job regularation - हाईकोर्ट ने नर्सों के नियमतिकरण पर दिया बड़ा फैसला, 2014 से सेवाओं को बहाल करने का दिया आदेश

job regularation - हाईकोर्ट ने कांट्रेक्टर पर नियुक्त नर्सों की नियमतिकरण को लेकर अपना फैसला सुुना दिया है। कोर्ट ने नर्सों की मांग को सही करार दिया है।

job regularation - हाईकोर्ट ने नर्सों के नियमतिकरण पर दिया ब
रीम्स के नर्सों को नियमतिकरण का आदेश- फोटो : NEWS4NATION

Ranchi - कांट्रेक्ट पर बहाल हुई नर्सों को नियमित करने की मांग पर रांची हाईकोर्ट ने अपना फैसला दे दिया है। कोर्ट ने रिम्स के नर्सों के पक्ष में फैसला सुनाते हुए उन्हें 2014 से नियमित सेवा पर बहाल करने का आदेश दिया है। हाईकोर्ट के इस फैसले से रिम्स प्रबंधन को बड़ा झटका लगा है। मामले में जस्टिस आर मुखोपाध्याय और दीपक रोशन की अदालत ने रिम्स की नर्सों को अक्टूबर 2014 से नियमित करने का आदेश दिया है।

बता दें कि हाईकोर्ट जस्टिस की एकल पीठ लीली कुजुर ने नर्सों को नियमित करने का आदेश दिया था। जिसके खिलाफ रिम्स की ओर से अपील दाखिल की गई थी जिसे अदालत ने खारिज कर दिया है। अदालत ने एकल पीठ के आदेश को सही माना है। 

क्या है पूरा मामला

रिम्स ने वर्ष 2002 में एक विज्ञापन जारी कर अनुबंध आधारित स्टाफ नर्स की नियुक्ति की थी। चयन के बाद, याचिकाकर्ताओं को 2003 में कार्यभार सौंपा गया। दस साल की सेवा के बाद रिम्स ने 11 अक्टूबर 2014 को स्थायी स्टाफ नर्स (ग्रेड-A) की बहाली के लिए नया विज्ञापन निकाला। याचिकाकर्ताओं ने भी आवेदन किया, लेकिन अधिकतम उम्र सीमा पार होने के कारण उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया गया। 

हाईकोर्ट पहुंचा मामला

रिम्स  प्रबंधन के भेदभाव के खिलाफ याचिकाकर्ताओं ने पहले 2015 में रिट दायर की थी। हाईकोर्ट ने 2017 में निर्देश दिया कि रिम्स एक नियमितीकरण नीति बनाए। इसके बाद 2018 में एक बार की उम्र में छूट देने की योजना बनी, और फिर 4 अप्रैल 2018 को नर्सों की सेवाएं नियमित की गईं—लेकिन प्रभावी तिथि रखी गई 8 फरवरी 2018। जबकि नर्सों ने इसे मानने से इनकार कर दिया। 

इस तिथि को लेकर याचिकाकर्ताओं ने फिर से कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और कहा कि उन्हें 21 अक्टूबर 2014 से नियमित माना जाए, जैसा कि अन्य नर्सों के साथ किया गया।

कांट्रेक्ट कर्मियों से नहीं कर सकते भेदभाव

इस दौरान रिम्स की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ. अशोक कुमार सिंह ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता अनुबंध पर थे, जबकि अन्य नर्सें नियमित प्रक्रिया के तहत नियुक्त थीं। उन्होंने 2014 के नियमों का हवाला देते हुए कहा कि दोनों वर्ग अलग हैं और उन्हें समान लाभ नहीं मिल सकता। लेकिन अदालत ने माना कि याचिकाकर्ताओं की नियुक्ति भी एक विज्ञापन और चयन प्रक्रिया के बाद हुई थी, इसलिए उन्हें भेदभाव के आधार पर अलग नहीं रखा जा सकता।

झारखंड हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता नर्सों की सेवाएं 21 अक्टूबर 2014 से मानी जाएंगी नियमित और इसके अनुसार उन्हें सभी वेतन व लाभ मिलने चाहिए। इस फैसले के बाद झारखंड के स्वास्थ्य क्षेत्र में अनुबंध कर्मियों को लेकर नीतियों और प्रशासनिक निर्णयों की पारदर्शिता पर नई बहस शुरू हो सकती है।