CJI D Y Chandrachud: सुप्रीम कोर्ट प्रशासन ने संवाददाताओं के लिए मान्यता की शर्तों में एक महत्वपूर्ण बदलाव किया है। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व में लिए गए इस निर्णय के तहत, अब सुप्रीम कोर्ट के संवाददाता बनने के लिए कानून की डिग्री आवश्यक नहीं रहेगी। पहले, कुछ अपवादों को छोड़कर कानून की डिग्री को अनिवार्य माना गया था। इसके अतिरिक्त, कुछ महत्वपूर्ण प्रतीकात्मक बदलाव भी किए गए हैं, जैसे न्याय की देवी की प्रतिमा से पट्टी और तलवार को हटाना और संविधान की पुस्तक थमाना। आइए, इन परिवर्तनों के विस्तृत पहलुओं पर नजर डालें।
सुप्रीम कोर्ट में संवाददाताओं के लिए मान्यता की पूर्व शर्त
1. कानून की डिग्री की आवश्यकता और इसके पीछे की वजह
पहले के नियमों के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट में संवाददाता बनने के इच्छुक पत्रकारों के पास सामान्य परिस्थितियों में कानून की डिग्री होनी चाहिए थी। इसका उद्देश्य पत्रकारों को कानूनी प्रणाली और तकनीकी मुद्दों की समझ को बढ़ावा देना था ताकि वे कोर्ट के जटिल मामलों को गहराई से समझ सकें और सटीक रिपोर्टिंग कर सकें। हालाँकि, यह शर्त कुछ मामलों में एक बाधा के रूप में भी देखी गई थी, खासकर उन पत्रकारों के लिए जिनका कानून में औपचारिक प्रशिक्षण नहीं है लेकिन जो व्यापक अनुभव और ज्ञान रखते हैं।
2. अब क्यों हटाई गई ये अनिवार्यता
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व में इस शर्त को समाप्त करने का निर्णय लिया गया, जिससे विभिन्न पृष्ठभूमियों के अनुभवी पत्रकार सुप्रीम कोर्ट की रिपोर्टिंग में अपनी भूमिका निभा सकें। इस बदलाव के पीछे मुख्य उद्देश्य पत्रकारिता में विविधता और समावेशिता को बढ़ावा देना है। इससे पत्रकारों को उनकी योग्यता और अनुभव के आधार पर मौका मिलेगा, न कि केवल शैक्षिक योग्यता पर निर्भर होकर।
न्याय की देवी की प्रतिमा में प्रतीकात्मक बदलाव
1. न्याय की देवी के प्रतिकूल प्रतीक का अर्थ
न्याय की देवी की प्रतिमा में पारंपरिक तौर पर आंखों पर पट्टी और हाथ में तलवार होती थी, जो "अंधाधुंध" न्याय और शक्ति का प्रतीक मानी जाती थी। हालांकि, सीजेआई चंद्रचूड़ का मानना था कि कानून अंधा नहीं होना चाहिए। इसका प्रतीकात्मक संदेश यह है कि कानून और न्याय सबको समान रूप से देखे और किसी भी प्रकार की हिंसा को बढ़ावा नहीं दे।
2. संविधान की पुस्तक का स्थान और महत्व
अब न्याय की देवी के हाथ में तलवार की जगह संविधान की पुस्तक दी गई है। इससे न्यायपालिका की भूमिका का प्रतीक बदलकर इसे संविधान की रक्षा करने और जनहित के फैसलों में निहित करने की दिशा में प्रेरित किया गया है। यह बदलाव न केवल प्रतीकात्मक है, बल्कि न्यायपालिका के मूल सिद्धांतों को पुनः स्थापित करने का प्रयास है।
ब्रिटिश कालीन कानूनों से अलगाव: भारतीय न्याय संहिता की शुरुआत
सीजेआई चंद्रचूड़ ने हाल ही में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की जगह भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की शुरुआत की। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि ब्रिटिश कालीन कानूनों से हटकर भारतीय समाज के मूल्यों के अनुरूप कानून और न्याय प्रणाली को ढालना आवश्यक है। उन्होंने इस अवसर पर कहा कि न्यायपालिका का उद्देश्य सिर्फ दंडात्मक नहीं होना चाहिए, बल्कि समाज के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा में भी अपनी भूमिका निभानी चाहिए। बीएनएस की शुरुआत इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
सीजेआई चंद्रचूड़ की सेवानिवृत्ति और भविष्य की योजनाएं
1. सीजेआई चंद्रचूड़ की नियुक्ति और सेवानिवृत्ति
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने 9 नवंबर 2022 को पदभार ग्रहण किया था। उनके कार्यकाल के दौरान उन्होंने न्यायपालिका में कई सुधार और परिवर्तन किए हैं। अब वे 10 नवंबर को अपने पद से सेवानिवृत्त होंगे। सेवानिवृत्ति के बाद उन्होंने कुछ समय तक आराम करने और अपने अनुभव को आत्मसात करने की योजना बनाई है।
2. न्यायपालिका में उनके योगदान
सीजेआई के कार्यकाल के दौरान किए गए सुधार न्यायपालिका में एक नई दिशा और दृष्टिकोण प्रदान करते हैं। संवाददाताओं की मान्यता की शर्तों में बदलाव, न्याय की देवी की प्रतिमा में प्रतीकात्मक सुधार, और भारतीय न्याय संहिता की शुरुआत, ये सभी उनके कार्यकाल के प्रमुख योगदान माने जाएंगे। उनके इस दृष्टिकोण को न्यायपालिका के भविष्य के मार्गदर्शक सिद्धांत के रूप में देखा जा सकता है।