम की कप्तानी की थी। अज़हरुद्दीन ने अपने डेब्यू टेस्ट मैच में ही शतक लगाया था। उन्होंने लगातार तीन टेस्ट मैचों में शतक लगाने का वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया था। अज़हरुद्दीन अपनी क्रिकेट कैरियर में 99 टेस्ट मैच खेले थे और ठीक 100वें मैच के पहले उन्हें बैन कर दिया गया था। दअरसल, अजहरुद्दीन के नाम जितने अच्छे रिकॉर्ड हैं, उतने ही शर्मनाक दौर से उनकी कप्तानी के दौरान भारतीय टीम को गुजरना पड़ा था। अजहरुद्दीन के ऊपर मैच फिक्सिंग का आरोप लगा था। बात साल 1999 की है जब इंडिया टीम अपने अपमानजनक प्रदर्शन से ट्रोल हो रही थी। तब इंग्लैंड में वर्ल्ड कप खेला जा रहा था इस वर्ल्ड कप में टीम इंडिया को जिम्बाब्वे जैसे कमजोर टीम से भी हार का सामना करना पड़ा था। इस वक्त मैच फिक्सिंग की चर्चा भी जोरों पर थी। इसी  बीच टीम इंडिया का मुकाबला एक ओर कमजोर टीम केन्या से हुई। इस मैच को फिक्स माना जा रहा था। इसके पीछे की वजह थी टाइटन कप। दअरसल, 1996 में जब टाइटन कप हुआ था तब इंडिया टीम के कप्तान अजहरुद्दीन थे और उस वक्त भी मैच फिक्सिंग का आरोप लगा था और अखबारों की मानें तो टाइटन कप में सचिन तेंदुलकर ने अपने बैटिंग से तमाम फिक्सर के पैसे डूबा दिए थे। इंडिया को मैच हारना था लेकिन सचिन की बल्लेबाजी ने टीम इंडिया को बड़ी जीत दिलाई थी। 

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भारतीय टीम पर फिक्सिंग का आरोप 

ठीक उसी प्रकार 1999 के वर्ल्ड कप में टीम इंडिया की भिड़ंत केन्या से होने वाली थी।  इस वक्त भारतीय टीम पर मुसीबतों का पहाड़ टूटा हुआ था। एक ओर जहां मैच फिक्सिंग के मामले में CBI कार्रवाई करते हुए खिलड़ियों से पूछताछ कर रही थी। तो वहीं दूसरी ओर सचिन तेंदुलकर भी अपनी जिंदगी के सबसे मुश्किल दौर से गुजर रहे थे। सचिन के पिता का निधन हो गया था और पिता के निधन के बाद वो अपना पहला मैच केन्या के खिलाफ खेल रहे थे। इस मैच में सचिन के धुंआधार पारी के बदौलत टीम इंडिया ने केन्या के सामने 329 रनों का बड़ा टारगेट रख दिया। जिसे केन्या टीम चेज नहीं कर सकी। हालांकि अगर केन्या इस टारगेट को चेज कर लेती और मैच को जीत जाती तो इंडिया टीम जिस फिक्सिंग के आरोप से जुझ रही थी उसे तूल मिल जाता और क्रिकेट फैंस का भरोसा उठ जाता। इधर इस मामले में CBI की जांच भी जारी थी। जिसमें कई खिलाड़ियों ने फिक्सिंग की बात को स्वीकारा। इस वर्ल्ड कप में इंडिया कुछ खास नहीं कर पाई और भारत लौट आई।

इसके बाद अजहरुद्दीन को अपनी कप्तानी छोड़नी पड़ी और आखिरकार दिसंबर 2000 में BCCI ने मोहम्मद अजहरुद्दीन को बैन भी कर दिया। जिसके बाद से भारतीय टीम का भरोसा उठ गया था। क्रिकेट के अब ना मात्र फैन्स रह गए थे। जो क्रिकेट प्रेमी थे उनका भी क्रिकेट से मोह भंग हो रहा था। ऐसे में भारतीय क्रिकेट फैन्स का विश्वास दोबारा वापस लाना एक बड़ी चुनौती थी। सौरव गांगुली भारतीय टीम की कमान संभाल रहे थे और टीम के साथ साथ खिलाड़ियों की स्थिति भी ठीक करने की कोशिश में लगे थे। गांगुली टीम के लिए उचित फैसले ले रहे थें। 

