Haryana Election results 2024: हरियाणा और जम्मू-कश्मीर के चुनावी नतीजों ने कांग्रेस की उम्मीदों पर पानी फेर दिया। हरियाणा में कांग्रेस को लगभग बराबर वोट प्रतिशत (बीजेपी 39.94% और कांग्रेस 39.09%) मिलने के बावजूद, वह ग्यारह सीटों के अंतर से सत्ता की दौड़ से बाहर हो गई। जम्मू-कश्मीर में भी कांग्रेस का प्रदर्शन सीमित रहा, जहां उसे सिर्फ छह सीटें मिलीं, और 12% वोट शेयर प्राप्त किया। इन नतीजों ने कांग्रेस की गुटबाजी और आंतरिक कलह को प्रमुख कारण बताया है, जिसने पार्टी को भारी नुकसान पहुंचाया।
हरियाणा में गुटबाजी ने बिगाड़ा कांग्रेस का खेल
हरियाणा में कांग्रेस की आंतरिक गुटबाजी एक बड़ा कारण बनी। भूपेंद्र सिंह हुड्डा, कुमारी सैलजा, और रणदीप सुरजेवाला के बीच सीएम पद की होड़ और आपसी मतभेदों ने पार्टी की संभावनाओं को कमजोर किया। सैलजा चुनाव प्रचार में सक्रिय नहीं दिखीं, जबकि सुरजेवाला अपने बेटे के चुनाव में व्यस्त रहे। इसका नतीजा यह हुआ कि कांग्रेस के कार्यकर्ता भी इस आपसी खींचतान के चलते सही ढंग से काम नहीं कर पाए।
जम्मू-कश्मीर में सीमित सफलता
जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस को सिर्फ छह सीटें मिलीं, जिनमें से पांच सीटें कश्मीर से और एक सीट जम्मू से आई। 2014 के मुकाबले कांग्रेस का प्रदर्शन गिरा है। खासकर जम्मू संभाग में, जहां बीजेपी को रोकने की कोशिश की जानी थी, कांग्रेस असफल रही।
आप से गठबंधन न होना और अन्य चुनौतियां
हरियाणा में आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन न होना कांग्रेस के लिए एक अहम फैक्टर रहा। राहुल गांधी के कहने के बावजूद प्रदेश नेतृत्व गठबंधन के लिए तैयार नहीं था, जिसका परिणाम यह हुआ कि आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस और बीजेपी के बीच का महत्वपूर्ण वोट काट लिया। अगर यह गठबंधन हुआ होता, तो कांग्रेस के सरकार में आने की संभावनाएं प्रबल हो सकती थीं।
दलित वोटों का खिसकना
कांग्रेस को दलित वोटों का समर्थन हासिल नहीं हो पाया, जो बीएसपी और चंद्रशेखर आजाद के नेतृत्व वाले जाट दलों के गठबंधन की वजह से खिसक गए। इसने भी कांग्रेस की हार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
महाराष्ट्र और झारखंड के चुनावों पर असर
हरियाणा और जम्मू-कश्मीर के इन नतीजों का असर आने वाले महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा चुनावों पर भी पड़ सकता है। कांग्रेस की बारगेनिंग पावर कमजोर हो सकती है, और पार्टी को अपनी रणनीति पर पुनर्विचार करना होगा। कांग्रेस को अपने नेताओं के अहंकार पर नियंत्रण रखना होगा, और अगर उसे विधानसभा चुनावों में सफल होना है, तो उसे विपक्षी दलों के साथ तालमेल बढ़ाना होगा।