Navratri: नवरात्रि का पर्व भारतीय संस्कृति में आध्यात्मिकता, शक्ति और आराधना का प्रतीक है। इस नौ-दिवसीय उत्सव में देवी के तीन रूपों की पूजा की जाती है, जिन्हें त्रिदेवी कहा जाता है। यह पर्व भक्तों को उनके जीवन में तमस (अज्ञान), रजस (भौतिकता) और सत्व (ज्ञान) पर विजय पाने का अवसर प्रदान करता है।
नवरात्रि के 9 दिन तीन चरणों में विभाजित होते हैं। प्रथम तीन दिन माँ दुर्गा की पूजा की जाती है, जो तमस अर्थात् अज्ञान और विनाशकारी शक्तियों पर विजय की प्रतीक हैं। माँ दुर्गा की आराधना से व्यक्ति अपने भीतर उपस्थित नकारात्मक तत्वों को नष्ट करता है, जो जीवन के हर क्षेत्र में विघ्न और अवरोध उत्पन्न करते हैं। दुर्गा पूजा का उद्देश्य है तमस को जीतकर शत्रुओं, रोगों और पापों से मुक्ति प्राप्त करना।
अगले तीन दिन माँ लक्ष्मी की पूजा की जाती है, जो रजस अर्थात् भौतिक और आर्थिक समृद्धि का प्रतीक है। माँ लक्ष्मी की कृपा से व्यक्ति को धन-धान्य, ऐश्वर्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है। उनका आशीर्वाद जीवन को भौतिक स्तर पर सम्पन्न और संतोषजनक बनाता है, जिससे व्यक्ति का भौतिक जीवन सुरक्षित और समृद्ध होता है।
नवरात्रि के अंतिम तीन दिन माँ सरस्वती की पूजा की जाती है, जो सत्व अर्थात् ज्ञान और विवेक का प्रतीक है। माँ सरस्वती की आराधना से व्यक्ति को आध्यात्मिक ज्ञान और मानसिक शांति की प्राप्ति होती है। वे कला, संगीत, साहित्य और विज्ञान की देवी हैं, और उनके आशीर्वाद से व्यक्ति अपने जीवन में सही दिशा और उद्देश्य प्राप्त करता है।
इस त्रिदेवी आराधना का आध्यात्मिक महत्व बहुत गहरा है, और इसे सही विधि और मंत्रों के साथ करने से जीवन में शांति, समृद्धि और सफलता प्राप्त होती है। नवरात्रि के दौरान निम्नलिखित मंत्रों का जाप करना विशेष रूप से फलदायी माना जाता है:
- माँ दुर्गा का नवार्ण मंत्र: "ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे"
- माँ लक्ष्मी का मूल मंत्र: "ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं कमलवासिन्यै स्वाहा"
- माँ सरस्वती का अष्टाक्षर मंत्र: "श्रीं ह्रीं सरस्वत्यै स्वाहा"
इन मंत्रों का नियमित जप न केवल आध्यात्मिक उन्नति में सहायक होता है, बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में सफलता और शांति की प्राप्ति भी सुनिश्चित करता है