धोनी अपने अलग अंदाज से गांगुली को रिझाने में लगे

वहीं इन सब से अलग भारतीय टीम में अपनी जगह बनाने के लिए महेंद्र सिंह धोनी जीतोड़ मेहनत कर रहे थे और उनके कदम भारतीय क्रिकेट के डोमेस्टिक टूर्नामेंट में पड़ चुके थे। धोनी टूर्नामेंट में ताबड़तोड़ रन बना कर रहे थे तो वहीं दूसरी ओर सौरव गांगुली भारतीय टीम की कप्तानी संभाल रहे थे। दोनों खिलाड़ियों का कदम एक साथ क्रिकेट जगत में आगे बढ़ रहा था। एक ओर जहां धोनी इंटरनेशनल क्रिकेट खेलने के लिए मेहनत कर रहे थे तो वहीं गांगुली के कंधे पर भारतीय टीम की खबर छवि को सुधारने और टीम की लोकप्रियता को वापस लाने की जिम्मेदारी थी। उस वक्त भारतीय टीम के हालात ऐसे थे कि फैन्स किसी मैच को लेकर उत्साहित नहीं होते थे। क्रिकेट के फैन्स केवल अपने पसंदीदा खिलाड़ी की ही बैटिंग को देखते थे। इस बात के सबसे उदाहरण थे खुद महेंद्र सिंह धोनी। धोनी ने एक इंटरव्यू में बताया था कि वो जब इंटरनेशनल क्रिकेट  खेलने के लिए जी तोड़ मेहनत कर रहे थे तब वे भारतीय टीम का कोई भी मैच नहीं देखा करते थे। धोनी के अनुसार उन्होंने अपने दोस्तों को बोल रखा था कि वो उन्हें तभी मैच देखने के लिए बुलाए जब पिच पर सचिन तेंदुलकर बैटिंग कर रहे हो।

गांगुली ने जीत का जश्न टी शर्ट उताकर मनाया

एक ओर जहां धोनी इंटरनेशनल क्रिकेट में जगह बनाने में लगे थे तो वहीं दूसरी ओर सौरभ गांगुली की कप्तानी में भी टीम इंडिया की स्थिति बेहतर होने लगी थी। सौरभ गांगुली भारत के लिए ना सिर्फ शानदार पारी खेल रहे थे बल्कि सफल कप्तान के तौर पर भी आगे बढ़ रहे थे। गांगुली को लेकर बीबीसीआई का विश्वास बढ़ता जा रहा था औऱ भारतीय टीम की लोकप्रियता भी लौट रही थी। एक ओर जहां गांगुली की कप्तानी ने टीम इंडिया के फैंस भारतीय टीम और खिलाड़ियों से जुड़ रहे थे तो वहीं दूसरी तरफ़ MS धोनी भी सिलेक्टर्स को इंप्रेस कर रहे थे। धोनी की बल्लेबाजी देख सभी हैरान थे। जब धोनी बैटिंग करते और अपने बल्ले से रनों की बरसात करते तो सभी कहते कि "माही मार रहा है"। दूसरी तरफ सौरव गांगुली भारतीय टीम के कॉन्फिडेंस वापस लाने में जुट हुए थे। भारतीय टीम की लोकप्रियता को वापस लाने में सबसे अहम मैच रही 2002 में इंग्लैंड में खेली गई नेटवेस्ट की सीरीज का फाइनल मैच। इस मैच में कप्तान सौरव गांगुली ने जीत का जश्न टी शर्ट उताकर मनाया था। भारतीय टीम ने इंग्लैंड को करारी शिकस्त दी थी। फाइनल मैच में युवराज सिंह और मोहम्मद कैफ की साझेदारी से टीम इंडिया ने 326 रनों के विशाल स्कोर को चेज कर डाला था। एक समय पर भारतीय टीम सिर्फ 146 रन के स्कोर पर 5 विकेट खो चुकी थी। इसके बाद यूराज सिंह और मोहम्मद कैफ ने भारतीय टीम की जीत दिलाई थी। जीत के बाद गांगुली ने अपनी टी शर्ट उतार दी और दुनिया को बताया कि भारतीय टीम किसी से कम नहीं है। भारतीय टीम के पास ऐसे खिलाड़ी हैं, जो विदेशी सरजमीं पर जीत का परचम लहरा सकते हैं। 


जब गांगुली ने कराई धोनी की एंट्री 

इस मैच के बाद भारतीय टीम की लोकप्रियता सातवें आसमान पर थी। इसके बाद साल 2003 में गांगुली की कप्तानी में टीम इंडिया वर्ल्ड कप के फाइनल मुकाबले में जगह बनाई थी। तब भारतीय टीम को उस वक्त की सबसे मजबूत टीम ऑस्ट्रेलिया से हार का सामना तो करना पड़ा था लेकिन इस मैच में भारतीय खिलाड़ियों ने कई रिकॉर्ड बनाए और वर्ल्ड कप फाइनल में जगह भी बनाई थी। हालांकि 2003 के बाद गांगुली कप्तानी तो अच्छा कर रहे थे, लेकिन अपने बल्ले से कोई कमाल नहीं दिखा पा रहे थे। गांगुली के बल्ले से अब रन नहीं निकलते थे जिसकी चर्चा एक बार फिर तेज हो गई थी। लगातार खराब प्रदर्शन देने के बाद आखिरकार गांगुली ने भी कप्तानी छोड़ दी। लेकिन कप्तानी छोड़ने से पहले सौरव गांगुली ने एमएस धोनी की जगह भारतीय क्रिकेट टीम में बना दी थी। बात है दिसम्बर 2004 की। तब धोनी अपने बल्लेबाजी के साथ साथ विकेट कीपिंग के लिए भी जाने जाते थे। तब भारतीय टीम में विकेट कीपर की कमी थी और कप्तान गांगुली और सेलेक्टर्स के पास दो ऑप्शन्स थे। एक तो दिनेश कार्तिक और दूसरे थे महेंद्र सिंह धोनी.... गांगुली और सेलेक्टर्स  के बीच मीटिंग हुई, मीटिंग में सेलेटर्स ने दिनेश कार्तिक पर भरोसा जताया लेकिन तब गांगुली ने कहा कि "हमें धोनी को ट्राई करना चाहिए"। गांगुली के बात से सेलेटर्स सहमत तो नहीं थे लेकिन उन्होंने एमएस धोनी को चांस दिया ओर ये थी एमएस धोनी की भारतीय टीम में एंट्री....

