Durga Puja 2024: शारदीय नवरात्रि: 3 अक्टूबर से शुरू हो चुकी है और 12 अक्टूबर को विजयादशमी के साथ इसका समापन होगा। इस नौ दिवसीय पर्व के दौरान, माता दुर्गा की पूजा की जाती है और पूरे देश में भक्तजन मंदिरों, पूजा पंडालों और घरों में माता की मूर्ति स्थापित कर पूजा-अर्चना करते हैं।
वेश्यालय की मिट्टी का महत्व
दुर्गा पूजा के दौरान बनाई जाने वाली मां दुर्गा की मूर्ति में एक खास तरह की मिट्टी का इस्तेमाल किया जाता है, जिसे वेश्यालय के आंगन से लाया जाता है। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है, और इसका एक गहरा धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है। मान्यता है कि बिना इस मिट्टी के बिना दुर्गा की मूर्ति अधूरी मानी जाती है। जब पुजारी या मूर्तिकार वेश्यालय से मिट्टी मांगने जाते हैं तो उन्हें इसे पूरी श्रद्धा और सम्मान के साथ लेना होता है।
नारी शक्ति का सम्मान
वेश्यालय की मिट्टी का उपयोग यह दर्शाता है कि समाज में सभी नारियों का समान सम्मान होना चाहिए, चाहे उनका स्थान कुछ भी हो। यह परंपरा नारी शक्ति को सम्मान देने और समाज में उन्हें बराबरी का दर्जा देने का प्रतीक है।
वेश्यालय की मिट्टी को शुद्ध मानने का कारण
ज्योतिषाचार्य अनीष व्यास के अनुसार, जब कोई पुरुष अपने पुण्य कर्म छोड़कर वेश्या के पास जाता है, तो उसके सारे पुण्य वेश्यालय के आंगन में ही रह जाते हैं, जिससे वह मिट्टी पवित्र मानी जाती है। इसी कारण इस मिट्टी को दुर्गा की मूर्ति बनाने के लिए आवश्यक माना जाता है।
अन्य सामग्री का महत्व
वेश्यालय की मिट्टी के साथ-साथ गंगा तट की मिट्टी, गोमूत्र, और गोबर का भी उपयोग किया जाता है। इन सभी चीजों का मिलकर मूर्ति बनाने की प्रक्रिया में विशेष महत्व है, और इनके बिना मूर्ति को पूर्ण नहीं माना जाता।
मूर्ति निर्माण को लेकर पौराणिक कथा
एक प्रचलित पौराणिक कथा के अनुसार एक बार कुछ वेश्याएं गंगा स्नान के लिए जा रही थीं, जब उन्होंने गंगा तट पर बैठे एक कुष्ठ रोगी को देखा। उन्होंने उसकी मदद कर उसे गंगा स्नान करवाया। वह कुष्ठ रोगी और कोई नहीं, बल्कि भगवान शिव थे। भगवान शिव ने उनकी सेवा से प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया कि उनके आंगन की मिट्टी से मां दुर्गा की मूर्ति का निर्माण होगा। तभी से यह परंपरा शुरू हुई और आज भी चली आ रही है।
दुर्गा पूजा के दौरान वेश्यालय की मिट्टी का उपयोग
दुर्गा पूजा के दौरान वेश्यालय की मिट्टी का उपयोग केवल धार्मिक परंपरा नहीं है, बल्कि यह नारी शक्ति के सम्मान और समाज में सभी महिलाओं को बराबरी का दर्जा देने का संदेश भी है। यह परंपरा एक गहरे सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व को दर्शाती है, जो सदियों से चली आ रही है।
इस आर्टिकल में दी गई जानकारी पूरी तरह से मान्यताओं पर आधारित है।