पटना में साहित्य का जश्न, "आरोही" की गूंज और कविता का सरूर, पटना साहित्य महोत्सव में मुकुल कुमार के कविता से बही प्रेम और करुणा
Patna LitFest :“आरोही” दरअसल एक साधारण परिवार से आने वाले युवक की असाधारण यात्रा है। कॉलेज के मस्तीभरे दिनों से लेकर कठिन सिविल सेवा की तैयारी और सफलता तक की दास्तान को लेखक ने बेहद जीवंतता से उकेरा है।

Patna LitFest : ज्ञानदेव सभागार और सम्राट अशोक कन्वेंशन सेंटर इन दिनों अदब और तहरीर की खुशबू से महक रही है। “कविता: आत्मा की अभिव्यक्ति” शीर्षक से आयोजित कवि सम्मेलन और उन्मेशा: अंतर्राष्ट्रीय साहित्य महोत्सव ने पटना को एक अद्भुत साहित्यिक सरगर्मी में डुबो दिया। शब्दों के सुरूर में सराबोर श्रोताओं ने कविता को आत्मा की आवाज़ मानते हुए ताली और मुस्कुराहट से कवियों का इस्तकबाल किया।यहां प्रख्यात लेखक मुकुल कुमार की मौजूदगी ने महफ़िल को और रंगीन कर दिया। उनकी कविताओं ने श्रोताओं को झूमने पर मजबूर कर दिया, मानो अल्फ़ाज़ दिलों के तार छू रहे हों।
इससे पहले प्रभात प्रकाशन में लेखक मुकुल कुमार की किताब “आरोही” पर हुई चर्चा भी बेहद अहम रही। लेखक ने खुलकर कहा कि इस उपन्यास की प्रेरणा उन्हें पटना से ही मिली। 2016 में जब उनका पहला अंग्रेज़ी उपन्यास “As Boys Become Men” लोकार्पित हुआ, तभी से हिंदी अनुवाद की राह खुली। उद्देश्य था कि प्रेरक जीवन-दर्शन और व्यवहारिक फ़लसफ़े हिंदी माध्यम से पढ़ने वाले नौजवानों तक पहुँच सकें। मुकुल कुमार ने स्वीकार किया कि “आरोही” का सृजन उन्हें वही आत्मसंतोष देता है, जो रूह को अपनी पहचान मिल जाने पर मिलता है।
“आरोही” सिर्फ़ एक कहानी नहीं, बल्कि एक साधारण परिवार से आने वाले युवक की असाधारण दास्तान है। कॉलेज की रंगीनियों से लेकर कठिन सिविल सेवा की तैयारी और सफलता तक का सफ़र लेखक ने बड़ी शिद्दत से उकेरा है। दोस्ती, मोहब्बत, करियर की उलझनें, परिवार की ज़िम्मेदारियाँ और समाज के तमाम पहलू इस रचना में ज़िंदा हो उठते हैं। यही नहीं, कथा में इतिहास, दर्शन, समाजवाद, सिनेमा और महानगर की रफ़्तार भी सांस लेती नज़र आती है, जो इसे न सिर्फ़ आधुनिक बल्कि बेहद प्रासंगिक बना देती है।
लेखक ने साफ़ कहा कि यह उपन्यास उनके अपने अनुभवों का आईना है। शायद यही वजह है कि “आरोही” आज के युवाओं की संघर्ष यात्रा और ख्वाबों की ताबीर को सच्चाई और जज़्बात के साथ सामने लाती है। रैगिंग से लेकर करियर चुनाव तक, दोस्ती से लेकर पूर्वाग्रह तक, और बॉलीवुड से लेकर क्षेत्रीय अस्मिता तक हर रंग इसमें बख़ूबी समाया है।
सचमुच, पटना की धरती पर यह साहित्यिक जलसा साबित करता है कि अदब और अफ़कार की परंपरा यहां सिर्फ़ ज़िंदा ही नहीं, बल्कि नई ऊर्जा और रचनात्मक जोश के साथ आगे बढ़ रही है।लेखक ने विशेष रूप से इस बात को रेखांकित किया कि यह उपन्यास उनके अपने अनुभवों पर आधारित है। शायद यही वजह है कि “आरोही” युवाओं के संघर्ष और सपनों की सच्ची तस्वीर प्रस्तुत करती है। रैगिंग से लेकर करियर विकल्प, दोस्ती से लेकर पूर्वाग्रह और बॉलीवुड से लेकर क्षेत्रीय अस्मिता तक हर पहलू कथा को वास्तविक और रोचक बनाता है।