Bihar Land Registry: जमीन की खरीद-बिक्री के लिए जमाबंदी जरूरी है या नहीं, सुप्रीम कोर्ट में अहम सुनवाई आज

Bihar Land Registry: जमीन की खरीद-बिक्री के लिए जमाबंदी जरूर

जमीन से जुड़े दस्तावेजों की रजिस्ट्री में जमाबंदी की अनिवार्यता के मसले पर सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को एक महत्वपूर्ण सुनवाई होने वाली है। इस सुनवाई के दौरान कोर्ट यह तय करेगा कि जमीन की रजिस्ट्री में जमाबंदी की अनिवार्यता को समाप्त किया जाएगा या इसे फिर से लागू किया जाएगा। इस फैसले का असर लाखों जमीन खरीदने और बेचने वाले लोगों पर पड़ेगा, क्योंकि इस नियम को लेकर पहले से ही काफी विवाद हो चुका है।

राज्य सरकार ने जमीन विवादों में लगातार बढ़ोतरी को देखते हुए 21 फरवरी 2024 को एक नियम लागू किया था, जिसके तहत शहरी क्षेत्रों में स्थित अपार्टमेंट और फ्लैट्स को छोड़कर सभी अन्य इलाकों में जमीन की रजिस्ट्री के लिए विक्रेता के नाम से संबंधित प्लॉट की जमाबंदी होना अनिवार्य कर दिया गया था। इस नियम का मकसद यह था कि जमीन के स्वामित्व को लेकर कोई संदेह न रहे और विक्रेता सही मायने में उस जमीन का मालिक हो, जिसे वह बेच रहा है। इस प्रक्रिया में विक्रेता के नाम से जमाबंदी का रिकॉर्ड होना जरूरी होता है, और इसे जमीन के नए डीड में भी शामिल किया जाता है, ताकि भविष्य में किसी प्रकार का विवाद न हो।

हालांकि, इस नियम के लागू होने के कुछ समय बाद ही राज्य के कई हिस्सों में इसका विरोध शुरू हो गया। लोगों का कहना था कि जमाबंदी के बिना रजिस्ट्री प्रक्रिया में काफी दिक्कतें आ रही थीं और कई मामलों में जमाबंदी के रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं होने के कारण जमीन की खरीद-फरोख्त रुक गई थी। इस विरोध को देखते हुए मामला हाइकोर्ट पहुंचा, जहां कोर्ट ने इस नियम को सही ठहराया और 21 फरवरी 2024 को इसे लागू करने का आदेश दिया।

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लेकिन, जब इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई, तो 21 मई 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने हाइकोर्ट के इस आदेश पर स्टे लगा दिया। इसके बाद, पुरानी व्यवस्था को फिर से बहाल कर दिया गया, जिसमें जमाबंदी की अनिवार्यता नहीं थी। इस स्टे के बाद से जमीन की रजिस्ट्री के मामलों में एक बार फिर तेजी आई, लेकिन राज्य सरकार का निबंधन विभाग इससे खासा प्रभावित हुआ। विभाग का राजस्व आधे से भी कम हो गया, क्योंकि जमाबंदी के बिना भी जमीन की रजिस्ट्री होने लगी और जमीन विवादों में फिर से बढ़ोतरी की संभावना बढ़ गई।

अब, सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को होने वाली इस अहम सुनवाई पर सभी की नजरें टिकी हुई हैं। यह फैसला राज्य सरकार की नीतियों और निबंधन विभाग के कामकाज पर सीधा असर डाल सकता है। कोर्ट द्वारा जमाबंदी की अनिवार्यता को फिर से लागू करने का निर्णय लिया जाता है, तो इससे जमीन की खरीद-फरोख्त की प्रक्रिया में पारदर्शिता बढ़ेगी, लेकिन साथ ही, इसके कारण रजिस्ट्री की प्रक्रिया में देरी और दिक्कतें भी हो सकती हैं। वहीं, अगर सुप्रीम कोर्ट इस अनिवार्यता को हटाने का फैसला करता है, तो इससे जमीन के मामलों में जल्दी निपटारा होगा, लेकिन जमीन विवादों में भी बढ़ोतरी की आशंका है।

कई लोगों का मानना है कि जमीन विवादों को कम करने के लिए जमाबंदी का रिकॉर्ड होना बेहद जरूरी है, क्योंकि इससे जमीन के मालिकाना हक को लेकर कोई भ्रम नहीं रहता। वहीं, कुछ लोग इसे अत्यधिक जटिल प्रक्रिया मानते हैं, जो छोटे जमीन मालिकों के लिए समस्याएं खड़ी कर सकती है। मंगलवार को कोर्ट द्वारा दिए जाने वाले निर्णय का असर न केवल वर्तमान रजिस्ट्री प्रक्रिया पर पड़ेगा, बल्कि भविष्य में जमीन से जुड़े विवादों को हल करने की दिशा भी तय करेगा।