Lady Justice Of India: भारत के सुप्रीम में कोर्ट में लगी न्याय की देवी की मूर्ति में बदलाव किए गए हैं। अब नए अवतार में आंखों से पट्टी को हटा दिया गया है। इसके अलावा हाथों में तलवार की जगह संविधान का किताब रखा गया है। इससे ये संदेश देने की कोशिश की जा रही है कि देश में कानून अंधा नहीं होना चाहिए। हालांकि, हम आज आपकों न्याय की देवी से जुड़ी कुछ बातें बताने जा रहे हैं, जिन्हें जानना बेहद जरूरी है।
लेडी जस्टिस की आकृति का इतिहास ग्रीक और रोमन सभ्यताओं से जुड़ा हुआ है, जहां उसे न्याय और कानून का प्रतीक माना गया था। ग्रीस की देवी थेमिस और रोमन पौराणिक कथाओं की जस्टिटिया ने न्याय की अवधारणा को सशक्त रूप दिया। समय के साथ यह आकृति न्याय के लिए मानक बन गई। तराजू, तलवार और आंखों पर पट्टी के प्रतीक धीरे-धीरे इस आकृति के आवश्यक तत्व बन गए, जो निष्पक्षता और शक्ति का प्रतीक हैं।
भारत में लेडी जस्टिस की उपस्थिति
हालांकि, भारत में लेडी जस्टिस की उपस्थिति और प्रतीकवाद अधिक जटिल है। इसका संबंध ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन से जुड़ा हुआ है, जब अंग्रेजों ने अपने कानूनी ढांचे और प्रतीकों को भारत में पेश किया। लेडी जस्टिस का प्रतीक ब्रिटिश न्याय व्यवस्था का एक प्रमुख हिस्सा था और यह भारत की कानूनी प्रणाली का एक अविभाज्य अंग बन गया।
औपनिवेशिक व्यवस्था का हिस्सा
ब्रिटिश शासन के दौरान स्थापित अदालतें और कानूनी व्यवस्थाएं, जैसे कि भारतीय दंड संहिता (IPC), जो बाद में भारतीय न्याय संहिता (BNS) द्वारा प्रतिस्थापित हुई। भारत में कानूनी पदानुक्रम और प्रक्रियाओं को निर्धारित करती थीं। लेडी जस्टिस की मूर्तियां और उनके प्रतीक, जो अदालतों के बाहर देखे जाते हैं। इसी औपनिवेशिक व्यवस्था का हिस्सा हैं।
डी.वाई. चंद्रचूड़ द्वारा लेडी जस्टिस की नई मूर्ति की स्थापना
भारत के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ द्वारा लेडी जस्टिस की नई मूर्ति को स्थापित करना इसी औपनिवेशिक विरासत से आगे बढ़ने का प्रयास माना जा सकता है। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि कानून अंधा नहीं होता, बल्कि यह संविधान के सिद्धांतों के आधार पर निर्णय करता है। नई प्रतिमा में आंखों पर पट्टी हटाकर हाथ में संविधान की किताब दी गई है, जो इस बात का संकेत है कि भारतीय न्याय प्रणाली अब संविधान के प्रति निष्ठावान है और ब्रिटिश कानूनों से आगे बढ़ चुकी है।