धनबाद जितिया पूजा: धनबाद के टुंडी प्रखंड के रामपुर गांव में रहने वाली गुंजरी देवी की कहानी समाज के लिए साम्प्रदायिक सद्भाव और इंसानियत का एक आदर्श उदाहरण पेश करती है। 70 वर्षीय गुंजरी देवी पिछले 35 सालों से एक मुस्लिम युवक एनुल अंसारी को अपना पुत्र मानकर जितिया व्रत करती आ रही हैं। यह व्रत वह अपने दत्तक पुत्र माणिक रजक के साथ-साथ एनुल की लंबी उम्र के लिए करती हैं।
गुंजरी देवी का ममता भरा रिश्ता
प्रभात खबर की रिपोर्ट के मुताबिक, गुंजरी देवी के जीवन में संतान सुख नहीं था, लेकिन उन्होंने अपने परिजनों से माणिक रजक को गोद लिया। माणिक और एनुल बचपन से अच्छे दोस्त थे। इस रिश्ते को देखते हुए गुंजरी देवी ने सिर्फ माणिक के लिए ही नहीं, बल्कि एनुल के लिए भी जितिया पर्व शुरू किया, जो आज भी जारी है। वह रक्षा सूत्र बांधकर दोनों बच्चों की लंबी उम्र और खुशहाली की कामना करती हैं। गुंजरी देवी कहती हैं, "मुझे कभी यह महसूस नहीं हुआ कि एनुल दूसरे धर्म से है। वह मेरे लिए हमेशा से मेरा बेटा है, और वह अपने हक से मेरे बेटे की तरह ही सब कुछ करता है।"
एनुल की गुंजरी देवी को लेकर भावनाएं
एनुल अंसारी, जो अब खुद एक परिवार के मुखिया हैं, कहते हैं कि बचपन से ही गुंजरी देवी ने उन्हें अपने बेटे की तरह प्यार और स्नेह दिया। वह उनके घर जाकर हिंदू पुत्र की भांति उनके पैर छूकर आशीर्वाद लेते हैं और हर साल जितिया व्रत के दौरान उनसे प्रसाद भी प्राप्त करते हैं। एनुल कहते हैं, "मैंने उनके गर्भ से जन्म नहीं लिया, लेकिन उन्होंने मुझे एक बेटे का भरपूर प्यार दिया है।"
सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल
इस कहानी में सबसे खास बात यह है कि गुंजरी देवी और एनुल अंसारी के बीच का रिश्ता धर्म की सीमाओं से परे है। यह कहानी इस बात का प्रतीक है कि मानवीय रिश्ते किसी भी धर्म, जाति, या समुदाय की दीवारों से नहीं बंधे होते। यह न केवल रामपुर गांव के लिए बल्कि पूरे समाज के लिए एक प्रेरणा है, जो साम्प्रदायिक सद्भाव और मानवीय मूल्यों की महत्ता को दर्शाता है।