Navratri: आज से यानी 3 अक्टूबर से नवरात्र की शुरुआत हो रही है। इस दौरान पूरे 9 दिनों तक लोग मां दुर्गा के अलग-अलग रूपों की पूजा करते हैं। कई सारे लोग देवी मां के अलग-अलग मंदिरों में पूरे 9 दिन पूजा करने के लिए जाते हैं। अगर बिहार की बात करें तो यहां कई मंदिर ऐसे हैं, जिनका धार्मिक महत्व बहुत ज्यादा है। जैसे शक्तिपीठ और सिद्धपीठ मौजूद है। कई ऐसे भी है जिसके लिए बिहार सरकार ने बहुत सारे काम किया है। इसमें पटन देवी और गोपालगंज के थावे मंदिर शामिल है।
आज हम आपको नवरात्री के पहले दिन बिहार में मौजूद 9 शक्तिपीठों-सिद्धपीठों की कहानी बताएंगे, जहां मंदिरों में नवरात्र के दौरान श्रद्धालुओं की संख्या लाख तक पहुंच जाती है। हालांकि, आम दिनों भी यहां अच्छी-खासी भीड़ देखी जाती है। लेकिन नवरात्र के दौरान खास इंतजाम किया जाता है
पटना- बड़ी पटन देवी मंदिर
पटन देवी देश के 51 शक्तिपीठ में एक मानी जाने वाली मंदिर है। पटन देवी को पटना की नगर देवी और रक्षक माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि पटन देवी में देवी सती की दाहिनी जांघ गिरी थी। नवरात्र के वक्त आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या लाख तक पहुंच जाती है। इस मंदिर में महाकाली, महालक्ष्मी एवं सरस्वती की प्रतिमा, जो काले पत्थर से बनी है। यहां रात में कुछ देर के लिए पट बंद कर तांत्रिक पूजा भी की जाती है। बिहार सरकार ने मंदिर के लिए 8 करोड़ रुपए भी दिए हैं।
आरा-मां आरण्य देवी मंदिर
आरा शहर का नाम आरण्य देवी की वजह से ही पड़ा है, जो भोजपुर जिले में स्थित है। इस मंदिर की कहानी त्रेता युग से लेकर महाभारत काल तक से जुड़ी है। प्रभु श्रीराम से लेकर पांडवों तक ने यहां मां आरण्य देवी की पूजा की है। ये मंदिर शक्तिपीठ के साथ ही सिद्धपीठ भी है, जहां सती की बायीं जांघ गिरी थी। यहां श्रद्धालु बड़े-बड़े दीये जलाते हैं, जिससे उनकी मान्यता पूरी होती है।
दरभंगा- वैष्णवी शक्तिपीठ
वैष्णवी शक्तिपीठ दरभंगा के जाले में बना है। इसकी कहानी देवी सती से नहीं जुड़ी है। ऐसा माना जाता है कि आज से करीब 200 साल पहले रतनपुर गांव में महामारी फैली थी। तब संत ने जमीन के अंदर से मां रत्नेश्वरी की प्रतिमा निकाली और उसकी मंदिर में स्थापना की। इसके बाद से महामारी खत्म हो गई। फिर मां रत्नेश्वरी की पूजा शुरू कर दी।
सहरसा- उग्रतारा मंदिर
सहरसा में स्थित उग्रतारा मंदिर 700 साल पुराना है। ये प्रसिद्ध मंदिर सहरसा के महिषी में है। पुजारियों की माने तो वशिष्ठ मुनि ने तपस्या कर माता भगवती को यहां स्थापित किया था। हालांकि, बाद में वो विलीन हो गईं। हर मंगलवार को श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है। नवरात्र के समय देश-विदेश के भी लोग पूजा करने आते हैं। इस साल बाढ़ की स्थिति देखते हुए उग्रतारा महोत्सव को स्थगित कर दिया गया है।
गोपालगंज-थावे मंदिर
गोपालगंज में मौजूद थावे मंदिर के बारे में कई सारी कहानी प्रचलित है। माना जाता है कि 16वीं शताब्दी में एक रहषु भगत थे, जिनकी आवाज सुनकर माता खुद कामाख्या से चलकर आई थीं। रास्ते में वो जहां-जहां रुकी, वहां प्रसिद्ध मंदिरों की स्थापना हुई। इसमें कोलकाता की दक्षिणेश्वर काली, पटना की पटन देवी, सारण का आमी मंदिर शामिल है। देवी दर्शन के बाद भक्त रहषू के मंदिर में भी जाना होता है। वरना देवी की पूजा अधूरी मानी जाती है।
बेतिया- पटजिरवा सिद्धपीठ
बेतिया के बैरिया में स्थित पटजिरवा सिद्धपीठ मंदिर का महत्व कामाख्या, पटन देवी, थावे, तारापीठ जैसे सिद्धपीठों की तरह है। माना जाता है कि यहां माता सती के पैर का कुछ हिस्सा गिरा था। बाद में वहां नर-मादा दो पीपल के पेड़ उपज गए थे। तब से ही इस जगह का नाम पैरगिरबा पड़ा। शादी के बाद ससुराल जाने के क्रम में माता सीता की डोली यहां रुकी थी। भगवान राम ने दोनों पीपल के पेड़ों की 3 दिन तक पूजा की थी, जब माता सीता आराम कर रही थी। मंदिर में नवरात्र के दौरान बिहार के अलावा नेपाल से भी करीब 2 लाख श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। इस साल भी करीब 2 लाख श्रद्धालुओं के आने की संभावना है।
गया- मां मंगलागौरी शक्तिपीठ, गया
मां मंगलागौरी शक्तिपीठ मंदिर की सबसे खास बात है कि गर्भगृह में हमेशा अंधेरा रहता है। सिर्फ एक दीये से रौशनी होती है, जो कभी बुझता नहीं है। माना जाता है कि माता सती का वक्षस्थल यहां गिरा था। इस मंदिर का उल्लेख पद्म पुराण, वायु पुराण, अग्नि पुराण में मिलता है। मंगलागौरी शक्तिपीठ में तांत्रिक सिद्धि के लिए भी पूजा होती है।
मुंगेर- चंडिका शक्तिपीठ
चंडिका शक्तिपीठ के बारे में मान्यता है कि देवी सती का बांया आंख गिरा था। मंदिर में माता के आंख की पूजा होती है। आम दिनों में भी यहां 3 हजार लोग रोज आते हैं। हालांकि, नवरात्र में सप्तमी से लेकर नवमी तक संख्या 1 लाख के ऊपर हो जाती है।
मधुबनी-उच्चैठ भगवती स्थान
मधुबनी में स्थित उच्चैठ भगवती स्थान मंदिर की कहानी महाकवि कालीदास से जुड़ी है। माना जाता है कि ज्ञान प्राप्ति से पहले कालीदास काफी मूर्ख थे। र्खता में ही उन्होंने काफी कष्ठ उठाकर मंदिर में माता के लिए दीप जलाया। प्रसन्न होकर माता ने कालीदास को दर्शन दिए। वरदान दिया कि एक रात में वो जिस किताब पर हाथ रख देंगे, वो याद हो जाएगी।