MS धोनी का शुरुआती मैचों में खराब प्रदर्शन

एमएस धोनी ने अपने करियर का पहला मैच 23 दिसंबर 2004 में इंडिया ओर बांग्लादेश के खिलाफ खेला। इस मुकाबले में धोनी का बल्ला नहीं चल पाया और वो रन आउट हो गए। एमएस धोनी अपने पहले मैच में बिना खाता खोले रन आउट हो गए। इस मैच के बाद धोनी निराश हुए। लेकिन अपने अगले 3 मैचों में भी धोनी का बल्ला नहीं चला 2-12, 3-7, 4- 3 रन बनाकर आउट हो गए। इसके बाद धोनी ने अपने करियर के पांचवें मैच में खेला सबसे धुंआधार पारी। बात 2005 की है, यह मुकाबला भारत और पाकिस्तान के बीच खेला जा रहा था। एमएस धोनी ने इस मैच में 123 गेंदों में 148 रन बना। धोनी ने 123 गेंदों पर 148 रनों की पारी खेलकर खुद को सबसे बड़े मंच पर स्थापित किया। धोनी ने इस मैच से न सिर्फ गांगुली के लिए गए फैसले को सही साबित किया बल्कि उन्होंने इंटरनेशनल क्रिकेट के लिए भी खुद को प्रूफ कर दिया। इस मैच के बाद धोनी के हर ओर चर्चे हो रहे थे।

जब पाकिस्तानी राष्ट्रपति ने की थी धोनी के बालों की तारीफ़ 

धोनी के बल्ले के जादू के साथ साथ उनकी हेयर स्टाइल भी लोगों को अपना दीवाना बना रही थी। भारत पाक के मैच में मुख्य अतिथि थे पाक के राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ। उन्होंने धोनी के हेयर स्टाइल की तारीफ की। उन्होंने धोनी को सलाह दी कि वो अपने बाल को कभी ना कटाएं। धोनी जब इंडिया टीम में शामिल हुए थे तब उनके बाल काफी लंबे थे, और अपनी हेयर स्टाइल से लोगों के बीच लोकप्रिय बने हुए थे।

एक्सीडेंटल कप्तान बनाए गए "महेंद्र सिंह धोनी"

इसके बाद 2005 में ही टीम इंडिया श्रीलंका के खिलाफ वनडे मैच खेल रही थी। इस मैच में भारतीय टीम के सामने एक बड़ा स्कोर था और इसे चेज करने के पहले ही सचिन तेंदुलकर आउट हो गए थे, जिसके बाद गांगुली ने एक बार फिर धोनी पर भरोसा दिखाते हुए उन्हें तीसरे नंबर पर क्रीच पर भेजा। तब धोनी ने श्रीलंका के खिलाफ़  183* रन की मैच जिताऊ पारी खेली। इस मैच में धोनी ने सभी तरह के रिकॉर्ड तोड़ दिए। उन्होंने शानदार प्रदर्शन करते हुए 15 चौके और 10 छक्के लगाए। 10 छक्कों का उनका रिकॉर्ड वनडे में किसी भारतीय बल्लेबाज़ के लिए एक रिकॉर्ड था। 

इसी बीच गांगुली ने कप्तानी छोड़ दी। गांगुली के बाद राहुल द्रविंद्र भारतीय टीम के नए कप्तान बने। राहुल द्रविंद्र अपनी कप्तानी में कुछ खास नहीं कर पाएं। जिसके बाद 2007 में बांग्लादेश से भारत को मिली करारी हार के बाद राहुल द्रविंद्र विचलित की गए और उन्होंने वो कदम उठाया जिसकी कल्पना भी किसी ने नहीं की थी, और अचानक राहुल द्रविंद्र ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया यानी उन्होंने कप्तानी छोड़ दी। जिससे क्रिकेट जगत में सन्नाटा पसर गया। पुराने खिलाड़ी भी अपने क्रिकेट करियर के बुरे दौर से गुजर रहे थे. इसी समय टी 20 वर्ल्ड कप भी शुरू होने वाला था और टीम के नेतृत्व को संभालने के लिए अब तक कोई योग्य खिलाड़ी सामने नहीं आया था, तब BCCI ने एक अहम फैसला लिया और एक्सीडेंटल कप्तान बनाए गए, "महेंद्र सिंह धोनी"।

अभिषेक आनंद की खास रिपोर्ट